राजपूतों का नाम सामने आते ही राजसी ठाठ, शाही खानपान और हवेलियां जेहन में आती है, लेकिन इंदौर से लगा हुआ एक ऎसा गांव है जहां 90 प्रतिशत से अधिक परिवार राजपूत हैं। इस पूरे गांव ने शराब पीना छोड़ दी है।
जंबूर्डी सरवर गांव के बुजुर्गो और युवाओं ने फैसला लिया है कि जो गांव में शराब पिलाते या पीते हुए पाया जाता है तो उस पर पांच हजार का जुर्माना किया जाएगा। अब तक कुछ लोगों पर यह जुर्माना हो भी चुका है। जिसे मंदिर के उत्थान में लगाया गया है। सबसे खास बात यह देखने में आई कि सालों से शराब पीने वाले कई बुजुर्गो ने खुद शराब पीना छोड़ा और युवाओं को इसके लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया।
बिगड़ते बच्चों ने किया मजबूर
गांव के तकेसिंह चावड़ा का कहना है कि गांव में अवैध शराब की बिक्री बहुत अधिक बढ़ गई थी। छोटे-छोटे बच्चे नशा करने लगे थे। ऎसी स्थिति थी कि घर के 5 सदस्यों में से 4 शराब के आदी हो गए थे। कई लोगों की जमीनें भी इसी के चलते बिक गईं। आखिर गांव के बुजुर्गो ने पंचायत बैठाई और नशे पर पाबंदी लगाने की बात उठाई। शुरू आत में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। कई वे लोग भी हमारा विरोध करने लगे जो नशा नहीं करते थे, लेकिन सभी को समझाया गया। नशे से उजड़े परिवारों के कई उदाहरण दिए गए। आखिर तीन साल लगे, लेकिन अब सभी ने शराब छोड़ दी है।
बेचने वाले से खरीद ली शराब
गांव में ही दो कलौता समाज के घर हैं जहां शराब बेची जाती थी। बिक्री बढ़ाने के लिए उन्होंने उधारी दे-देकर सबकी आदत बिगाड़ दी थी। छोटे-छोटे बच्चों पर हजारों का क र्ज हो गया। आखिर में उन पर प्रतिबंध लगाया। बेचने वालों ने विरोध किया तो गांव वालों ने मिलकर उसकी सारी शराब खरीद ली और अगली बार बेचने पर से प्रतिबंध लगा दिया।
बीड़ी-सिगरेट भी पीते हैं सिर्फ कुछ लोग
जम्ब्ाूर्डी सरवर गांव में 150 घर हैं। यहां की आबादी लगभग 1000 है। आसपास के गांवों के लिए यह गांव इसलिए भी मिसाल हैं क्योंकि यहां के लोग बीड़ी सिगरेट से भी परहेज करने लगे हैं। बीड़ी-सिगरेट पीने वाले गांव में सिर्फ कुछ लोग ही हैं जो एकांत में जाकर बीड़ी पीते हैं। गांव में ही बड़ा राम मंदिर तथा संतोष आश्रम बना हुआ है। नशा करने वालों की यहां आने-जाने पर भी पाबंदी है। गांव के बुजुर्ग इस पहल के लिए युवाओं को श्रेय देते हैं। उनका कहना है कि युवा ही है जो निगरानी करते हैं और पीने और पिलाने वाले को सामने लाते हैं।
इन लोगों की रही अहम भूमिका
पूरे गांव को सुधारने का बीड़ा उठाने में तकेसिंह चावड़ा, पुरषोत्तम पांचाल, सौदानसिंह, कृष्णपालसिंह, अर्जुनसिंह, गुलाबसिंह, कैलाश प्रजापत, संजू चौहान, मुकेश शर्मा, चेतन शर्मा, विक्रम परमार, देवकरण चौधरी की अहम् भूमिका रही। -