शीतला सप्तमी पर मंदिर में उमड़ी भीड़:महिलाओं ने ठंडे पकवान का माता को लगाया भोग, बच्चों को मौसमी बीमारियों से बचाने की प्रार्थना
शीतला सप्तमी पर मंदिर में उमड़ी भीड़:महिलाओं ने ठंडे पकवान का माता को लगाया भोग, बच्चों को मौसमी बीमारियों से बचाने की प्रार्थना
जैसलमेर में शीतला सप्तमी का पर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। डेडानसर स्थित ऐतिहासिक शीतला माता मंदिर में सुबह 4 बजे से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।महिलाओं ने सोलह श्रृंगार कर मंदिर में पूजा-अर्चना की। उन्होंने परंपरागत रूप से तैयार किए गए ठंडे व्यंजनों का भोग माता को अर्पित किया। विशेष रूप से पारंपरिक व्यंजन भोग में शामिल थे। शीतला माता की पूजा का विशेष महत्व है। वैशाख, जेठ और आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला सप्तमी का पूजन किया जाता है। मान्यता है कि इन चार महीनों में व्रत रखने से शीतला से संबंधित बीमारियों से मुक्ति मिलती है। पूजा विधि में शीतल जल और ठंडे भोजन का भोग लगाना आवश्यक माना जाता है।
शीतला माता को ठंडे का भोग चढ़ाया
शीतला सप्तमी का त्योहार हर्षोल्लास से मनाया गया। मान्यताओं के अनुसार संक्रामक रोगों से मुक्ति दिलाने वाली और चेचक रोग से बचाने वाली शीतला माता को ठंडे का भोजन और पकवानों का भोग लगाया गया। घरों में ठंडे की तैयारियां गुरुवार से ही होनी शुरू हो गई थी। शुक्रवार को जल्दी उठकर घर केे सदस्यों ने सज-धजकर शहर में स्थित शीतला माता मंदिरों में पूजा-अर्चना की और शीतला माता
को ठंडे पकवानों का भोग लगाया।
परींडा पूजा हुई
जो श्रद्धालु मंदिर नहीं जा सके उन्होंने अपने-अपने घरों में पेयजल स्थल परींडेÓ पर मटकी की पूजा-अर्चना की। मटकी पर स्वास्तिक बनाया गया और ठंडे भोजन और भांति-भांति के पकवान माता को प्रसन्न करने के लिए चढ़ाए गए।
शीतला सप्तमी पर बासी भोजन का भोग लगाया
शीतला सप्तमी पर बासी भोजन का महत्त्व है। शीतला सप्तमी के दिन अधिकांश घरों में चूल्हे नहीं जले । भगवती को बासी भोजन का ही भोग लगाया जाता है। एक दिन पूर्व गृहिणियों ने खाना बनाकर रख दिया था। भोजन में दही, छाछ और घी के भांति-भांति के पकवान बनाए गए। शीतला सप्तमी के दिन माता को भोग चढ़ाकर प्रसाद स्वरूप भोजन ग्रहण किया गया।
राजपरिवार भी शामिल होता था शीतला सप्तमी पूजन में
रोगनाशिनी देवी शीतला की आराधना आम आदमी ही नहीं, राजपरिवार भी करता आया है। राज परिवार की परंपरा के अनुसार शीतला सप्तमी के दिन गाजे-बाजे के साथ देदानसर जाकर पूजा-अर्चना की जाती थी। इसके पीछे यह धारणा होती थी कि राज परिवार ही नहीं जनता भी स्वस्थ एवं सानंद रहे।
कहीं सप्तमी, कहीं अष्टïमी
रोग विनाशिनी शीतला की पूजा का लोक पर्व पारंपरिक रूप से कहीं सप्तमी तो कहीं अष्टïमी को मनाया जाता है। जैसलमेर के मूल निवासी शीतला सप्तमी को ही शीतला की पूजा करते हैं। जबकि जैसलमेर को छोड़ कर मारवाड़ और देश भर के अन्य भागों से आए गृहस्थ अष्टïमी को भी इस पर्व को पारंपरिक रूप से मनाते हैं।ड
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