नई दिल्ली. दिल्ली गैंगरेप और मर्डर केस के बाद बलात्कारियों को फांसी की सजा देने की मांग जोर पकड़ चुकी है, लेकिन हाल ही में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार और हत्या के दोषी की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि दोषी नशे में था और उसकी दिमागी हालत भी ठीक नहीं थी।
यह मामला पुणे में एक गर्भवती महिला से बलात्कार करने और उसकी दादी सास को मारने का था। इस मामले में साईनाथ कैलाश अभंग नाम का आदमी दोषी था। उसने 10 सितंबर, 2007 को पुणे में महिला के घर में घुस कर उसकी जान ले ली थी। उसके बाद उसने महिला की बाईं कलाई और सीधे हाथ की चार अंगुलियां काट दी थीं। फिर उसने मृतक महिला की एक गर्भवती रिश्तेदार पर बार-बार हमला किया और उसके साथ बलात्कार किया। सर्वोच्च अदालत ने घायल महिला के बयान समेत सभी साक्ष्य को देखने के बाद दोषी को राहत दी। घायल महिला ने बताया था कि आरोपी नशे में था।
पीडि़त परिवार अदालत के हालिया फैसले से गुस्से में है। पीड़ित के परिवार ने रविवार को कहा कि दोषी को जीने का हक नहीं है। परिवार की ओर से वकील डी वाई जाधव ने कहा, 'यह दुर्लभ से दुर्लभतम मामला है। मेरी मुवक्किल इस जघन्य अपराध को अंजाम देने वाले को मौत की सजा चाहती थीं और निराश है।' जाधव ने पुणे सेशंस कोर्ट में सरकारी वकील के तौर पर मुकदमे में पक्ष रखा था। वहां आरोपी को मौत की सजा सुनाई गई थी। हाई कोर्ट ने भी मौत की सजा को बरकरार रखा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सजा को इस आधार पर उम्रकैद में तब्दील कर दिया कि आरोपी नशे में था और दिमागी रूप से ठीक स्थिति में नहीं था। उस समय उसकी उम्र 23 साल थी।
दिल्ली में 16 दिसंबर को हुई गैंगरेप की घटना से तीन दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने विचार व्यक्त किया था कि किसी अपराध को दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी (रेयरेस्ट ऑफ रेयर) में रखने से पहले आरोपी की मानसिक स्थिति की जांच करनी चाहिए। न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार (अब सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की बेंच ने कहा था कि अपराध को रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस में रखने से पहले अपराध को अंजाम देने के तरीके और आरोपी की मानसिक स्थिति का अध्ययन किया जाना चाहिए। बेंच ने कहा था, 'मृत्युदंड देने के लिए सीआरपीसी की धारा 354 (3) के तहत विशेष कारणों में केवल अपराध और उसके अनेक पहलू ही नहीं बल्कि अपराधी और उसकी पृष्ठभूमि भी आधार होते हैं।
यह मामला पुणे में एक गर्भवती महिला से बलात्कार करने और उसकी दादी सास को मारने का था। इस मामले में साईनाथ कैलाश अभंग नाम का आदमी दोषी था। उसने 10 सितंबर, 2007 को पुणे में महिला के घर में घुस कर उसकी जान ले ली थी। उसके बाद उसने महिला की बाईं कलाई और सीधे हाथ की चार अंगुलियां काट दी थीं। फिर उसने मृतक महिला की एक गर्भवती रिश्तेदार पर बार-बार हमला किया और उसके साथ बलात्कार किया। सर्वोच्च अदालत ने घायल महिला के बयान समेत सभी साक्ष्य को देखने के बाद दोषी को राहत दी। घायल महिला ने बताया था कि आरोपी नशे में था।
पीडि़त परिवार अदालत के हालिया फैसले से गुस्से में है। पीड़ित के परिवार ने रविवार को कहा कि दोषी को जीने का हक नहीं है। परिवार की ओर से वकील डी वाई जाधव ने कहा, 'यह दुर्लभ से दुर्लभतम मामला है। मेरी मुवक्किल इस जघन्य अपराध को अंजाम देने वाले को मौत की सजा चाहती थीं और निराश है।' जाधव ने पुणे सेशंस कोर्ट में सरकारी वकील के तौर पर मुकदमे में पक्ष रखा था। वहां आरोपी को मौत की सजा सुनाई गई थी। हाई कोर्ट ने भी मौत की सजा को बरकरार रखा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सजा को इस आधार पर उम्रकैद में तब्दील कर दिया कि आरोपी नशे में था और दिमागी रूप से ठीक स्थिति में नहीं था। उस समय उसकी उम्र 23 साल थी।
दिल्ली में 16 दिसंबर को हुई गैंगरेप की घटना से तीन दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने विचार व्यक्त किया था कि किसी अपराध को दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी (रेयरेस्ट ऑफ रेयर) में रखने से पहले आरोपी की मानसिक स्थिति की जांच करनी चाहिए। न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार (अब सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की बेंच ने कहा था कि अपराध को रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस में रखने से पहले अपराध को अंजाम देने के तरीके और आरोपी की मानसिक स्थिति का अध्ययन किया जाना चाहिए। बेंच ने कहा था, 'मृत्युदंड देने के लिए सीआरपीसी की धारा 354 (3) के तहत विशेष कारणों में केवल अपराध और उसके अनेक पहलू ही नहीं बल्कि अपराधी और उसकी पृष्ठभूमि भी आधार होते हैं।