इंटरनेट की रफ्तार के साथ बदलते रिश्ते और त्योहार
छगनसिंह चौहान की कलम से ...............
छगनसिंह चौहान की कलम से ...............
इंटरनेट की रफ्तार से साथ साथ हमारे आपसी रिश्तो और त्योहारों में भी बदलाव की रफ्तार आ रही है जिसे देख कर आभास हो रहा है की आने वाले वक्त में हमारी सामाजिक मान्यताएँ,परम्पराएँ तथा त्योहारों का उल्लास व उमंग खत्म हो जायेगा। बदलाव की रफ्तार के इस दौर में अगर हम थोड़ा पीछे देखें तो पता चलता है कि कुछ समय पहले तक आने वाले त्योहारों की रौनक घरो में महीनो भर पहले आ जाया करती थी और त्योहारों की तैयारियां महीना भर पहले से ही शुरू हो जाया करती थी। महिलाएं दीवारों, दरवाजों और फर्श को सजाने का काम करती थीं। पूरा घर अल्पना व रंगोली से सजाया करतीं थी और त्यौहार के दिन एक - दूसरे के घर जा कर बधाईया देने का दौर चलता था लेकिन आज कहां हैं ? अब किसे है सोशल नेटवर्किंग साइट्स से फुर्सत है । ये रफ्तार हमें त्योहारो के सच्चे उल्लास से कहीं दूर ले जा रही है। सोशल साइट्स पर युवाओं से लेकर बड़े तक मोबाइल के जाल में इस कद्र फंस चुके हैं कि आज निजी जिंदगी में किसी के पास इतना वक्त नहीं है कि वह अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिल सके और उनके साथ मिलकर त्योहारों के सच्चे उत्साह का आनंद ले सके जबकि सोशल साइट्स पर एक्टिव रहकर बात करते हुए अपना समय बिता देते है। अब ये करना आदत सा बनता जा रहा है। में ये नहीं कहता हु की आप इंटरनेट , सोशल नेटवर्किंग साइट्स चलाना बंद कर दे या छोड़ दे क्योकि आज के वक्त में इंटरनेट,सोशल नेटवर्किंग साइट्स उपयोग करना बहुत ही जरूर है मगर एक निर्धारत समय में ही इनका उपयोग करे ताकि आपके परिवार व रिश्तो को भी थोड़ा समय दे सके। इन सबके बीच अगर हम बात करे आने वाले पर्व रक्षाबंधन की जो भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है इसमें भी वक्त के साथ थोड़ा बदलाव जरूर आया है लेकिन फिर भी भाई-बहन के अटूट प्यार आज भी वही है और आने वाले वक्त में भी रक्षाबंधन के इस त्यौहार को बदलाव की रफ्तार ना लगे बस। अंत में इतना ही आप और हम सब मिलकर अपने आपसी रिश्तो और त्योहारों को बदलाव की रफ्तार से सुरक्षित रखने का प्रयास करे तो हमारे आपसी रिश्तो और त्योहारों का उल्लास व उमंग पहले की तरह बरकरार रहेगा।