गुरुवार, 24 जुलाई 2014

यात्रा: चलें लक्ष्मी जी की क्रीड़ास्थली पर...

गोकुल में नंदबाबा जी प्रधान थे। जब लाला के जन्म लेने में आठ दिन बाकी थे तब ब्रह्माण नन्द बाबा के घर आए तो बाबा ने उनसे पूछा," हे ब्राह्मणदेव ! आप देखकर बताएं कि लाला के जन्म लेने में कितना समय है। तब ब्राह्मणों ने पंचांग में देखकर बताया कि आज से आठवें दिन, अष्टमी तिथी को, रोहिणी नक्षत्र में, आपके यहां लाला का जन्म होगा।"

इतना कहकर ब्राह्मण चले गए। नन्द बाबा ने सोचा मेरे लाला को जन्म लेने में केवल आठ दिन बचे हैं और हमने तो कुछ तैयारी भी नहीं की सारे ब्रजवासी तैयारी करने लगे। कब आठ दिन निकल गए, पता ही नहीं चला। दिन भर राह देखते-देखते शाम हो गई। आठ बजे सब नौकर-चाकर बाबा से कहने लगे," बाबा! अब तो रात हो गई लाला का जन्म अब तक नहीं हुआ हमें तो नींद आने लगी है हम तो सोने जा रहे हैं।"
यात्रा: चलें लक्ष्मी जी की क्रीड़ास्थली पर...
बाबा ने कहा," ठीक है आप सो जाईए जब लाला का जन्म हो जाएगा तो हम आप सब को जगा देंगे।"

एक घंटे बाद नौ बजे नन्द बाबा की आंखों में भी नींद आने लगी। नन्द बाबा ने अपनी बहन सुनंदा से कहा," बहन! अब तो हमें भी नींद आने लगी है। लाला का जन्म तो अभी तक नहीं हुआ।"

सुनंदा ने कहा," भईया ! जब लाला का जन्म हो जाएगा, तब हम आपको जगा देंगे।"

नन्द बाबा भी सो गए एक घंटा और निकला दस बजे सुनंदा की आंखों में भी नींद आने लगी सुनन्दा जी यशोदा मईया से कहने लगी,"भाभी मेरी आंखों में तो नींद आने लगी है।"

यशोदा जी कहने लगी," आप सो जाओ जब लाला का जन्म हो जाएगा तो मैं आपको जगा दूंगी।"

वही पास में सुनंदा जी सो गई। एक घंटा और निकला तो ग्यारह बजे यशोदा जी की आंखों में भी नींद आने लगी और लाला की मईया भी सो गई। क्या आप जानते हैं ये सब लोग क्यों सो रहे हैं ?

क्योंकि योगमाया जी आ रही थी। उनका काम ही जीव को सुलाना है, जैसे ही बारह बजे वासुदेव आए और कौतुक करके चले गए। लाला को सुलाकर लाली को ले गए।
भगवान ने पहली बार अपने कमल के से नेत्र खोले अब भगवान जहां-जहां कान लगाते खर्राटों की आवाज आती।

भगवान ने सोचा ये ब्रजवासी कितने भोले हैं इनके यहां लाला का जन्म हो गया
और ये सब सो रहे हैं ये नहीं की उठकर नाचे गाए, यहां तो मेरी मईया भी सो रही हैं
कैसे इन्हें जगाऊं?

भगवान ने रोना शुरु किया, ऊँ-ऊँ-ऊँ की ध्वनि निकल पड़ी जैसे कोई तपस्वी अपनी साधना शुरू करने से पहले प्रणव का उच्चारण करता है। ऐसे ही भगवान ब्रज में अपनी लीला शुरू करने से पहले प्रणव नाद कर रहे थे जैसे ही रोने की ध्वनि यशोदा जी ने सुनी तो झट से सुनंदा जी से कहा," बहन! बधाई-है-बधाई, लाला को जन्म हो गया है।"

