गुरुवार, 9 मई 2013

सुहागरात से पहले आत्महत्या

सुहागरात से पहले आत्महत्या

बाड़मेर सरहदी चौहटन क्षेत्र के बींजराड़ थानान्तर्गत सरहदी मिठड़ाऊ गांव में एक युवक ने बुधवार सवेरे नीम के वृक्ष से फांसी का फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। युवक की एक दिन पहले मंगलवार को ही शादी हुई थी।बुधवार को सुहागरात से पहले युवक ने अपनी इहलीला समाप्त कर लिए . थानाधिकारी मूलाराम चौधरी ने बताया कि कालूराम ने रिपोर्ट पेश कि कि उसका पुत्र कृष्ण कुमार (21) ने बुधवार सवेरे घर के पास नीम के पेड़ पर फांसी लगाकर अपनी इहलीला समाप्त कर ली। पुलिस ने मौके पर पहंुचकर मौका मुआयना कर अनुसंधान प्रारम्भ किया। युवक की मंगलवार को गौहड़ का तला में शादी हुई है।

कुएं में कूदकर विवाहिता ने ईहलीला समाप्त की

कुएं में कूदकर विवाहिता ने ईहलीला समाप्त की

सिवाना। क्षेत्र के गांव अर्जियाना में बुधवार शाम एक विवाहिता ने कुएं में कूद कर अपनी इहलीला समाप्त कर दी। इस संबंध में विवाहिता के पीहर पक्ष ने पुलिस थाना सिवाना में दहेज हत्या का मामला दर्ज करवाया है। थानाधिकारी सुमेरसिंह राठौड़ ने बताया कि पारसमल पुत्र मालाराम निवासी अर्जियाणा ने पुलिस में रिपोर्ट पेश कर बताया कि उसकी बहन विमला देवी (25) का विवाह छह वर्ष पहले पारलू निवासी प्रकाश पुत्र गुलाबसिंह के साथ किया था।

पति,सास,ससुर सहित परिवार के अन्य दहेज को लेकर हरदम उसके साथ मारपीट करते थे। बुधवार को उसकी बहिन अपने पति के साथ पीहर अर्जियाणा आई हुई थी। पति प्रकाश ने उसके साथ झगड़ा कर मारपीट की जिससे दु:खी होकर उसने गांव के कुएं में कूदकर जान दे दी। घटना की जानकारी मिलने पर पुलिस ने मौके पर पहुंच कुएं से शव का बाहर निकाला। पोस्टमार्टम कर शव परिजनों का सुपुर्द किया। पुलिस ने दहेज हत्याा का मामला दर्ज कर जांच शुरू की।

शिव और सती का विवाह


शिव और सती का विवाह 




दक्ष प्रजापति की कई पुत्रियां थी। सभी पुत्रियां गुणवती थीं। फिर भी दक्ष के मन में संतोष नहीं था। वे चाहते थे उनके घर में एक ऐसी पुत्री का जन्म हो, जो सर्व शक्ति-संपन्न हो एवं सर्व विजयिनी हो। जिसके कारण दक्ष एक ऐसी हि पुत्री के लिए तप करने लगे। तप करते-करते अधिक दिन बीत गए, तो भगवती आद्या ने प्रकट होकर कहा, 'मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूं। तुम किस कारण वश तप कर रहे हों? दक्ष नें तप करने का कारण बताय तो मां बोली मैं स्वय पुत्री रूप में तुम्हारे यहां जन्म धारण करूंगी। मेरा नाम होगा सती। मैं सती के रूप में जन्म लेकर अपनी लीलाओं का विस्तार करूंगी। फलतः भगवती आद्या ने सती रूप में दक्ष के यहां जन्म लिया। सती दक्ष की सभी पुत्रियों में सबसे अलौकिक थीं। सतीने बाल्य अवस्था में ही कई ऐसे अलौकिक आश्चर्य चलित करने वाले कार्य कर दिखाए थे, जिन्हें देखकर स्वयं दक्ष को भी विस्मयता होती रहती थी। जब सती विवाह योग्य होगई, तो दक्ष को उनके लिए वर की चिंता होने लगी। उन्होंने ब्रह्मा जी से इस विषय में परामर्श किया। ब्रह्मा जी ने कहा, सती आद्या का अवतार हैं। आद्या आदि शक्ति और शिव आदि पुरुष हैं। अतः सती के विवाह के लिए शिव ही योग्य और उचित वर हैं। दक्ष ने ब्रह्मा जी की बात मानकर सती का विवाह भगवान शिव के साथ कर दिया। सती कैलाश में जाकर भगवान शिव के साथ रहने लगीं। भगवान शिव के दक्ष के दामाद थे, किंतु एक ऐसी घटना घटीत होगई जिसके कारण दक्ष के ह्रदय में भगवान शिव के प्रति बैर और विरोध भाव पैदा हो गया।



