शनिवार, 7 अप्रैल 2012

हरीश के परिजनों को जगी उम्मीद

हरीश के परिजनों को जगी उम्मीद loading...

हरीश के चाचा ने कहा  काश इस बार हत्या की गुत्थी सुलझ जाए, सीबीआई पर कोई दबाव न हो...

बहुचर्चित हरीश हत्याकांड की एक बार फिर सीबीआई करेगी जांच,तीन माह में जांच कर रिपोर्ट देने के निर्देश

जैसलमेर उनकी आंखों के आंसू सूख चुके हैं, हत्या का खुलासा होने के इंतजार में आंखे पथरा गई है, वे जब जब हरीश की तस्वीर देखते हैं तो उनकी आंखों के आगे हरीश से जुड़ी यादें सामने आ जाती है। साथ ही पुलिस, सीआईडी व सीबीआई की नाकामी भी नजर आती है। यह स्थिति उस युवक के परिजनों की है जिसकी करीब 10 वर्ष पूर्व 18 जनवरी 2002 को निर्मम हत्या कर दी गई थी। शुक्रवार को हरीश के पिता व अन्य परिजन गड़सीसर तालाब के उस स्थान पर जहां उसकी लाश मिली थी उसकी आत्मा की शांति व हत्यारों के पकड़े जाने की कामना को लेकर पूजा अर्चना कर रहे थे। गौरतबल है कि इंदिरा कॉलोनी रहने वाले तथा एयरफोर्स चौराहा पर मोटरपार्टस की दुकान करने वाले 19 वर्षीय युवक हरीश प्रजापत की 18 जनवरी 2002 को गड़सीसर तालाब की पाल के पीछे स्थित दादावाड़ी में तलवार से हत्या कर दी थी। हत्यारों ने हरीश की लाश को पत्थर से बांधकर गड़सीसर तालाब में फैंक दिया था। बहुचर्चित इस हत्याकांड की पहले पुलिस, सीआई और सीबीआई ने जांच की लेकिन इस हत्या की गुत्थी सुलझने के बजाय उलझती गई और किसी को भी सफलता नहीं मिली।

एक बार फिर हरीश के चाचा सगताराम की याचिका पर हाईकोर्ट ने इस हत्याकांड की जांच सीबीआई को सौंपी है और तीन माह में रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं।

सीबीआई ने ईनाम भी रखा था: इस मामले में सीबीआई ने अखबारों के माध्यम से कई अपीलें भी जारी की। उस दौरान हत्यारों के बारे में सुराग देने पर पहले 25 हजार और बाद में एक लाख रुपए का ईनाम भी रखा गया था।

जांच भी रही संदिग्ध : हरीश के पिता चांदाराम के मुताबिक पुलिस, सीआईडी व सीबीआई की जांच भी संदेह के घेरे में रही है। जांच में कई बार ऐसे मोड़ आए जहां पुलिस व अन्य एजेंसियों की जांच संदिग्ध नजर आई। कई बार ऐसा भी लगा कि जांच एजेंसियां जानबूझकर मामले को उलझा रही है।



क्या इस बार हत्यारों तक पहुंच पाएगी सीबीआई : बहुचर्चित हरीश हत्याकांड की चर्चा एक बार फिर होने लगी है। हर किसी की जुबां पर यही बात है कि क्या इस बार हरीश के हत्यारों तक पहुंच पाएगी सीबीआई। हरीश के परिजन आज भी दुखों के पहाड़ के नीचे दबे हुए हैं मगर समय के साथ साथ उसके हत्याकांड की जांच धुंधली होती गई। गौरतलब है कि पूर्व में सीबीआई कई वर्षो तक इस मामले की जांच कर चुकी है। एक के बाद एक पूछताछ और गुत्थी उलझती गई, आखिरकार सीबीआई ने एफआर लगाने का फैसला कर लिया। हाईकोर्ट ने याचिका में प्रस्तुत किए गए ठोस आधारों को देखते हुए दोबारा जांच के आदेश दिए हैं। जहां हरीश के परिजनों को एक बार उसके हत्यारों का पता लगाने की उम्मीद जगी है वहीं जिले में भी यही चर्चा होने लगी है।

क्या हत्या से जुड़े सुराग अब मिल पाएंगे।

2006 में जांच बंद होने के बाद क्या हत्यारे निश्ंिचत हो गए थे, या फिर लगातार इस मामले से जुड़े सुराग, सबूतों व लोगों पर दबाव बना हुआ था।

क्या सीबीआई पूर्व में जांच करने वाले अधिकारियों से संदेह के आधार पर पूछताछ करेगी।


पूर्व में संदिग्ध लोगों से की गई पूछताछ दोबारा होगी, यदि होगी तो क्या उनके बयान वही रहेंगे या फिर बदल जाएंगे।










कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें