शुक्रवार, 28 मार्च 2014

सनसनीखेज: ओबामा समलैंगिक और उनकी पत्नी एक मर्द!

न्यूयार्क। इंटरनेट पर इन दिनों एक सनसनीखेज स्टोरी वायरल हो रही है जिसने काफी सनसनी मचा रखी है। स्टोरी एक अमरीकन वेबसाइट पर दी गई है जिसमें अमरीका के वीवीआईपी लोगों की सेक्सूअलिटी पर ही प्रश्न उठाए गए हैं।
इनमें खुद अमरीका के प्रेसीडेंट बराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल केअलावा टेनिस सनसनी सेरेना विलियम्स का नाम शामिल है।

रिपोर्ट बाकायदा मेडिकल साइंस के हवाले से इस बात का पुख्ता सबूत भी पेश करती दिखाई देती है कि असल में यह सब लोग वह नहीं जो दुनिया के सामने नजर आते हैं। मिशेल के बारे में तो रिपोर्ट ने पूरी जांच पड़ताल कर उसकी पूरी जानकारी हासिल कर पेश की है।

इस स्टोरी में बताया गया है कि अमरीका की फर्स्ट लेडी और अमरीकन प्रेसीडेंट बराक ओबामा की धर्मपत्नी मिशेल ओबामा महिला ने होकर असल में एक मर्द है।

क्या बराक ओबामा समलैंगिक हैं?
वॉनकेट डॉट कॉम वेबसाइट द्वारा जारी इस रिपोर्ट में बताया गया है कि बराक ओबामा को मिशेल की इस सच्चाई के विषय में पहले से ही पता था। स्टोरी के मुताबिक ओबामा दंपति की दोनों बेटियां भी गोद ली गई हैं। ओबामा के बारे में भी यह स्टोरी आगे बताती है इस खुलासे से तो ऎसा प्रतीत होता है कि वे असल में एक होमोसेक्सुअल हैं जो अपनी सच्चाई को छुपाकर रात में मिशेल नाम के इस पुरूष पार्टनर के साथ रंगरेलियां मनाते होंगे।

मिशेल असल में "माइकल" हैं!
मेडिकेल स्पेशलिस्ट के दावों के साथ यह रिपोर्ट कहती है कि मिशेल के चौड़े कंधे और नुकीले चेहरे की जॉ लाइन किसी पुरूष फुटबाल खिलाड़ी के ही हो सकते हैं। यहां तक कि रिपोर्ट तो मिशेल के प्राइवेट पार्ट के बारे में भी खुलासा कर कहती है कि असल में वह एक मर्द का ही है जो कि मिशेल अक्सर अपने कपड़ों की आड़ में छुपा जाती है।

बताया जा रहा है कि मिशेल ओबामा का असली नाम माइकल लावॉग रोबिंसन है जिसका जन्म 17 जनवरी 1964 को शिकागो में हुआ था।

माइकल के पिता फ्रेजर रोबिंसन एक कुख्यात कोकेन डीलर हुआ करते थे जो कि क्राइम की दुनिया के बेताज बादशाह रिचर्ड जे डेले के लिए काम करते थे। उसकी माता एक वेश्या थी जिसको 1998 में एचआईवी पॉजीटिव बताया गया था।

माइकल अपने स्कूल के जमाने में एक जाना माना एथलीट था जिसे 1982 में ऑरेगान स्टेट की ओर से खेलने के लिए स्कॉलरशिप भी मिली थी।

माइकल ने इस दौरान अपने लाजवाब खेल से खूब झंडे गाड़े लेकिन न जाने क्यों पर कुछ अज्ञात कारणों से माइकल अचानक ही इस स्कूल को छोड़कर कहीं चला गया।

उसके स्कूल के दोस्तों का कहना था कि माइकल अक्सर खुद को मर्द के शरीर में कैद एक औरत बताया करता था। इसके बाद खबर आई कि 13 जनवरी 1983 में माइकल ने जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में जाकर अपना सेक्स बदलवा लिया।

सेक्स बदलवाने के बाद उससे उपजी शर्म से बचने के लिए माइकल ने ऑरेगान स्टेट छोड़कर प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी ज्वॉइन कर ली जहां उसने अपना नया नाम मिशेल रॉबिंसन दर्ज करवाया।

