बुधवार, 28 नवंबर 2012

वेश्यावृत्ति से जुड़ी एक ऐसी सच्चाई, जिससे बहुत लोग अंजान होंगे!

PIX: वेश्यावृत्ति से जुड़ी एक ऐसी सच्चाई, जिससे बहुत लोग अंजान होंगे!PIX: वेश्यावृत्ति से जुड़ी एक ऐसी सच्चाई, जिससे बहुत लोग अंजान होंगे!


वेश्यावृत्ति जिसका नाम सुनते ही एक ऐसी छवि उभरती है, जिसे समाज में हेय नजर से देखा जाता रहा है। यहां तक की भारत सरकार ने इसे प्रतिबंधित भी कर रखा है। लेकिन क्या आपको पता है कि आज से लगभग 2,500 साल पहले वेश्यावृत्ति जायज हुआ करता था। साथ ही इसके बदले वेश्याओं को राज्य में टैक्स भी देना पड़ता था। यकीनन आप इससे इत्तेफाक न रखते हों, लेकिन यह सच है।आज से लगभग 2,500 साल पहले मौर्य शासन काल में ऐसी प्रथा थी। तब नगर के लोग इन वेश्याओं के पास जाते थे और उनपर पैसे भी लुटाते थे। इन वेश्याओं की कमाई भी खूब होती थी ऐसे में इनसे इनकी कमाई के हिस्से से टैक्स लिया जाता था, जिसका राजकाज में उपयोग किया जाता था।यहीं नहीं मौर्य शासन काल में राजकाज को सही ढंग से चलाने के लिए कई दूसरी तरह के कर भी लगाए गए थे। इसमें शराब बनाने, नमक बनाने, घी-तेल पर, जानवरों को मारने, कलाकारों पर, जुआरियों और जुए घरों पर, मंदिरों में होने वाली आय पर, वेतन पाने वालों के साथ वेश्याओं को होने वाली आय पर भी टैक्स लगता था।बता दें कि मौर्य राजवंश (322-185 ईसापूर्व) प्राचीन भारत का एक राजवंश था। इसकी स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मन्त्री चाणक्य (कौटिल्य) को दिया जाता है, जिन्होंने नन्द वंश के सम्राट घनानन्द को पराजित किया। इस राजवंश ने भारत में लगभग 137 सालों तक राज्य किया था।साम्राज्य का शासन शुरूआती दौर में बिहार में था, जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आज के पटना शहर के पास) थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ने 322 ईसा पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की तरफ़ अपना साम्राज्य का विस्तार किया था। इस दौरान चंद्रगुप्त ने अपने शासन को सही ढंग से चलाने के लिए कई तरह के नियम भी बनाए थे।

सेक्स की बातों से भले शर्माएं, लेकिन खुशहाल जिंदगी के लिए इसे जरूर पढ़ें!

सेक्स की बातों से भले शर्माएं, लेकिन खुशहाल जिंदगी के लिए इसे जरूर पढ़ें!सेक्स की बातों से भले शर्माएं, लेकिन खुशहाल जिंदगी के लिए इसे जरूर पढ़ें!

अकेले में या अपने दोस्तों के साथ हम सेक्स संबंधी बातें तो खूब करते हैं, लेकिन परिजनों के सामने सेक्स का नाम आते ही हम शर्म से पानी-पानी हो जाते हैं। कई लोग तो अपनी सेक्स संबंधी बिमारियां तक परिजनों को नहीं बताते हैं। ऐसे में एक ऐसा ग्रंथ है जो आपकी भरपूर मदद कर सकता है, वो है वात्स्यायन लिखित 'कामसूत्र'।

जब दुनिया में यौन बीमारियों का बोलबाला बढ़ा तो लोगों का ध्यान कामसूत्र सरीखी पुस्तकों पर खूब गया। ऐसी पुस्तकें भारत में तो ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुईं, लेकिन पश्चिमी देशों में बहुत पॉपुलर हुईं। इस तरह की किताबों में यौन प्रेम के मनोशारीरिक सिद्धान्तों तथा व्यवहार की विस्तृत व्याख्या एवं विवेचना की गई है।कामसूत्र का नाम सभी ने सुना होगा, साथ ही इससे संबंधित वीडियो या किताबें भी पढ़ी होंगी। अगर नहीं पढ़ी है तो जरूर पढ़िए, क्योंकि यह एक मात्र ऐसी किताब है, जिसमें काम कला का बेहद ही बढ़िया तरीके से वर्णन किया गया है। प्राचीन मगध (वर्तमान बिहार) में जन्मे महर्षि वात्स्यायन द्वारा लिखा गया 'कामसूत्र' भारत का सेक्स से संबंधित एक प्राचीन ग्रंथ है।अर्थ के क्षेत्र में जो स्थान कौटिल्य का है, काम के क्षेत्र में वही स्थान महर्षि वात्स्यायन का है। अधिकृत प्रमाण के अभाव में महर्षि के जन्म और कर्म काल का निर्धारण नहीं हो पाया है, परन्तु अनेक विद्वानों तथा शोधकर्ताओं के अनुसार महर्षि ने अपने विश्वविख्यात ग्रन्थ 'कामसूत्र' की रचना ईसा की तृतीय शताब्दी के मध्य में की होगी। ऐसे में कहा जा सकता है कि विगत सत्रह शताब्दियों से कामसूत्र का वर्चस्व समस्त संसार में छाया रहा है और आज भी कायम है।महर्षि के कामसूत्र ने न केवल दाम्पत्य जीवन का श्रृंगार किया है, वरन कला, शिल्पकला एवं साहित्य के क्षेत्र में भी अप्रतिम योगदान किया है। राजस्थान की दुर्लभ यौन चित्रकारी तथा खजुराहो, कोणार्क आदि की जीवन्त शिल्पकला भी 'कामसूत्र' से प्रभावित हैं। 'कामसूत्र' को उसके विभिन्न आसनों एवं सेक्स से जुड़ी तमाम बारीकियों के लिए ही जाना जाता है।उल्लेखनीय है कि महर्षि वात्स्यायन द्वारा इस ग्रंथ की रचना के पहले भी कई मनीषियों ने इस विषय पर अनेक ग्रंथों की रचना की थी। वात्स्यायन ने कामसूत्र में अपने पूर्ववर्ती विद्वानों का उल्लेख किया है और उनका आभार माना है। ऐसे विद्वानों में गोणिकापुत्र का स्थान प्रमुख है। वात्स्यायन रचित कामसूत्र की विशेषता यह है कि इसमें यौन संबंधी जटिल और संवेदनशील विषय का बहुत ही गहराई से विश्लेषण तो किया ही गया है, साथ ही यह सभी के लिए बोधगम्य भी है।मूल संस्कृत में लिखित इस ग्रंथ का पाश्चात्य विद्वानों ने सबसे पहले अंग्रेजी में अनुवाद किया। इसके बाद दुनिया की लगभग सभी महत्वपूर्ण भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है। आज भी इस ग्रंथ पर आधारित अनेकों किताबें प्रतिवर्ष पूरी दुनिया में प्रकाशित होती हैं।