शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

ग्यारह बार अपना शीश स्वयं धड़ से अलग कर मां को चढ़ाया



मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में बहुत से मंदिर स्थापित हैं मगर उन सभी में से मां हरसिद्धि मंदिर को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। स्कंदपुराण में भी इस मंदिर का वृतांत आता है। मां हरसिद्धि सम्राट विक्रमादित्य की कुलदेवी थी। माता हरसिद्धि सभी सिद्धियों की दाता हैं। नवरात्रि में यहां विशेष रूप से तंत्र साधनाएं की जाती हैं।



मान्यता है कि माता हरसिद्धि को राजा विक्रमादित्य गुजरात के हरसद गांव स्थित हरसिद्धि मंदिर से लेकर आए थे। मां सुबह के समय हरसिद्धि मंदिर जाती हैं और सांझ ढले आराम करने के लिए उज्जैन में अवस्थित मंदिर में आती हैं इसलिए यहां पर संध्योपासना की महत्ता है।




कहा जाता है की दक्ष यज्ञ में जब सती ने अपना शरीर त्याग दिया तब भगवान शिव उनके पार्थिव शरीर को लेकर ब्रह्मांड में भटकने लगे तब श्री हरि ने भगवान शिव का मोह भंग करने के लिए सुदर्शन चक्र से उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और वो टुकड़े सारी पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों पर जाकर गिरे और वहीं पर शक्तिपीठ स्थापित हो गए।




मां हरसिद्धि मंदिर में देवी सती की कोहनी गिरी थी इसलिए यह मंदिर सिद्धपीठ कहलाता है। इसी मंदिर में राजा विक्रमादित्य ने तप के उपरांत ग्यारह बार अपना शीश स्वयं धड़ से अलग कर मां को चढ़ाया। मां की कृपा से ग्यारह बार सिर फिर से जुड़ गया।

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