एक बार देवलोक में ब्रह्मा ने धर्म के निरूपण के लिए एक सभा का आयोजन किया था। सभी बड़े-बड़े देवता सभा में एकत्र होगये थे। भगवान शिव भी इस सभा में बैठे थे। सभा मण्डल में दक्ष का आगमन हुआ। दक्ष के आगमन पर सभी देवता उठकर खड़े हो गए, पर भगवान शिव खड़े नहीं हुए। उन्होंने दक्ष को प्रणाम भी नहीं किया। फलतः दक्ष ने अपमान का अनुभव किया। केवल यही नहीं, उनके ह्रदय में भगवान शिव के प्रति ईर्ष्या की आग जल उठी। वे उनसे बदला लेने के लिए समय और अवसर की प्रतीक्षा करने लगे।


एक बार सती और शिव कैलाश पर्वत पर बैठे हुए परस्पर वार्तालाप कर रहे थे। उसी समय आकाश मार्ग से कई विमान कनखल कि ओर जाते हुए दिखाई पड़े। सती ने उन विमानों को दिखकर भगवान शिव से पूछा, 'प्रभो, ये सभी विमान किसके है और कहां जा रहे हैं? भगवान शकंर ने उत्तर दिया आपके पिता ने बहोत बडे यज्ञ का आयोजन किया हैं। समस्त देवता और देवांगनाएं इन विमानों में बैठकर उसी यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए जा रहे हैं।'


इस पर सती ने दूसरा प्रश्न किया क्या मेरे पिता ने आपको यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए नहीं बुलाया?



भगवान शंकर ने उत्तर दिया, आपके पिता मुझसे बैर रखते है, फिर वे मुझे क्यों बुलाने लगे?




सती मन ही मन सोचने लगीं फिर बोलीं यज्ञ के इस अवसर पर अवश्य मेरी सभी बहनें आएंगी। उनसे मिले हुए बहुत दिन हो गए। यदि आपकी अनुमति हो, तो मैं भी अपने पिता के घर जाना चाहती हूं। यज्ञ में सम्मिलित हो लूंगी और बहनों से भी मिलने का सुअवसर मिलेगा। भगवान शिव ने उत्तर दिया, इस समय वहां जाना उचित नहीं होगा। आपके पिता मुझसे जलते हैं हो सकता हैं वे आपका भी अपमान करें। बिना बुलाए किसी के घर जाना उचित नहीं होता हैं। इस पर सती ने प्रश्न किया एसा क्युं? भगवान शिव ने उत्तर दिया विवाहिता लड़की को बिना बुलाए पिता के घर नही जाना चाहिए, क्योंकि विवाह हो जाने पर लड़की अपने पति कि हो जाती हैं। पिता के घर से उसका संबंध टूट जाता हैं। लेकिन सती पीहर जाने के लिए हठ करती रहीं। अपनी बात बार-बात दोहराती रहीं। उनकी इच्छा देखकर भगवान शिव ने पीहर जाने की अनुमति दे दी। उनके साथ अपना एक गण भी साथ में भेज दिया उस गण का नाम वीरभद्र था। सती वीरभद्र के साथ अपने पिता के घर गईं।


घर में सतीसे किसी ने भी प्रेमपूर्वक वार्तालाप नहीं किया। दक्ष ने उन्हें देखकर कहा तुम क्या यहां मेरा अपमान
कराने आई हो? अपनी बहनों को तो देखो वे किस प्रकार भांति-भांति के अलंकारों और सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित हैं। तुम्हारे शरीर पर मात्र बाघंबर हैं। तुम्हारा पति श्मशानवासी और भूतों का नायक हैं। वह तुम्हें बाघंबर छोड़कर और पहना ही क्या सकता हैं। दक्ष के कथन से सती के ह्रदय में पश्चाताप का सागर उमड़ पड़ा। वे सोचने लगीं उन्होंने यहां आकर अच्छा नहीं किया। भगवान ठीक ही कह रहे थे, बिना बुलाए पिता के घर भी नहीं जाना चाहिए। पर अब क्या हो सकता हैं? अब तो आ ही गई हूं।


