'मैं अग्निपरीक्षा देने को तैयार हूं, बशर्ते मेरा पति राम बने....' ये शब्द पूनम नाम की उस महिला के हैं, जो पिछले आठ सालों से दहेज की मांग के आगे लाचार है. समाज की कुप्रथा का यह 'नायाब' नमूना है.
हालत यहां तक आ पहुंची है कि पूनम और उसके परिजन का हुक्का-पानी भी बंद हो गया है. ऐसे में तारीफ करनी होगी पूनम के हौसले की, जिसने दहेज और अग्निपरीक्षा से लगातार जंग लड़ी. इस जंग में उसे कोर्ट का सहारा मिला. पूनम की शिकायत को संगीन मानते हुए उसके पति, सास और देवर के खिलाफ उत्पीड़न का मामला दर्ज किया है.
पूनम की ओर से पेश शिकायत की अर्जी को कोर्ट ने मंजूर करते हुए उसके पति, सास और देवर के खिलाफ प्रताड़ना का मामला दर्ज कर लिया गया है. इस अग्निपरीक्षा और हुक्का-बंद को भी कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना के अंतर्गत ही माना है.
पीड़ित लड़की पूनम ने कहा, 'हमारे समाज में अग्निपरीक्षा, मतलब कंधे का ईमान माना जाता है. अगर किसी लड़की के चरित्र पर शंका होती है, तो उसे गरम सलाखें पकड़वाकर चलाते हैं. मेरे ससुरालवाले हमेशा पैसे मांगा करते थे. हमसे अलग रहने के वावजूद मौसी सास का दखल बहुत ज्यादा था. मेरी सास और मौसी सास जिद पर अड़ी हैं कि पहले कंधे का ईमान (अग्निपरीक्षा) दो, फिर इसे रखेंगे. न कोई हमें बुलाता है, न ही कोई हमारे घर आता है.'
पूनम ने कहा, 'आठ साल हो गए हैं. अग्निपरीक्षा तो सीता माता को भी देनी पड़ी थी, लेकिन हर कोई राम नहीं होता. मैं तैयार हूं, लेकिन मेरे पति को भी तो राम होना चाहिए.'
पीड़ित के वकील संतोष फवारे ने बताया, 'पहले पूनम ने मुंबई में रिपोर्ट लिखाई थी. पुलिस के कहने पर उसने समझौता कर लिया था. उसके बाद विवाद होने लगे. बाद में पति-पत्नी इंदौर में रहने लगे. दोनों का पारिवारिक जीवन ठीक से चलने लगा. फिर परिवार के अन्य लोगों का दखल बढ़ गया. पूनम की सास और मौसी सास ने लांछन लगाना शुरू कर दिया कि वह चरित्रहीन है. कहा गया कि अग्निपरीक्षा दे, या दहेज के दो लाख रुपये दे.'
संतोष फवारे ने बताया, 'फरवरी 2014 में समाज की पंचायत में उन्होंने ये निर्णय पारित करवा दिया. पूनम ने परीक्षा देने से मना कर दिया. उसने कहा जो परीक्षा लेना चाहते हैं, पहले वे परीक्षा देकर बताएं. कोई भी अगर गरम सलाखें रखेगा, तो हाथ तो जलना ही है. अब कोर्ट ने आर्डर दिया है कि चारों के खिलाफ मामला दर्ज किया जाए.'
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