सोमवार, 6 दिसंबर 2010

yad karo kurbani...indo-pak war 1971









जब सीमावर्ती लोगों ने
पाक के इरादे नाकाम किये

भारत पाक के मध्य तृतीय युद्ध 1971 में पाक की भीषण गोलाबारी सही हैं। पाक की गोलाबारी व बमबारी का जिस दृ़ता के साथ बाड़मेर से साहसी नागरिकों ने सामना किया था, वह इतिहास बन चुका हैं। सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों ने युद्ध के दौरान विशेष उत्साह दिखाया, वहीं सेना का मार्गदर्शन कर पाक को शिकस्त देने में मदद की।
आज जब भारत पाक सीमा पर तनाव का माहौल हैं। दोनों की सेनाएं अपने अपने शस्त्र संभाल मोर्चे पर तैनात हैं। आज फिर सीमावर्ती गांवो के जवानों की भुजाएं पाक से दो चार हाथ करने को फडफडा रही हैं। सीमावर्ती गांवो के लोगो ने 1971 के युद्ध में अविस्मरणीय यादें आज भी ताजा हैं। गांवो के बुजुर्गो ने बताया कि पाक ने पहली बार एक साथ 19 बम हवाई जवाज से उतरलाई स्टेशन पर गिराए इन बमों के फटने से कोई हानि नहीं हुई। भारतीय सैनिकों ने इसी दिन 3 दिसम्बर 1971 को एंटी एयर क्राफ्ट गनो से शत्रु को भगा दिया। इसके अलावा एक केबिन, प्याऊ व दुकान नष्ट हो गई। अगले दिन 4 दिसम्बर को सायं सवा 5 बजे गडरारोड़ में एक तामलोरलीलमा के मध्य कई बम गिराए पाक ने। इसी बीच पाक ने हवाई हमले तेज कर दिये। 5 दिसम्बर को उतरलाई स्टेशन तथा गडरारोड़ में एकएक बम गिराया गया जो फटे भी मगर क्षति नहीं हुई। इस क्रम को 6 दिसम्बर को जारी रख पचपदरा मण्डली मार्ग पर स्थित मवडी गांव में एक साथ 43 बम गिराए जिसमें 41 फट ग तथा 2 बम बिना फटे ही रह गए। वहीं इसी दिन महाबार में 13 बम गिराए गए जिनमें पांच बम फटे और आठ बम बिना फटे ही रह गए। इन बमों के फटने से जानमाल की क्षति नहीं हुई क्योंकि लोग पहले से ही सुरक्षित स्थानों पर जा चुके थे।
अपनी विफलता पर घबराए पाक ने 7 दिसम्बर को पुनः रात्रि 11 बजे 5 बम गिराए मगर हानि नहीं हुई। बाड़मेर मुख्यालय को पहली बार 8 दिसम्बर को पाक के अब झेलने का अवसर मिला। पाक रात्रि लगभग 1 बजे मालगोदाम पर बम गिरा। मालगोदाम में रखी सामग्री जल गई। वहीं 5 मालगाडी के डिब्बे जलकर राख हो गये। इसी क्रम में उतरलाई हवाई अड्डे पर 1 बजकर 20 मिनिट पर बम गिराया। तत्पश्चात बाड़मेर रेल्वे स्टेशन पर स्थित सवारी रेलगाडी पर बम गिराया इससे चार यात्री डिब्बे में ही जलकर राख हो गये। इसी स्थान पर रखी पेट्रोल व डीजल की टंकियों को नागरिक सुरक्षा के जवानों ने तुरन्त खाली कर क्षति होने से बचाया। मगर पास रखे कोयलों में आग लग चुकी थी। स्वयं सेवको ने निस्वार्थ भावना से कार्य कर मालगोदाम कार्यालय में रखा फर्नीचर, रेकर्ड व अन्य सामग्री सुरक्षित स्थान पर डाली।