पिता के कटु और अपमानजनक शब्द सुनकर भी सती मौन रहीं। वे उस यज्ञमंडल में गईं जहां सभी देवता और ॠषि-मुनि बैठे थे तथा यज्ञकुण्ड में धू-धू करती जलती हुई अग्नि में आहुतियां डाली जा रही थीं। सती ने यज्ञमंडप में सभी देवताओं के तो भाग देखे, किंतु भगवान शिव का भाग नहीं देखा। वे भगवान शिव का भाग न देखकर अपने पिता से बोलीं पितृश्रेष्ठ! यज्ञ में तो सबके भाग दिखाई पड़ रहे हैं किंतु कैलाशपति का भाग नहीं हैं। आपने उनका भाग क्यों नहीं रखा? दक्ष ने गर्व से उत्तर दिया मैं तुम्हारे पति शिव को देवता नहीं समझता। वह तो भूतों का स्वामी, नग्न रहने वाला और हड्डियों की माला धारण करने वाला हैं। वह देवताओं की पंक्ति में बैठने योग्य नहीं हैं। उसे कौन भाग देगा?


सती के नेत्र लाल हो उठे। उनकी भौंहे कुटिल हो गईं। उनका मुखमंडल प्रलय के सूर्य की भांति तेजोद्दीप्त हो उठा। उन्होंने पीड़ा से तिलमिलाते हुए कहा ओह! मैं इन शब्दों को कैसे सुन रहीं हूं मुझे धिक्कार हैं। देवताओ तुम्हें भी धिक्कार हैं! तुम भी उन कैलाशपति के लिए इन शब्दों को कैसे सुन रहे हो जो मंगल के प्रतीक हैं और जो क्षण मात्र में संपूर्ण सृष्टि को नष्ट करने की शक्ति रखते हैं। वे मेरे स्वामी हैं। नारी के लिए उसका पति ही स्वर्ग होता हैं। जो नारी अपने पति के लिए अपमान जनक शब्दों को सुनती हैं उसे नरक में जाना पड़ता हैं। पृथ्वी सुनो, आकाश सुनो और देवताओं, तुम भी सुनो! मेरे पिता ने मेरे स्वामी का अपमान किया हैं। मैं अब एक क्षण भी जीवित रहना नहीं चाहती। सती अपने कथन को समाप्त करती हुई यज्ञ के कुण्ड में कूद पड़ी। जलती हुई आहुतियों के साथ उनका शरीर भी जलने लगा। यज्ञमंडप में खलबली पैदा हो गई, हाहाकार मच गया। देवता उठकर खड़े हो गए। वीरभद्र क्रोध से कांप उटे। वे उछ्ल-उछलकर यज्ञ का विध्वंस करने लगे। यज्ञमंडप में भगदड़ मच गई। देवता और ॠषि-मुनि भाग खड़े हुए। वीरभद्र ने देखते ही देखते दक्ष का मस्तक काटकर फेंक दिया। समाचार भगवान शिव के कानों में भी पड़ा। वे प्रचंड आंधी की
भांति कनखल जा पहुंचे। सती के जले हुए शरीर को देखकर भगवान शिव ने अपने आपको भूल गए। सती के प्रेम और उनकी भक्ति ने शंकर के मन को व्याकुल कर दिया। उन शंकर के मन को व्याकुल कर दिया जिन्होंने काम पर भी विजय प्राप्त कि थी और जो सारी सृष्टि को नष्ट करने की क्षमता रखते थे। वे सती के प्रेम में खो गए, बेसुध हो गए।