झट सुनंदा जी उठी और बाबा के पास जाकर बोली,"भईया! बधाई-है-बधाई लाला का जन्म हो गया है।"

बाबा नन्द ने जैसे ही सुना तो शरीर का कुछ होश नहीं रहा झट प्रसूतिका ग्रह की ओर भागे जा रहे हैं। यशोदा जी ने कपड़ों से भगवान को ढक लिया बाबा से बोली," पहले कुछ मुहं दिखाई दो।"

बाबा ने कहा," जैसे तुम्हारे लाला होंगे वैसे ही मुंह दिखाई दे दूंगा।"

झट यशोदा जी ने कपड़ा हटाकर लाला का दर्शन कराया बाबा कहने लगे," तुम्हारे इस लाल पर तन-मन-धन सब कुछ वार दूं।"

नन्द बाबा बड़े मनस्वी और उदार थे। पुत्र का जन्म होने पर तो उनका हृदय विलक्षण आनंद से भर गया। उन्होंने स्नान किया और पवित्र होकर सुन्दर-सुन्दर वस्त्राभूषण धारण किए। फिर वेदज्ञ ब्राह्मणों को बुलाकर स्वस्तिवाचन और अपने पुत्र का जातकर्म संस्कार करवाया।

उन्होंने ब्राह्मणों को वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित दो लाख गौएं दान की, रत्नों और सुनहरे वस्त्रों से ढके हुए तिल के सात पहाड़ दान किए। ब्रजमंडल के सभी घरों के द्वार, आंगन और भीतरी भाग झाड़-बुहार दिए गए। उनमें सुगन्धित जल का छिड़काव किया गया। उन्हें चित्र-विचित्र, ध्वजा-पताका, पुष्प की मालाओं, रंग-बिरंगे वस्त्र और
पल्लवो की बन्दनवारो से सजाया गया। गाय ,बैल और बछडों के अंगों में हल्दी-तेल का लेप कर दिया गया और उन्हें गेरू आदि रंगीन धातुएं, मोरपंख, फूलों के हार,
तरह-तरह के सुन्दर वस्त्र और सोने की जंजीरो से सजा दिया गया, सभी ग्वाल-बाल बहुमूल्य वस्त्र, गहने, अंगरखे और पगडियों से सुसज्जित होकर और अपने हाथों में
भेंट की बहुत सी सामग्रियां ले-लेकर नंद बाबा के घर आए।

यशोदा जी के पुत्र हुआ है यह सुनकर गोपियों को बड़ा आनंद हुआ। उन्होंने सुन्दर-सुन्दर वस्त्र, आभूषण और अंजन आदि से अपना श्रंगार किया। गोपियों के मुखकमल बड़े ही सुन्दर जान पड़ते थे। गोपियों के कानो में चमकती हुई मणियों के कुंडल झिलमिला रहे थे। मार्ग में उनकी चोटियों में गुंथे हुए फूल बरसते जा रहे थे। इस प्रकार नंद बाबा के घर जाते समय उनकी शोभा अनूठी जान पड़ती थी।

भगवान श्रीकृष्ण समस्त जगत के एकमात्र स्वामी है उनके ऐश्र्वर्य,माधुर्य,वात्सल्य सभी अनंत है। जब वे ब्रज में प्रकट हुए उस समय उनके जन्म का महान उत्सव मनाया गया। आनंद से मतवाले होकर गोपगण एक दूसरे पर दही, दूध, घी और पानी उड़ेलने लगे एक दूसरे के मुंह पर मक्खन मलने लगे और मक्खन फेंक-फेंककर आनंदोत्सव मनाने लगे उसी दिन से नंदबाबा के ब्रज में सब प्रकार की रिद्धि सिद्धियां अठखेलियां करने लगे और भगवान श्रीकृष्ण के निवास तथा अपने स्वाभाविक गुणों के कारण वह लक्ष्मी जी का क्रीड़ास्थल बन गया।

सार-
जहां भगवान हैं वही सारे आनंद और सुख हैं।

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