सोमवार, 29 नवंबर 2010
शनिवार, 27 नवंबर 2010
सोमवार, 22 नवंबर 2010
रेगिस्तान के द्रोणाचार्य ने रचा इतिहास
रेगिस्तान के द्रोणाचार्य ने रचा इतिहास
बाड़मेर। बाड़मेर जिले की सीमा पर स्थित जैसलमेर के छोटे-से गांव सिहड़ार के रहने वाले भारतीय सेना के सुबेदार मेजर रिड़मलसिंह भाटी ने देश को एक साथ दो-दो पी टी उषा देकर इतिहास रच दिया है। भारत की राष्ट्रीय एथलीट टीम में लम्बी दौड़ स्पर्द्धा के कोच भाटी की शिष्य प्रीजा श्रीधरन व कविता राउत ने दस हजार मीटर दौड़ में रविवार को ग्वांगझू एशियाड में क्रमश: स्वर्ण व रजत मेडल जीतकर देश का गौरव बढ़ाया।
रेगिस्तान के द्रोणाचार्य रिड़मलसिंह भाटी की सफलता की यात्रा उपलब्घियों भरी है, जो ग्वांगझू एशियाड तक पहुंचते-पहुंचते स्वर्णिम व ऎतिहासिक हो गई है। भाटी के शिष्यों ने पिछले चार वर्ष मे एशिया स्तर पर 87 मेडल एवं हाल ही में दिल्ली में सम्पन्न हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में एक मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है। एक खिलाड़ी के रूप में ट्रेक को अलविदा कहने के बाद 2006 में वे राष्ट्रीय एथलेटिक्स टीम के कोच बने और प्रतिभाओं को निखारने में जुट गए। प्रीजा ने रविवार को ग्वांगझू में गोल्ड मेडल जीतकर भाटी को स्वर्णिम गुरूदक्षिणा दी।
अगला लक्ष्य ओलम्पिक मेडल
पूरे देश के लिए गौरव की बात है कि प्रीजा व कविता ने एशियाड में मेडल जीते हैं। इन तीनों का कोच होने के नाते मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है, लेकिन हमारा लक्ष्य ओलम्पिक में देश के लिए मेडल जीतना है। -सुबेदार मेजर रिड़मलसिंह भाटी
भारत-पाक सरहद पर वीरातरा स्थित वीरातरा माता का मंदिर
भारत-पाक सरहद पर वीरातरा स्थित वीरातरा माता का मंदिर सैकड़ों वषोंर से आस्था का केन्द्र बना हुआ है। यहां प्रति वर्ष चैत्र,भादवा एवं माघ माह की शुक्ल पक्ष की तेरस एवं चौदस को मेला लगता है। अखंड दीपक की रोशनी,नगाड़ों की आवाज के बीच जब जनमानस नारियल जोत पर रखते है तो एक नई रोशनी रेगिस्तान के वीरान इलो में चमक उठती है।
वीरातरा माता की प्रतिमा प्रकट होने के पीछे कई दंतकथाएं प्रचलित है। एक दंतकथा के मुताबिक प्रतिमा को पहाड़ी स्थित मंदिर से लाकर स्थापित किया गया। अधिकांश जनमानस एवं प्राचीन इतिहास से संबंध रखने वाले लोगों का कहना है कि यह प्रतिमा एक भीषण पाषाण टूटने से प्रकट हुई थी। यह पाषाण आज भी मूल मंदिर के बाहर दो टूकड़ों में विद्यमान है। वीरातरा माता की प्रकट प्रतिमा से एक कहानी यह भी जुड़ी हुई है कि पहाड़ी स्थित वीरातरा माताजी के प्रति लोगों की अपार श्रद्घा थी। कठिन पहाड़ी चढ़ाई, दुर्गम मार्ग एवं जंगली जानवरों के भय के बावजूद श्रद्घालु दर्शन करने मंदिर जरूर जाते थे। इसी आस्था की वजह से एक 80 वर्षीय वृद्घा माताजी के दर्शन करने को पहाड़ी के ऊपर चढ़ने के लिए आई। लेकिन वृद्घावस्था के कारण ऊपर चढ़ने में असमर्थ रही। वह लाचार होकर पहाड़ी की पगडंडी पर बैठ गई। वहां उसने माताजी का स्मरण करते हुए कहा कि वह दर्शनार्थ आई थी। मगर शरीर से लाचार होने की वजह से दर्शन नहीं कर पा रही है। उसे जैसे