रविवार, 4 जनवरी 2015

उदयपुर। दम तोड़ती कठपुतली को सरकारी मदद की दरकार, कलाकारों पर रोजी रोटी का संकट

उदयपुर। दम तोड़ती कठपुतली को सरकारी मदद की दरकार, कलाकारों पर रोजी रोटी का संकट


उदयपुर। कठपुतली का खेल आपके कभी न कभी जरूर देखा होगा, लेकिन क्या आने वाली पीढ़ियां कठपुतली के खेल आगे भी देख पाएंगी..शायद नहीं..एक रंगीन और इठलाती कला अपना दम तोड़ रही है| कठपुतली के कलाकारों पर आज रोजी रोटी का संकट है|

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मनोरंजन के सबसे पुराने साधनो में गिनी जाने वाली कठपुतली कला मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा का भी प्रमुख माध्यम रही थी, लेकिन मनोरंजन के साधनों में आए बदलाव के कारण अब कठपुतलियों का उपयोग ड्राईंग रूम को सजाने के लिए ही रह गया है| कठपुतली कलाकारों का कहना है कि पहले के मुकाबले अब कार्यक्रम नहीं मिलने के कारण परिवार का गुजारा तक नहीं हो पाता है, जिसके कारण इस कला को छोड़कर दूसरे काम करने पड़ रहे हैं| इस कला के कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार इस कला का उपयोग विभिन्न योजनाओ के प्रचार प्रसार के लिए भी कर.. एक बार फिर इसको जीवत रखने का काम कर सकती है|



कठपुतली कला को लेकर पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के कार्यक्रम अधिकारी का कहना है कि मनोरंजन के अन्य साधनों के कारण कठपुतली कला में कमी आई है| इसके साथ ही उद्देश्य पूर्ण प्रस्तुतियों में भी कमी आई है और कलाकारो ने भी इसमें रूझान लेना कम कर दिया है|



वैसे तो कठपुतली कला को भी राजा विक्रमादित्य के समय की बताई जाती है, लेकिन राजस्थान में इसका जन्म नागौर से माना जाता है| नागौर की ख्याल, कच्छी घोडी और कई विधाओं के साथ यह कला भी यहां से निकलकर पूरे प्रदेश में फैली, लेकिन समय के साथ कम होते कद्रों के कारण यह कला अब खत्म होती जा रही है|



राज परिवारों से लेकर आम जनता के मनोरंजन का प्रमुख साधन रही कठपुतली कला आज समाप्ति के कगार पर आ गई है| कठपुतली कलाकार भी अब इस कला से मुंह मोड़ने को मजबूर हो रहे हैं| समय रहते इस कला को बचाने के सकारात्म प्रयास भी नहीं किए जा रहे हैं| अब वह दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढी को कठपुतली ड्राईंग रूम और म्यूजियम में ही नज़र आएगी|

नागौर। पानी पूरा, फिर भी प्यासी जनता

नागौर। पानी पूरा, फिर भी प्यासी जनता

नागौर| कभी फ्लोराइड युक्त पानी की समस्या से जूझ रहे नागौर शहर में इंदिरागांधी लिफ्ट केनाल से मीठा पानी आने के बावजूद शहरवासी पीने के पानी को तरस रहे हैं। लिफ्ट केनाल के माध्यम से निकटवर्ती गोगेलाव गांव में रिर्जव टैंक में पानी की भरपूर मात्रा है, लेकिन शहर में सप्लाई व्यवस्था सही नहीं होने से अब भी लोगों के घरों में फ्लोराइडयुक्त पानी आ रहा है और लोग फ्लोरोसिस के शिकार बनते जा रहे हैं। जलदाय विभाग के अधिकारी जहां एक दिन छोड़कर एक दिन पानी की सप्लाई की बात कह रहे हैं वही जनता का कहना है कि उन्हें पानी की सप्लाई समय पर नहीं की जा रही है।

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नागौर शहर के लिए नोखा-दैय्या से हर रोज 2 करोड़ लीटर पानी छोड़ा जाता है। नागौर शहर की जरूरत प्रतिदिन 1 करोड़ 10 लाख लीटर है। गोगेलाव में बने स्टोरेज डेम से करीब एक करोड़ 20 लाख लीटर से अधिक पानी सप्लाई किया जा रहा है, लेकिन न तो नागौर शहर को पूरा पानी मिल रहा है और न ही आस-पास के गांवों की ही प्यास बुझ रही है। यहां तक की जिस गोगेलाव गांव की सरहद में स्टोरेज डेम बना है उस गांव में भी पानी की सप्लाई नहीं हो रही है।

नागौर शहर में नियमित पेयजल सप्लाई नहीं होने के कारण लोगों को हर दिन मंहगी दर पर टैंकरों से पानी मंगवाना पड़ रहा है। सर्दी के मौसम में भी पानी की किल्लत के चलते लोगों में जलदाय विभाग के प्रति रोष देखने को मिल रहा है।

गोगेलाव डेम के पास लीकेज है और वह भी एमएच व डीआई पाइप जंक्शन पर है। उसे जोड़ने के भी खूब प्रयास किए गए, लेकिन फिर भी लीकेज थम नहीं रहा है। यही वजह है कि एक ओर जहां लाखों लीटर पानी व्यर्थ बह रहा है वहीं डेम में भरपूर पानी होने के बावजूद नागौर शहर वासी पीने के मीठे पानी को तरस रहे हैं।