इसी रात्रि को लगभग ़ाई बजे पाक हवाई जहाज ने कोयले की ़ेरी में बम डाला मगर झाति नहीं हुई। तत्पश्चात दो बम मालगोदाम पर और गिराए गए जिसमें एक बम फटा मगर नुकसान नहीं हुआ। इसी तरह अगले दिन 9 दिसम्बर को सायं सा़े पांच बजे कोनरा तथा बच्चू का तला में 17 बम गिराए जिसमें 11 बम फटे, 5 बम फटे बिना ही रह गए तथा संदेहास्पद स्थिति में भी उन बमों के फटने से नुकसान हुआ। लखा की ़ाणी जलकर राख हो गई। वहीं लगभग 65 बकरियां जिन्दा जल गई। इसी रात्रि गौर का तला में चार बम गिराए गए जो बिनो फटे रहे। इसी दिन उतरलाई में एक बम गिराया मगर क्षति नहीं हुई।
अगले दिन 10 दिसम्बर को कुड़ला गांव के दीपसिंह की ़ाणी पर दो बम गिराए। दोनो बम फट जाने से कुछ घरों में नुकसान हुआ। अगले दिन 11 दिसम्बर को लगभग सा़े 8 बजे प्रातः रावतसर, कुडला के पास बम गिरे जिससे क्षति नहीं हुई, उधर नौ बजे प्रातः उतरलाई पर 2 बम गिराए जिके फट जाने से एक जीप जल गई तथा एक हवाई जहाज को क्षति पहुंची। रात सवा नौ बजे परबतसिंह की ़ाणी की कोटडी के पास 2 बम गिरे मगर क्षति नहीं हुई। रात्रि ड़े बजे गुलाबसिंह की ़ाणी के पास एक पेट्रोल की टंकी गिराई जिससे अग लगी मगर मामूली क्षति पहुंची। 12 दिसम्बर को जयसिन्धर स्टेशन पर बमबारी की जिससे कुछ नुकसान हुआ।
प्रातः पौने नौ बजे मीठडा खुर्द में दो बम गिराए मगर क्षति नहीं हुई। इसी दिन रात्रि 12 बजे सीमावर्ती नेवराड गांव में पैराशूट से सिलेंडर उतारा गया जो लगभग 8 कि.ग्रा. था। इस रात्रि को सरली गांव में 10 बम गिराए क्षति नहीं हुई मगर 40 गुणा 15 फीट के गड्े पड गए। इसी दिन गरल गांव के समीप रोशनी वाले सिलेंडर पैराशूट से उतारकर भय का वातावरण पैदा करने का असफल प्रयास किया गया।
इस प्रकार सेडवा में एक, बामरला में दो बम गिराए मगर क्षति नहीं हुई। पाकिस्तान ने बमबारी कर बाड़मेर की जनता में भय का वातावरण बनाने का असफल प्रयास किया। पाक को भारतीय सेना ने मुंह तोड जवाब दिया। पाक द्वारा लगभग 10 दिन लगातार बम बरसाने के बावजूद नागरिक शहर में रह कर पाक हमलों का मुकाबला किया। अंत में पाक को हार का सामना करना पड़ा। लोग आज भी अतीत को यादर कर रोमांचित हो उठते हैं। मगर इस सरहदी क्षेत्र के गांवो में 1971 के युद्ध के दौरान भीषण बमबारी की गई थी जिसमें लगभग 60 फीसदी पाक बम बिना फटे रह गए थे। 

