रविवार, 30 सितंबर 2012

जैसलमेर रासला गांव के पास स्थित देगराय माता मंदिर


देगराय  में भजन संध्या आयोजित


 जैसलमेर  रासला गांव के पास स्थित देगराय माता मंदिर में शुक्रवार को रात्रि जागरण का आयोजन किया गया। जिसमें राजेंद्र रंगा एवं पार्टी द्वारा भजनों की प्रस्तुतियां दी गई। साथ ही सत संगियों ने भी रात्रि जागरण में अपनी सहभागिता निभाई। इस अवसर पर भगवानदास बिसानी, चानणमल, रमेशचन्द्र, कमल बिसानी, धूड़चंद, भगवान चांडक, दुर्जनसिंह, राजेन्द्र कुमार व्यास आदि उपस्थित थे। भजन संध्या में अचला, मूलाणा, करडा आदि गांवों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़े। भक्ति संध्या में कलाकारों द्वारा देवी माता के विभिन्न भजनों की प्रस्तुतियां दी गई। पूरी रात चले भजनों का सभी ने आनंद लिया। रात्रि जागरण में खेम चन्द्र, मानसिंह, जितेन्द्र व कैलाश आदि गायकों ने प्रस्तुतियां दी।

जैसलमेर  रासला गांव के पास स्थित देगराय माता मंदिर 

राजस्थान का विविध रंगी लोक जीवन अपने वैविध्य के सौंदर्य से किसी का भी मन मोह सकता है और जब जीवन के हर क्षेत्र में रंगों का वैविध्य हो तो भला आस्था का क्षेत्र अछूता कैसे रह सकता है. शायद इसीलिए राजस्थान में अनेक लोक देवताओं और लोक देवियों की अमूल्य उपस्थिति जन-जीवन से अभिन्न जुड़ाव रखती है रामदेव,गोगाजी,पाबूजी,भैरूंजी,देवनारायण,हड़बूजी,मल्लिनाथ,तेजाजी , कल्लाजी,मेहाजी जैसे अनेक लोक देवता राजस्थानी जन मानस को गहरे तक प्रभावित करते हैं.और उतनी ही महत्वपूर्ण है लोक देवियों की उपस्थिति . करणी माता,ऊंठाला माता,आवरी माता,हिंगलाज माता,आवड़ माता,इडाणा माता और आई माता जैसे विश्वास के अनेक सोपान हैं जहां आस्था निरंतर दीप प्रज्जवलित कर श्रद्धा को जन-जन में जीवंत बनाये रखती है. इसी परंपरा का एक जागृत शक्ति-पुंज है - देगराय . देगराय आवड़ माता का ही एक रूप है कहते हैं जब सिंध के शासक उमर सूमरा ने आवड़ माता से विवाह का प्रस्ताव रखा तो देवी ने उसका वध करके जैसलमेर की ओर प्रस्थान किया उस शक्ति पुंज ने एक स्थान पर भैंसे के सिर को देग बनाकर उसमे अपनी चुनरी रंगी तब से उनका एक नाम देगराय भी हुआ. भाटी राजवंश पर आवड़ माता की विशेष कृपा रही और भाटी राजवंश के ही जैसलमेर से बाड़मेर जाने के रास्ते में ही देवीकोट से कुछ दूरी पर है देगराय का प्रकृति के सानिध्य में बसा एक खूबसूरत सा मंदिर। किसी भी स्थान के लोक देवी-देवता इसलिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये अपने दौर के वो नायक हैं जिन्होंने जनमानस के लिए संघर्ष किया और शुभ की स्थापना का साहस दिखाया आप पूरे भारत में कहीं भी चले जाइए लोक देवता हर जगह होंगे और साथ ही होंगी बुराई के विरुद्ध उनके संघर्ष की अनेक कहानियां . कालांतर में जनमानस उन्हें देवी-देवता बनाकर पूजता भी इसीलिए है क्योंकि वो भी सदैव शुभ और सत्य की सत्ता का आग्रही है. दूसरी बात जो बेहद महत्वपूर्ण है वो है लोक देवी-देवताओं का प्रकृति से अमिट जुड़ाव अधिकांश लोक देवी-देवताओं का किसी वृक्ष से जोड़ा जाना भी शायद जन-जन में प्रकृति से जुड़ाव की भावना का संचार करने का कोई भारतीय विचार ही रहा होगा. देगराय के मंदिर में मुझे सबसे अधिक आकर्षित किया वहां की शांति ने. साथ ही मंदिर के पीछे एक झील भी थी जिसे देखकर तो मैं भूल ही गया कि मैं मरुभूमि का यात्री हूँ . 

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