कई अन्य भक्त भी दर्शनों को लालायित होने के बाद दर्शन नहीं कर पाते। अगर माताजी का ख्याल रखती है तो नीचे तलहटी पर आकर छोटे बच्चों एवं वृद्घों को दर्शन दें। उस वृद्घा की इच्छा के आगे माताजी पहाड़ी से नीचे आकर बस गई। वीरातरा माताजी जब पहाड़ी से नीचे की तरफ आई तो जोर का भूंप आया। साथ ही एक बड़ा पाषाण पहाड़ी से लुढ़कता हुआ मैदान में आ गिरा। पाषाण दो हिस्सों में टूटने से जगदम्बे माता की प्रतिमा प्रकट हुई। इसे बाद चबूतरा बनाकर उस पर प्रतिमा स्थापित की गई। सर्वप्रथम उस वृद्ध महिला ने माताजी को नारियल चढ़ाकर मनोकामना मांगी।
प्रतिमा स्थापना के बाद इस धार्मिक स्थान की देखभाल भीयड़ नामक भोपा करने लगा। भीयड़ अधिकांश समय भ्रमण कर माताजी के चमत्कारों की चर्चा करता। माताजी ने भीयड़ पर आए संकटों को कई बार टाला। एक रावल भाटियों ने इस इलो में घुसकर पशुओं को चुराने एवं वृक्षों को नष्ट करने का प्रयत्न किया। भाटियों की इस तरह की हरकतों को देखकर भोपों ने निवेदन किया कि आप लोग रक्षक है। ऐसा कार्य न करें, मगर भाटियों ने इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। उल्टे भोपों को परेशान करना प्रारंभ कर दिया। लाचार एवं दुखी भोपे भीयड़ के पास आए। भीयड़ ने भी भाटियों से प्रार्थना की। इसे बदले तिरस्कार मिला। अपनी मर्यादा और इलाके के नुकसान को देखकर वह बेहद दुःखी हुआ। उसने वीरातरा माता से प्रार्थना की। माता ने अपने भक्त की प्रार्थना तत्काल सुनते हुए भाटियों को सेंत दिया कि वे ऐसा नहीं करें। मगर जिद्द में आए भाटी मानने को तैयार नहीं हुए। इस पर उनकी आंखों से ज्योति जाने लगी। शरीर में नाना प्रकार की पीड़ा होने लगी। लाचार भाटियों ने क्षमास्वरूप माताजी का स्मरण किया और अपनी करतूतों की माफी मांगी। अपने पाप का प्रायश्चित करने पर वीरातरा माताजी ने इन्हें माफ किया। भाटियों ने छह मील की सीमा में बारह स्थानों का निर्माण करवाया। आज भी रोईडे का थान,तलेटी का थान, बेर का थान, तोरणिये का थान, मठी का थान,ढ़ोक का थान, धोरी मठ वीरातरा, खिमल डेरो का थान, भीयड़ भोपे का थान, नव तोरणिये का थान एवं बांकल का थान के नाम से प्रसिद्ध है। वीरातरा माताजी की यात्रा तभी सफल मानी जाती है जब इन सभी थानों की यात्रा कर दर्शन किए जाते है।
चमत्कारों की वजह से कुल देवी मानने वाली महिलाएं न तो गूगरों वाले गहने पहनती है और न ही चुड़ला। जबकि इन इलो में आमतौर पर अन्य जाति की महिलाएं इन दोनों वस्तुओं का अनिवार्य रूप से उपयोग करती है। वीरातरा माता के दर्शनार्थ बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात समेत कई प्रांतों के श्रद्घालु यहां आते हैं।
"Om Jai Shiv Omkara" - Lord Shiva Aarti
शनिवार, 20 नवंबर 2010
dil hum hum kare ghabraye .. film rudali
शुक्रवार, 19 नवंबर 2010
गुरुवार, 18 नवंबर 2010
शनिवार, 13 नवंबर 2010
thar press club barmer
rajasthan chief minister ashok gehlot,ownered by chandan singh bhati ,co ordinetor thar press club barmer
बुधवार, 3 नवंबर 2010
शनिवार, 30 अक्तूबर 2010
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