फोटो बाड़मेर अब मोर आबू के पाडो में नहीं ,सीमा सुरक्षा बल की चौकियों में बोलते हैं
सरहद पर सीमा सुरक्षा बल के सरंक्षण में राष्ट्रिय पक्षी का बढ़ता कुनबा
बल की कई अग्रिम पोस्ट के कई केम्पस में सेकड़ो मोरो सरंक्षण
चंदन सिंह भाटी
बाड़मेर जैव विविधता थार के रेगिस्तान में खतरे में हैं ,इस मरुस्थलीय क्षेत्र में वन्य जीवो की कई प्रजातियां सरंक्षण के आभाव में विलुप्त हो गयी ,थार के ग्रामीण इलाको में कभी बहुतायत पाये जाने वाले राष्ट्रिय पक्षी मोरो की विलुप्ति पर्यावरण प्रेमियों के लिए चिंता का विषय बनी। फिर भी ना सरकारें गम्भीर हुई न ही वन विभाग ,
मोरो की मरुस्थलीय क्षेत्रो में बहुतायत का अंदाज़ इस बात से लगाया जा सकता हे की राजस्थानी लोक गीतों में मोरो पर कई गीत बने ,हैं मोरिया आछो बोल्यो रे धरती ,मोर बोले रे ओ मलजी आबू रे पाडो में ,जैसे कई गीत मोर की सांस्कृतिक महत्वता को दर्शाते हैं ,
पिछले एक दशक में जिले के ग्रामीण इलाको में मोर विलुप्त हो गए ,कभी गाँवो की रौनक थे मोर। घटते पेड़ों ने मोरो को विलुप्ति के कगार पर ले आये ,मगर अब मोर आबू के पाड़ों में नहीं सीमा सुरक्षा बल के कैम्पसों में बोलते ,हैं आपको यकीन नहीं होगा मगर जिले में सरहद पर सीमा सुरक्षा बल मोरो के सरंक्षक बने , सीमावर्ती अग्रिम पोस्टो पर बल के अधिकारियो और जवानों की दिन चर्या मोरो के साथ शुरू होती , मुनाबाव ,तामलोर ,गडरा ,मिठडाऊ ,देवा ,बी के डी ,केलनोर ,स्वरूपें का टला ,हुर्रो का तला ,जैसी सेकड़ो पोस्ट हे जंहा दो सौ से सौ से अधिक मोरो का सरंक्षण होता ,हैं ,बल के जवान और अधिकारी अपने हाथो से मोरो को चुगा खिलते ,हैं हर केम्पस में मोरो के लिए पानी ,दाना और छाया की अलग से व्यवस्था कर रखी हैं ,
मोर इन जवानों और अधिकारियो के परिवार का हिस्सा हो गए ,हैं मोर जवानों की हर गतिविधि का हिस्सा बनते हैं ,बल के कैम्पसों में प्रतिदिन सुबह शाम मंदिर में होने वाली आरती के समय मंदिर परिसर में पहुँच जाते हैं ,अकेले में पंख फैलाकर नाचने वाल मोर इन कैम्पसों में बल के जवानों की उपस्थिति में निडर होकर नृत्य करते हैं ,जवान विशेष आवाज़ से मोरो को बुलाकर एक जगह एकत्रित कर लेते हैं ,
सीमा सुरक्षा बल राष्ट्रिय पक्षी मोरो का हमदर्द और सरंक्षक बन कर उभर हैं ,सीमा सुरक्षा बल के सरंक्षण का ही कमाल हैं की मोरो का कुनबा इन कैम्पसों में लगातार बढ़ रहा हैं ,
सीमा सुरक्षा बल के सेकड़ो परिसरों में हज़ारो मोरो का सरंक्षण परिवार की तरह हो रहा हैं , राज्य सरकार और केंद्र सरकार को राष्ट्रिय पक्षियों के सुरक्षा और सरंक्षण की विधिवत जिम्मेदारी देनी चाहिए