भगवान शिव ने उन्मत कि भांति सती के जले हुए शरीर को कंधे पर रख लिया। वे सभी दिशाओं में भ्रमण करने लगे। शिव और सती के इस अलौकिक प्रेम को देखकर पृथ्वी रुक गई, हवा रूक गई, जल का प्रवाह ठहर गया और रुक गईं देवताओं की सांसे। सृष्टि व्याकुल हो उठी, सृष्टि के प्राणी पुकारने लगे— पाहिमाम! पाहिमाम! भयानक संकट उपस्थित देखकर सृष्टि के पालक भगवान विष्णु आगे बढ़े। वे भगवान शिव की बेसुधी में अपने चक्र से सती के एक-एक अंग को काट-काट कर गिराने लगे। धरती पर इक्यावन स्थानों में सती के अंग कट-कटकर गिरे। जब सती के सारे अंग कट कर गिर गए, तो भगवान शिव पुनः अपने आप में आए। जब वे अपने आप में आए, तो पुनः सृष्टि के सारे कार्य चलने लगे।


धरती पर जिन इक्यावन स्थानों में सती के अंग कट-कटकर गिरे थे, वे ही स्थान आज शक्ति के पीठ स्थान माने जाते हैं। आज भी उन स्थानों में सती का पूजन होता हैं, उपासना होती हैं। धन्य था शिव और सती का प्रेम। शिव और सती के प्रेम ने उन्हें अमर और वंदनीय बना दिया हैं।

वैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग की कथा वैद्यनाथ धाम की पौराणिक कथा


वैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग की कथा  वैद्यनाथ धाम की पौराणिक कथा 


पौराणिक कथाओं के अनुसार यह ज्योर्तिलिंग लंकापति रावण द्वारा यहां लया गया था. इसकी एक बड़ी ही रोचक कथा है. रावण भगवान शंकर का परम भक्त था. शिव पुरण के अनुसार एक बार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण हिमालय पर्वत पर जाकर शिव लिंग की स्थापना करके कठोर तपस्या करने लगा. कई वर्षों तक तप करने के बाद भी भगवान शंकर प्रसन्न नहीं हुए तब रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने सिर की आहुति देने का निश्चय किया.


विधिवत पूजा करते हुए दशानन रावण एक-एक करके अपने नौ सिरों को काटकर शिव लिंग पर चढ़ाता गया जब दसवां सिर काटने वाला था तब भगवान शिव वहां प्रकट हुए और रावण को वरदान मांगने के लिए कहा. रावण को जब इच्छित वरदान मिल गया तब उसने भगवान शिव से अनुरोध किया कि वह उन्हें अपने साथ लंका ले जाना चाहता है.


शिव ने रावण से कहा कि वह उसके साथ नहीं जा सकते हैं. वह चाहे तो यह शिवलिंग ले जा सकता है. भगवान शिव ने रावण को वह शिवलिंग ले जाने दिया जिसकी पूजा करते हुए उसने नौ सिरों की भेंट चढ़ाई थी. शिवलिंग को ले जाते समय शिव ने रावण से कहा कि इस ज्योर्तिलिंग को रास्ते में कहीं भी भूमि पर मत रखना अन्यथा यह वहीं पर स्थापित हो जाएगा.


भगवान विष्णु नहीं चाहते थे कि यह ज्योर्तिलिंग लंका पहुंचे अत: उन्होंने गंगा से रावण के पेट में समाने का अनुरोध किया. रावण के पेट में जैसे ही गंगा पहुंची रावण के अंदर मूत्र करने की इच्छा प्रबल हो उठी. वह सोचने लगा कि शिवलिंग को किसी को सौंपकर लघुशंका करले तभी विष्णु भगवान एक ग्वाले के भेष में वहां प्रकट हुए. रावण ने उस ग्वाले बालक को देखकर उसे शिवलिंग सौंप दिया और ज़मीन पर न रखने की हिदायत दी.


रावण जब मूत्र करने लगा तब गंगा के प्रभाव से उसकी मूत्र की इच्छा समाप्त नहीं हो रही थी ऐसे में रावण को काफी समय लग गया और वह बालक शिव लिंग को भूमि पर रखकर विलुप्त हो गया. रावण जब लौटकर आया तब लाख प्रयास करने के बावजूद शिवलिंग वहां से टस से मस नहीं हुआ अंत में रावण को खाली हाथ लंका लौटना जाना पड़ा. बाद में सभी देवी-देवताओं ने आकर इस ज्योर्तिलिंग की पूजा की और विधिवत रूप से स्थापित किया.

