शनिवार, 7 अप्रैल 2012

वे जिंदा बेटी को दफनाने के पाप से बच गए।

कोटा. कोटा में एक नर्सिग होम के डॉक्टरों ने नवजात को मृत घोषित कर दफनाने के लिए कब्र तक पहुंचा दिया। गनीमत रही कि एनवक्त पर शरीर में हलचल देखकर पिता के हाथ रुक गए और वे जिंदा बेटी को दफनाने के पाप से बच गए। अब यह बच्ची शहर के ही एक अन्य निजी चिकित्सालय में भर्ती है।
हालांकि, प्री-मैच्योर होने के कारण उसका स्वास्थ्य खराब है। जिस नर्सिग होम में यह लापरवाही बरती गई, वह महापौर डॉ. रत्ना जैन का है। वे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की केंद्रीय समिति की सदस्य भी हैं। इस घटना को लेकर परिजनों में आक्रोश है, लेकिन वे फिलहाल इसलिए चुप हैं, क्योंकि जच्च की तबीयत खराब है और वह नर्सिग होम में भर्ती है।

दूसरी ओर, नवजात बेटी का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है। फिलहाल परिजन किसी कानूनी पचड़े में उलझने की बजाय इलाज पर ध्यान दे रहे हैं। नवजात के पिता अमित का कहना है कि इस बारे में बाद में विचार किया जाएगा।

नांता के विकास नगर में रहने वाले अमित मीणा की पत्नी रेणु को शुक्रवार सुबह प्रसव पीड़ा हुई थी। परिजन उसे महापौर के नयापुरा स्थित रत्ना नर्सिग होम ले गए। रेणु को प्री मैच्योर (5 माह) डिलीवरी हुई और बेटी को जन्म दिया। करीब ढाई घंटे बाद डॉक्टर ने बच्ची को जीवित नहीं बताते हुए उसे अमित को सौंप दिया। अमित अन्य परिजनों के साथ उसे दफनाने के लिए नयापुरा मुक्तिधाम पहुंच गए। कब्र खोद दी गई।


नवजात के शव उसमें रखा ही जा रहा था कि अमित के सीने से चिपकी बच्ची के शरीर में कुछ हरकत हुई। अमित चौंक गया। उसे हिलाया-डुलाया तो बच्ची जीवित निकली। गम के आंसू खुशी में तबदील हो गए। बच्ची को सीधे नर्सिग होम लाया गया। डॉ. रत्ना जैन ने जांच की तो वे भी चौंक ढाई घंटे पहले मृत घोषित बच्ची जीवित घोषित कर दी गई। इसके बाद डॉ. जैन ने उसे अपने पति डॉ. अशोक जैन की पार्टनरशिप वाले तलवंडी स्थित निजी अस्पताल में रैफर कर दिया। उधर, बेटी के गम में सुध-बुध खोकर बैठी रेणु को भी उसके जीवित होने का पता लगा तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

महापाप से बच गया : अमित


अगर मेरी बेटी के शरीर में हरकत का अहसास होने में जरा सी भी देर हो जाती तो मैं उसे अपने हाथों से जिंदा दफन कर चुका होता। महापाप हो जाता। मैं इस महापाप से बच गया।
छाती से चिपके रहने से लौट आई धड़कनें : डॉक्टर

नर्सिग होम संचालक डॉ. रत्ना जैन का कहना है कि रेणु की प्री-मैच्योर (५ माह) डिलीवरी थी। बच्ची का वजन ५६क् ग्राम था। शरीर नीला पड़ चुका था, धड़कन भी नहीं थी। इसकी जानकारी परिजनों को दे दी गई। हम रेणु को संभालने में जुट गए। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने बेटी परिजनों को सौंप दी। काफी देर सीने से चिपकाए रखने से उसकी धड़कन लौट आई। मेडिकल साइंस के अनुसार 5 माह का शिशु भ्रूण के बराबर ही होता है। ऐसे बच्चे कम ही बच पाते हैं।


बच जाते हैं पांच माह में जन्मे बच्चे

सबसे छोटा प्रीमेच्योर बच्चा जर्मनी की फ्रीडा है। इसका जन्म गर्भधारण के पांच माह में हो गया था। वजन 460 ग्राम और लंबाई 11 इंच थी। यह जीवित रही। दिल्ली के शालीमार बाग में भी पिछले साल फरवरी में एक बच्ची का जन्म गर्भधारण के 5 माह में हुआ था। जन्म के वक्त उसका वजन 600 ग्राम था।

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