सालों बाद मिशेल की मुलाकात केन्या के नागरिक बराक ओबामा से हुई और फिर दोनों ने शादी कर ली। इस बीच बराक ओबामा को मिशेल की हकीकत भी पता चल चुकी थी। दोनों ने इसके बाद दो बच्चों को गोद ले लिया।

सेरेना विलियम्स भी एक मर्द!
इसी तरह सेरेना विलियम्स के बारे में यह रिपोर्ट कहती है कि उनके गले की हड्डी यानि कि "आडाम्स एपल" और उन्नत गर्दन की मांसपेश्यिां भी साफ दिखाती हैं कि वे औरत न होकर असल में एक मर्द हैं। - 

आरएसएस भर रहा भाजपा में कूड़ा: जसवंत सिंह



जसवंत सिंह का ख़ास इन्टरव्यू बी बी सी से साभार 


“उम्र सारी कटी इश्क-ए-बुता में मोमिन, आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमां होंगे” मोमिन की इसी शायरी को दोहरा दिया जसवंत सिंह ने जब हमने उनसे पूछा कि बीजेपी छोड़ने के बाद आपने कांग्रेस का दामन क्यो नहीं थामा.
हाल ही में बाड़मेर से टिकट न मिलने के बाद अपनी पार्टी के खिलाफ़ ही निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर खड़े होकर चर्चा में हैं भारतीय जनता पार्टी के पूर्व नेता जसवंत सिंह. अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में जसवंत सिंह दो बार वित्त मंत्री रहे हैं और एक-एक बार रक्षा और विदेश मंत्री भी. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में बाड़मेर सीट पर उनकी दावेदारी पर कांग्रेस से भाजपा में आए सोनाराम चौधरी को तवज्जो दिए जाने के बाद जसवंत उखड़ गए.



बीबीसी को दिए एक ख़ास साक्षात्कार में संघ का बीजेपी में भूमिका जैसे कई मुद्दों पर बोले साथ ही उन्होने ये भी बताया कि क्यों अभी तक वो नरेंद्र मोदी को लेकर चुप रहे.

वो न सिर्फ राजनाथ सिंह की राजनीतिक विवशता पर बोले बल्कि बीजेपी के प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया को भी आड़े हाथों लिया. प्रत्याशियों के चुनाव और सीट के वितरण पर संघ के प्रभाव पर जसवंत सिंह ने कहा कि "संघ इस चुनाव को अहमियत दे रहा है लेकिन इसकी कीमत, सड़क पर से सारा कूड़ा करकट बटोरकर वह उन्हें बीजेपी के उम्मीदवार बना रहा है."

बीबीसी संवादादाता सुशांत मोहन से बातचीत का विस्तृत ब्यौरा:

जसवंत जी स्वागत है आपका बीबीसी में

शुक्रिया जनाब, आजकल स्वागत का अकाल सा पड़ा हुआ है, इसलिए जहां से भी स्वागत मिल जाए बहुत अच्छा लगता है.

आपके अलावा और भी कई लोग हैं जो पार्टी के टिकट वितरण से परेशान हैं ?

हां परेशान ज़रूर हैं , लेकिन मेरी परेशानी बिलकुल अलग है. मैने बाड़मेर के अलावा चित्तौड़ या जोधपुर से टिकट की मांग की थी लेकिन मुझे टिकट नहीं दिया, कोई बात नहीं, लेकिन उस नेता (सोनाराम चौधरी) को टिकट दे दी जो इतने सालों से हमें गाली देते हुए आए हैं, हमारे ख़िलाफ़ रहे हैं और बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी से हारे हैं, आज उसी नेता को आपने (भाजपा) अपना कैंडिडेट बना लिया. ये तर्क समझ नहीं आया.

जसवंत जी, पार्टी के टिकट वितरण से तो आडवाणी जी भी नाराज़ थे, सुषमा स्वराज भी नाराज़ थीं लेकिन किसी ने पार्टी नहीं छोड़ी. आपने ऐसा कदम क्यों उठाया ?

क्लिक करें(क्यों निकले जसवंत बीजेपी से - पूरा किस्सा यहां पढ़ें)

क्योंकि मेरे पास और कोई उपाय नहीं है. ये चुनाव लड़ने के लिए मैंने बहुत प्रयत्न किया लेकिन मेरी आवाज़ सुनी नहीं और फ़िर एक प्रकार से ढोंग होता कि मैं पार्टी में भी हूं और पार्टी के ख़िलाफ़ चुनाव भी लड़ रहा हूं, ये तर्कसंगत बात नहीं आती.