रविवार, 5 दिसंबर 2010

पटवारी की गलती ने उसे पाकिस्तानी बना उाला 35 सालों से खुद को भारतीय साबित करने में जुटा हैं मेगा






पटवारी की गलती ने उसे पाकिस्तानी बना डाला 

35 सालों से खुद को भारतीय साबित करने में जुटा हैं मेगा


बाडमेर सीमावर्ती बाडमेर जिले के सरहदी गांव बाण्डासर निवासी मेगे खान पिछले 35 सालों से खुइ को भारतीयसाबित करने में जुटा हैंएपटवारी की एक गलती नें उसे पाकिस्तानी बना उाला।सरकार नें पटवारी की रिपोर्ट के आधार पर उसकी सेकडों बीघा भूमी खालसा घोषित कर दिया।मेगा पिछले 35 सालों से अपनी खुद की जमीन वापिस पानें के लिऐं संधर्ष कर रहा हैं।इस संधर्ष के कारण मेगा ने निकाह तक नहीं किया।


यह कहानी हैं बाडमेर जिले के सरहदी गांव बाण्डासर के मेगा खान पुत्र मिसरा खान की।पाक सीमा से सटे इस गांव के मेगा खान की कृषि जमीन थी।इस जमीन पर खेती बाडी कर गुजारा करना था।1975 में तत्कालीन पटवारी गडरा रोड नें एक गलत रिपोर्ट जिला प्रशासन को पेश कर लिखा कि मेगा खान पुत्र मिसरा निवासी बाण्डासर पाकिस्तसन चला गया।पटवारी की रिपोर्ठ के आधार पर राज्य सरकार नें मेगा की जमीन यह कह कर खालसा कर दी कि मेगा हमेशा के लिऐं पाकिस्तान चला गया जबकि मेगा कभी पाक नही गया॥मेगा को जब यह पता चला कि उसकी जमीन खालसा हो गई,उसने सरकार के इस फैसले के खिलाफ न्यायालय में अपील की।35 साल से मेगा अपने आप को भारतीय साबित करने में जुटा रहा एंमेगा का राशन कार्ड,वोटर कार्ड बाण्इासर का बना हैं,राज्य सरकार से उसे विकलांग पेंशन मिल रही हैं।इसके बावजूइ मेगा को खुद को साबित करने में 35 साल लग गयें।जमीन वापसी की इस जंग में मेगा कानूनी दांव पेंच के आगे आर्थिक रूप से बुरी तरह प्रभावित हुआ।जिसके कारण दसकों कंवारा रहना पडा।मेगा को 35 साल बाद उपखण्ड मजिस्ट्रेट शिव नें उसकी जमीन को लौटाने के आदेश दिऐंतथा तहसीलदार शिव को आदेश दिया कि मेगा की जमीन लौटा कर ,जमीन उसके नाम की जाकर अमल दरामद की जाऐं। मजिस्ट्रेट के आदेश के 6 माह बाद भी तहसीलदार नें मेगा को उसकी जमीन नही लौटाईएना ही कोई कार्यवाही कींमेगा नें बुधवार को जिला कलेक्टर के आगे कई बार दरख्वास्त लगाई।जिला कलेक्टर नें उसे न्याय की आशा बंधाई थी ।मगर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई 

सोमवार, 22 नवंबर 2010

रेगिस्तान के द्रोणाचार्य ने रचा इतिहास


रेगिस्तान के द्रोणाचार्य ने रचा इतिहास
बाड़मेर। बाड़मेर जिले की सीमा पर स्थित जैसलमेर के छोटे-से गांव सिहड़ार के रहने वाले भारतीय सेना के सुबेदार मेजर रिड़मलसिंह भाटी ने देश को एक साथ दो-दो पी टी उषा देकर इतिहास रच दिया है। भारत की राष्ट्रीय एथलीट टीम में लम्बी दौड़ स्पर्द्धा के कोच भाटी की शिष्य प्रीजा श्रीधरन व कविता राउत ने दस हजार मीटर दौड़ में रविवार को ग्वांगझू एशियाड में क्रमश: स्वर्ण व रजत मेडल जीतकर देश का गौरव बढ़ाया।
रेगिस्तान के द्रोणाचार्य रिड़मलसिंह भाटी की सफलता की यात्रा उपलब्घियों भरी है, जो ग्वांगझू एशियाड तक पहुंचते-पहुंचते स्वर्णिम व ऎतिहासिक हो गई है। भाटी के शिष्यों ने पिछले चार वर्ष मे एशिया स्तर पर 87 मेडल एवं हाल ही में दिल्ली में सम्पन्न हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में एक मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है। एक खिलाड़ी के रूप में ट्रेक को अलविदा कहने के बाद 2006 में वे राष्ट्रीय एथलेटिक्स टीम के कोच बने और प्रतिभाओं को निखारने में जुट गए। प्रीजा ने रविवार को ग्वांगझू में गोल्ड मेडल जीतकर भाटी को स्वर्णिम गुरूदक्षिणा दी।
अगला लक्ष्य ओलम्पिक मेडल
पूरे देश के लिए गौरव की बात है कि प्रीजा व कविता ने एशियाड में मेडल जीते हैं। इन तीनों का कोच होने के नाते मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है, लेकिन हमारा लक्ष्य ओलम्पिक में देश के लिए मेडल जीतना है। -सुबेदार मेजर रिड़मलसिंह भाटी

