लड़कियों की ख़रीद-फ़रोख़्त का काला सच
साभार।।।।नतालिया एंतेलावा
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस, दिल्ली
दिल्ली सामूहिक बलात्कार की शिकार युवती की मौत ने भारतीय समाज में औरतों के हालात पर सोचने की एक वजह दी है.
गर्भ के भीतर ही नवजात लड़कियों को मार दिए जाने के बारे में तो बहुत कुछ कहा और सुना जाता है लेकिन इन सब के बीच देश भर में हो रही लड़कियों की खरीद फरोख्त का जिक्र कहीं गुम हो जाता है.
भारतीय सीमा से लगे बांग्लादेश के एक गांव से लापता हुई रुख़साना की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. हरियाणा में पुलिस ने जब उसे अपने संरक्षण में लिया था तब वह एक घर में फर्श साफ कर रही थी.
बड़ी-बड़ी आँखों वाली वह लड़की हाथ में कंघी पकड़े कमरे के ठीक बीच में खड़ी, पुलिस वालों के बरसते सवालों का सामना कर रही थी, “तुम कितने साल की हो? यहाँ कैसे आई?”
उसने जवाब दिया, “चौदह, मुझे अगवा किया गया था.”
और जैसे ही रुख़साना ने अपनी जुबां थोड़ी और खोली, एक उम्रदराज औरत पुलिस वालों का घेरा तोड़ते हुए चिल्लाई, “वह अट्ठारह की है, करीब-करीब 19 की. मैंने इसके मां-बाप को इसके बदले पैसे दिए हैं.”
फिर जैसे ही पुलिस रुख़साना को घर से बाहर ले जाने लगी तो वह औरत उन्हें रुकने के लिए कहती है. वह लड़की की ओर लगभग दौड़ते हुए पहुंचती है और उसके झुमकों की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहती है, “ये मेरे हैं.”
गुम हुआ बचपन
साल भर पुरानी बात है कि जब 13 साल की रुख़साना भारत-बांग्लादेश की सीमा से लगे एक छोटे से गांव में अपने मां-बाप और दो छोटे भाई-बहनों के साथ रहती थी.
रुख़साना बीते दिनों को याद करती हैं, “मुझे स्कूल जाना और अपनी छोटी बहन के साथ खेलना अच्छा लगता था.”
और एक रोज स्कूल से घर लौटते वक्त उसका बचपन कहीं खो गया. उसे तीन लोग एक कार में उठा ले गए.
रुख़साना ने बताया, “उन लोगों ने मुझे चाकू दिखाया और विरोध करने पर मुझे टुकड़े-टुकड़े कर देने की धमकी दी.”
कार, बस और ट्रेन से तीन दिनों के सफ़र के बाद वह हरियाणा पहुंची, जहाँ उसे चार लोगों के एक परिवार के हाथों बेच दिया गया. उस परिवार में एक माँ और और तीन बेटे थे.
एक साल तक उसे घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी. रुख़साना कहती है, “मुझे बहुत सताया गया, पीटा गया और खुद को मेरा पति कहने वाले परिवार के सबसे बड़े लड़के ने मेरी इज्जत को कई बार तार-तार किया.”
रुख़साना कहती है, "वह मुझसे कहा करता था कि मैंने तुम्हें खरीदा है, इसलिए जैसा कहता हूं, वैसा करो. उसने और उसकी मां ने मुझे पीटा, मुझे लगा कि मैं अपने परिवार को दोबारा नहीं देख पाउंगी, मैं हर रोज रोया करती थी."
लड़कियों की खरीद फरोख्त
भारत में लाखों लड़कियां हर साल गुम हो जाती हैं. उन्हें ज्यादातर वेश्यावृत्ति और घरेलू कामकाज के लिए बेचा जाता है. रुख़साना जैसी लड़कियों को उत्तर भारत के कुछ राज्यों में शादी के लिए भी बेचा जाता है.
इन राज्यों में गैरकानूनी तौर पर लड़कियों को उनके जन्म से पहले ही मारने के चलन की वजह से स्त्री-पुरुष के लिंगानुपात में कमी आई है.
बच्चों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनिसेफ ने इसे जनसंहार की स्थिति बताया है.
यूनिसेफ का कहना है कि भारत में कन्या भ्रूण हत्या और नवजात लड़कियों को मार दिए जाने की वजह से हर साल 50 लाख औरतें गुमशुदा हो जाती हैं. हालांकि भारत सरकार इन आंकड़ों से इनकार करती है लेकिन हरियाणा का यथार्थ तर्क करने की कम ही गुंजाइश छोड़ता है.
रुख़साना को खरीदने वाली औरत ने पुलिस को समझाने की कोशिश की. उसने कहा, हमारे पास यहां बहुत कम लड़कियां हैं. यहां बंगाल से कई लड़कियां आई हुई हैं. मैंने इस लड़की के बदले पैसे चुकाए हैं.
भारत में महिलाओं की स्थिति को लेकर चिंता जताई गई है
इस बात को लेकर आधिकारिक रूप से कोई आंकड़ा नहीं है कि उत्तर भारत के राज्यों में शादी के इरादे से कितनी लड़कियों की खरीद फरोख्त की जाती है.