बुधवार, 8 मई 2013

"राजस्थान के 40 लाख घरों में बिजली नहीं" वसुन्धरा राजे

"राजस्थान के 40 लाख घरों में बिजली नहीं" वसुन्धरा राजे 

टोडाभीम/करौली। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वसुन्धरा राजे ने कहा है कि आजादी के 65 साल बाद भी राजस्थान के करीब 40 लाख घरों में बिजली के कनेक्शन नहीं है। वे आज भी केरोसिन से जलने वाली चिमनी से अपने घरों में उजाला करते हैं। क्या 50 साल तक राजस्थान में शासन करने वाली कांग्रेस ने इस बारे में सोचा है कभी। कांग्रेस ने इन 50 सालों में प्रदेश का नहीं,खुदका विकास किया है। लोगों को लूटा है और अपनी जेबे भरी है।


सुराज संकल्प यात्रा के दौरान राजे बुधवार को करौली जिले के टोडाभीम कस्बे में एक सभा में बोल रही थी। इसके अलावा भी राजे ने करीब दर्जनभर उन स्वागत कार्यRमों को भी सम्बोधित किया,जो सभा में बदल गये। करीब 40 जगह राजे का जोरदार स्वागत हुआ।


उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने गरीब को गरीब ही रखा। कभी उसके उत्थान के बारे में नहीं सोचा जो भी गरीबों के लिये योजनाएं बनाई उनके पीछे कांग्रेस का मकसद खुदका घर भरने का रहा। इसलिये गरीब और अमीर की खाई कम नहीं हुई,बढ़ती ही गई।

गोपालगढ़ में मौतों की जिम्मेदार गहलोत सरकार

वसुन्धरा राजे ने कहा कि विपक्ष तो सरकार पर आरोप लगाता ही है,लेकिन इस सरकार पर तो इस सरकार के मंत्री ही बरस रहे हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष हबीबुल्ला है,जिन्हें इनकी केन्द्र सरकार ने ही नियुक्त किया है। उन्होंने जयपुर में एक कार्यRम में साफ-साफ कहा कि गोपालगढ़ कांड में सरकार ने अपने ही लोगों पर गोलियां चलवाई। गोपालगढ़ कांड में कई बेकसूर लोगों की जान गई। इस घटना को समझदारी से रोका जा सकता था। लेकिन सरकार ऎसा नहीं कर पाई। हबीबुल्ला ने ये भी कहा कि गहलोत सरकार इन बेकसूर लोगों की मौतों की जिम्मेदार है। ये सरकार का फेल्योर है। राजे ने कहा कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग गोपालगढ़ कांड में जिस सरकार को दोषी मान रहा है उसे सत्ता में बने रहने का कोई हक नहीं है।


मंत्री ही बता रहे हैं सरकार को जीरो


वसुन्धरा राजे ने कहा कि अल्पसंख्यक आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष ही नहीं,इस सरकार को तो इस सरकार के नुमाइंदे भी जीरो बता रहे हैं। राज्य के अल्पसंख्यक मामलात मंत्री अमीन खां ने एक कार्यRम में सार्वजनिक रूप से कहा कि प्रधानमंत्री अल्पसंख्यक कल्याण के 15 सूत्रीय कार्यRम में राजस्थान सरकार ग्राउण्ड लेवल पर जीरो है। इनकी सरकार के मंत्री ही सरकार के काम काज को जीरो नम्बर दे रहे हैं।

किसी का हक नहीं छीनेंगे

वसुन्धरा राजे ने कहा कि लोग भ्रम फैला रहे हैं कि हम आरक्षण में किसी का हक छीनेंगे। उन्होंने कहा कि हमने मौजुदा आरक्षण से छेड़छाड़ किये बिना ही गुर्जर सहित विशेष पिछड़ा वर्ग को 5 प्रतिशत और आर्थिक रूप से पिछडे हुए लोगों को 14 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला लिया था। जिसे ये सरकार 9वीं अनुसूची में डलवाती तो इसका सभी को लाभ होता। सरकार के दो केन्द्रीय मंत्री नमोनारायण मीणा और सचिन पायलट केन्द्र में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं,वे भी आरक्षण विधेयक 2008 को 9वीं अनुसूची में डलवाते तो अच्छा रहता।