तो आप कांग्रेस के साथ क्यों नहीं गए, जब कांग्रेस के नेता वहां से यहां आ सकते हैं तो आपने ये विकल्प क्यों नहीं चुना?

(हंसते हुए) ये तो आप अन्याय करेंगे ये प्रश्न पूछकर. कांग्रेस से मेरा क्या लेना-देना. इतने वर्षों में मैं भाजपा के अलावा किसी दल में नहीं गया और सोचा भी नहीं... अब क्या ख़ाक मुसलमां होंगे यहां आकर हम...

जसवंत जी, आप भारतीय जनता पार्टी के बारे में बोले, आप वसुंधरा राजे के बारे में बोले, आप राजनाथ सिंह के खिलाफ़ भी बोले लेकिन आप नरेंद्र मोदी पर अब तक चुप रहे ऐसा क्यों ?

भई उनका रोल क्या रहा है मुझे उसका ज्ञान नहीं और जो चयन हुआ है वो राजस्थान में हुआ है. वसुंधरा राजे, सोनाराम का नाम सेंट्रल कमेटी के सामने लाई और राजनाथ सिंह ने इस पर आखिरी फ़ैसला लिया.

भले ही वो इसे ‘राजनीतिक विवशता’ का नाम दे रहे हैं लेकिन ये विवशता क्या है इसे वो खुल कर नहीं बता सकते. ये उनका फ़ैसला है और अन्य किसी का इसमें हाथ नहीं है.

तो इसका मतलब आप नरेंद्र मोदी का समर्थन करते हैं, और अगर आप जीते तो भाजपा में वापस लौटेंगे, उन्हें समर्थन देंगे ?

ये बात बहुत दूर की बात है लेकिन मेरी भारतीय जनता पार्टी में लौटने की कोई इच्छा नहीं है.

आप नरेंद्र मोदी के बारे में नहीं बात कर रहे हैं, वो तो भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं. उनके बारे में क्या राय है आपकी ?

वो भाजपा का चुनाव हैं और पार्टी व्यक्ति विशेष की राजनीति में उलझ गई है. अच्छा होता कि वो इसमें नहीं उलझते.




पार्टी में आपकी न सुने जाने का कारण आपके संघ के साथ तनावपूर्ण संबंधों को भी बताया जा रहा है. क्या ये सही है कि रज्जू भैय्या पर की गई आपकी टिप्पणी का खामियाज़ा आप अब भुगत रहे हैं ?

 

मुझे याद नहीं कि मैंने कब रज्जू भैय्या के खिलाफ़ कुछ कहा. मेरे हमेशा उनसे पारिवारिक संबंध रहे और मेरे किसी पुराने बयान को ढूंढ कर पेश किया गया है जिसका मेरे चुनाव से कोई सरोकार नहीं है. मेरे बारे में फ़ैसला राजनाथ सिंह ने लिया है.

तो आप मानते हैं कि संघ की इस चुनाव में कोई भूमिका नही हैं ?

मैंने सुना है कि आरएसएस इस चुनाव को बहुत महत्ता दे रहा है लेकिन इसके लिए वो क्या कीमत चुका रहे हैं. वो सड़क से सारा कूड़ा करकट उठाकर भाजपा के प्रत्याशियों के रूप में आगे कर रहा है.

राम मंदिर का क्या होगा? क्या अब ये कोई मुद्दा नहीं है ?

मैंने तो आडवाणी जी से पहले ही कहा था कि एक राम मंदिर और बन जाने से या न बनने से भगवान राम की महत्ता बढ़ या घट नहीं जाएगी. ये मुद्दा है ही नहीं और विकास इससे बड़ा मुद्दा है.

क्या ये चुनाव आपके सम्मान का चुनाव है?

ये मेरे सम्मान से ज़्यादा मेरे अस्तित्व का चुनाव है और मेरे क्षेत्र के सम्मान का चुनाव है. मेरा सम्मान इस सबके आगे गौण है.



जसवंत सिंह ने इस पूरी बातचीत के दौरान नरेंद्र मोदी से किसी भी तरह की नाराज़गी से इनकार किया और साथ ही खुद को संघ से अलग जरूर माना लेकिन उनके ख़िलाफ़ नहीं माना.