लेकिन इस मुद्दे पर काम कर रहे लोगों का मानना है ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है और इसकी वजह उत्तर के राज्यों में तुलनात्मक रूप से समृद्धि और भारत के दूसरे राज्यों में गरीबी का बढ़ना है.
बिगड़ता लिंगानुपात
इन पीड़ितों की मदद के लिए पुलिस के साथ काम करने वाली संस्था शक्ति वाहिनी से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता ऋषि कांत कहते हैं, “उत्तर भारत के हर घर में इसका दबाव महसूस किया जा रहा है. हर घर में जवान लड़के हैं और उन्हें लड़कियां नहीं मिल रहीं हैं जिससे वे तनाव में हैं.”
बीबीसी ने पश्चिम बंगाल के सुंदरबन के दक्षिणी चौबीस परगना जिले के पांच गांवों का दौरा किया और पाया कि हर जगह बच्चे गायब हुए हैं और उनमें ज्यादातर लड़कियां हैं.
हाल ही में जारी हुए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भारत में साल 2011 में लगभग 35 हज़ार बच्चे गुमशुदा हुए हैं और उनमें से 11 हज़ार पश्चिम बंगाल से हैं. पुलिस का अनुमान है कि महज 30 फीसदी मामले ही वास्तव में दर्ज हो पाए हैं.
पांच साल पहले सुंदरबन में एक जानलेवा चक्रवातीय तूफान आया था और इससे धान की फसल तबाह हो गई थी और इसके बाद से ही वहां मानव व्यापार बढ़ गया.
"पुलिस ने हमारे लिए कुछ नहीं किया. वे एक बार दलाल के घर आए मगर उसे गिरफ्तार नहीं किया. मैं जब उनके पास गया तो उन्होंने मेरे साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया. इसलिए मैं पुलिस के पास जाने से डरता हूं"
बिमल सिंह, एक गुमशुदा लड़की के पिता
इस तूफान के बाद हज़ारों लोगों की तरह स्थानीय खेतिहर मजदूर बिमल सिंह की आमदनी का जरिया छिन गया. एक पड़ोसी ने जब उनकी 16 साल की बेटी बिसंती को दिल्ली में नौकरी दिलाने की पेशकश की तो बिमल को यह खुशखबरी की तरह लगी. बिमल इसके बाद दोबारा कभी अपनी बेटी को नहीं सुन पाए.
बिमल कहते हैं, “पुलिस ने हमारे लिए कुछ नहीं किया. वे एक बार दलाल के घर आए मगर उसे गिरफ्तार नहीं किया. मैं जब उनके पास गया तो उन्होंने मेरे साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया. इसलिए मैं पुलिस के पास जाने से डरता हूं.”
धंधे का दायरा
कोलकाता की एक झुग्गी में जब हमने लड़कियों की खरीद फरोख्त करने वाले एक शख्स से मुलाकात की तो उसने नाम न जाहिर करने की शर्त पर इस धंधे के बारे में खुलकर बातचीत की.
उसने कहा, "मांग बढ़ रही है और इस बढ़ती मांग की वजह से हमने बहुत पैसा बनाया है. मैंने अब दिल्ली में तीन घर खरीद लिए हैं."
वह कहता है, "मैं हर साल 150 से 200 लड़कियों की खरीद फरोख्त करता हूं. इनकी उम्र 10-11 से शुरू होती है और ये ज्यादा से ज्यादा 16-17 साल तक की होती हैं."
भारत में साल 2011 में लगभग 35 हज़ार बच्चे गुमशुदा हुए
यह शख्स कहता है, "जहां से ये लड़कियां आती हैं, मैं वहां नहीं जाता लेकिन मेरे लोग वहां काम करते हैं. हम उनके मां-बाप से कहते हैं कि हम उनकी बेटियों को दिल्ली में काम दिलाएंगे और इसके बाद उन्हें नौकरी दिलाने वाली एजेंसियों के पास भेज दिया जाता है. बाद में उनके साथ क्या होता है, इससे मुझे कोई मतलब नहीं."
उसने बताया कि स्थानीय नेताओं और पुलिस को इसके बारे में सब पता होता है. इस काम के लिए मैंने कोलकाता, दिल्ली और हरियाणा, सभी जगहों की पुलिस को रिश्वत दी है.
हालांकि पश्चिम बंगाल पुलिस के अधिकारी शंकर चक्रवर्ती पुलिस के भ्रष्टाचार को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं और कहते हैं कि उनकी पुलिस मानव तस्करी की रोकथाम के लिए कृतसंकल्प है.
चक्रवर्ती कहते हैं, "हम लोग जागरुकता अभियान चला रहे हैं. हमने देश के कई हिस्सों से लड़कियां छुड़ाई भी हैं और हमारी लड़ाई जारी है."
ऋषि कांत कहते हैं कि पुलिस को बदल देने भर से नतीजे नहीं निकलेंगे. जरूरत उनके पुनर्वास के बेहतर इंतजाम की है और अधिक संख्या में फास्ट ट्रैक अदालतों की है.
और इससे भी ज्यादा जरूरत नजरिए में बदलाव की है. तब तक भारत में ये कुचक्र यूं ही चलता रहेगा.