भारत-पाक सरहद पर वीरातरा स्थित वीरातरा माता का मंदिर


भारत-पाक सरहद पर वीरातरा स्थित वीरातरा माता का मंदिर सैकड़ों वषोंर से आस्था का केन्द्र बना हुआ है। यहां प्रति वर्ष चैत्र,भादवा एवं माघ माह की शुक्ल पक्ष की तेरस एवं चौदस को मेला लगता है। अखंड दीपक की रोशनी,नगाड़ों की आवाज के बीच जब जनमानस नारियल जोत पर रखते है तो एक नई रोशनी रेगिस्तान के वीरान इलो में चमक उठती है।
वीरातरा माता की प्रतिमा प्रकट होने के पीछे कई दंतकथाएं प्रचलित है। एक दंतकथा के मुताबिक प्रतिमा को पहाड़ी स्थित मंदिर से लाकर स्थापित किया गया। अधिकांश जनमानस एवं प्राचीन इतिहास से संबंध रखने वाले लोगों का कहना है कि यह प्रतिमा एक भीषण पाषाण टूटने से प्रकट हुई थी। यह पाषाण आज भी मूल मंदिर के बाहर दो टूकड़ों में विद्यमान है। वीरातरा माता की प्रकट प्रतिमा से एक कहानी यह भी जुड़ी हुई है कि पहाड़ी स्थित वीरातरा माताजी के प्रति लोगों की अपार श्रद्घा थी। कठिन पहाड़ी चढ़ाई, दुर्गम मार्ग एवं जंगली जानवरों के भय के बावजूद श्रद्घालु दर्शन करने मंदिर जरूर जाते थे। इसी आस्था की वजह से एक 80 वर्षीय वृद्घा माताजी के दर्शन करने को पहाड़ी के ऊपर चढ़ने के लिए आई। लेकिन वृद्घावस्था के कारण ऊपर चढ़ने में असमर्थ रही। वह लाचार होकर पहाड़ी की पगडंडी पर बैठ गई। वहां उसने माताजी का स्मरण करते हुए कहा कि वह दर्शनार्थ आई थी। मगर शरीर से लाचार होने की वजह से दर्शन नहीं कर पा रही है। उसे जैसे कई अन्य भक्त भी दर्शनों को लालायित होने के बाद दर्शन नहीं कर पाते। अगर माताजी का ख्याल रखती है तो नीचे तलहटी पर आकर छोटे बच्चों एवं वृद्घों को दर्शन दें। उस वृद्घा की इच्छा के आगे माताजी पहाड़ी से नीचे आकर बस गई। वीरातरा माताजी जब पहाड़ी से नीचे की तरफ आई तो जोर का भूंप आया। साथ ही एक बड़ा पाषाण पहाड़ी से लुढ़कता हुआ मैदान में आ गिरा। पाषाण दो हिस्सों में टूटने से जगदम्बे माता की प्रतिमा प्रकट हुई। इसे बाद चबूतरा बनाकर उस पर प्रतिमा स्थापित की गई। सर्वप्रथम उस वृद्ध महिला ने माताजी को नारियल चढ़ाकर मनोकामना मांगी।
प्रतिमा स्थापना के बाद इस धार्मिक स्थान की देखभाल भीयड़ नामक भोपा करने लगा। भीयड़ अधिकांश समय भ्रमण कर माताजी के चमत्कारों की चर्चा करता। माताजी ने भीयड़ पर आए संकटों को कई बार टाला। एक रावल भाटियों ने इस इलो में घुसकर पशुओं को चुराने एवं वृक्षों को नष्ट करने का प्रयत्न किया। भाटियों की इस तरह की हरकतों को देखकर भोपों ने निवेदन किया कि आप लोग रक्षक है। ऐसा कार्य न करें, मगर भाटियों ने इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। उल्टे भोपों को परेशान करना प्रारंभ कर दिया। लाचार एवं दुखी भोपे भीयड़ के पास आए। भीयड़ ने भी भाटियों से प्रार्थना की। इसे बदले तिरस्कार मिला। अपनी मर्यादा और इलाके के नुकसान को देखकर वह बेहद दुःखी हुआ। उसने वीरातरा माता से प्रार्थना की। माता ने अपने भक्त की प्रार्थना तत्काल सुनते हुए भाटियों को सेंत दिया कि वे ऐसा नहीं करें। मगर जिद्द में आए भाटी मानने को तैयार नहीं हुए। इस पर उनकी आंखों से ज्योति जाने लगी। शरीर में नाना प्रकार की पीड़ा होने लगी। लाचार भाटियों ने क्षमास्वरूप माताजी का स्मरण किया और अपनी करतूतों की माफी मांगी। अपने पाप का प्रायश्चित करने पर वीरातरा माताजी ने इन्हें माफ किया। भाटियों ने छह मील की सीमा में बारह स्थानों का निर्माण करवाया। आज भी रोईडे का थान,तलेटी का थान, बेर का थान, तोरणिये का थान, मठी का थान,ढ़ोक का थान, धोरी मठ वीरातरा, खिमल डेरो का थान, भीयड़ भोपे का थान, नव तोरणिये का थान एवं बांकल का थान के नाम से प्रसिद्ध है। वीरातरा माताजी की यात्रा तभी सफल मानी जाती है जब इन सभी थानों की यात्रा कर दर्शन किए जाते है।
चमत्कारों की वजह से कुल देवी मानने वाली महिलाएं न तो गूगरों वाले गहने पहनती है और न ही चुड़ला। जबकि इन इलो में आमतौर पर अन्य जाति की महिलाएं इन दोनों वस्तुओं का अनिवार्य रूप से उपयोग करती है। वीरातरा माता के दर्शनार्थ बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात समेत कई प्रांतों के श्रद्घालु यहां आते हैं।

"Om Jai Shiv Omkara" - Lord Shiva Aarti

गुरुवार, 18 नवंबर 2010