तामलोर स्थित सीमा सुरक्षा बल की अग्रिम पोस्ट के सहायक उप समादेष्टा भूपेंद्र सिंह भाटी ने बताया की केम्पस में करीब तीन सौ से अधिक मोर हैं ,इन मोरो के लिए दाना ,पानी और छाया की अतिरिक्त व्यवस्था कर रखी हैं ,मोरो का सरंक्षण हमारी दिनचर्या में शामिल हैं ,यहाँ मोरो को पूरी सुरक्षा और सरंक्षण मिल रहा हैं इसीलिए इनकी तादाद भी लगातार बढ़ रही हैं
हुर्रो का तल्ला पोस्ट में कार्यरत जवां विमलेश कुमार ने बताया की मुझे आये छ माह ही हुए हैं ,मगर इस केम्पस में चार सौ से अधिक मोर हैं ,दिन उगते हैं ये मोर मेरे क्वार्टर के आगे आ जाते हैं ,इन्हे अपने हाथ से दाना खिलता हूँ ,सभी मोरो के लिए दाने पानी की व्यवस्था की हुई हैं ,परिवार तो मेरा इलाहबाद हैं मगर ये मोर उनकी कमी को कुछ हद तक पूरा करते हे,
मोरो की मरुस्थलीय क्षेत्रो में बहुतायत का अंदाज़ इस बात से लगाया जा सकता हे की राजस्थानी लोक गीतों में मोरो पर कई गीत बने ,हैं मोरिया आछो बोल्यो रे धरती ,मोर बोले रे ओ मलजी आबू रे पाडो में ,जैसे कई गीत मोर की सांस्कृतिक महत्वता को दर्शाते हैं ,
पिछले एक दशक में जिले के ग्रामीण इलाको में मोर विलुप्त हो गए ,कभी गाँवो की रौनक थे मोर। घटते पेड़ों ने मोरो को विलुप्ति के कगार पर ले आये ,मगर अब मोर आबू के पाड़ों में नहीं सीमा सुरक्षा बल के कैम्पसों में बोलते ,हैं आपको यकीन नहीं होगा मगर जिले में सरहद पर सीमा सुरक्षा बल मोरो के सरंक्षक बने , सीमावर्ती अग्रिम पोस्टो पर बल के अधिकारियो और जवानों की दिन चर्या मोरो के साथ शुरू होती , मुनाबाव ,तामलोर ,गडरा ,मिठडाऊ ,देवा ,बी के डी ,केलनोर ,स्वरूपें का टला ,हुर्रो का तला ,जैसी सेकड़ो पोस्ट हे जंहा दो सौ से सौ से अधिक मोरो का सरंक्षण होता ,हैं ,बल के जवान और अधिकारी अपने हाथो से मोरो को चुगा खिलते ,हैं हर केम्पस में मोरो के लिए पानी ,दाना और छाया की अलग से व्यवस्था कर रखी हैं ,
मोर इन जवानों और अधिकारियो के परिवार का हिस्सा हो गए ,हैं मोर जवानों की हर गतिविधि का हिस्सा बनते हैं ,बल के कैम्पसों में प्रतिदिन सुबह शाम मंदिर में होने वाली आरती के समय मंदिर परिसर में पहुँच जाते हैं ,अकेले में पंख फैलाकर नाचने वाल मोर इन कैम्पसों में बल के जवानों की उपस्थिति में निडर होकर नृत्य करते हैं ,जवान विशेष आवाज़ से मोरो को बुलाकर एक जगह एकत्रित कर लेते हैं ,
सीमा सुरक्षा बल राष्ट्रिय पक्षी मोरो का हमदर्द और सरंक्षक बन कर उभर हैं ,सीमा सुरक्षा बल के सरंक्षण का ही कमाल हैं की मोरो का कुनबा इन कैम्पसों में लगातार बढ़ रहा हैं ,
सीमा सुरक्षा बल के सेकड़ो परिसरों में हज़ारो मोरो का सरंक्षण परिवार की तरह हो रहा हैं , राज्य सरकार और केंद्र सरकार को राष्ट्रिय पक्षियों के सुरक्षा और सरंक्षण की विधिवत जिम्मेदारी देनी चाहिए
तामलोर स्थित सीमा सुरक्षा बल की अग्रिम पोस्ट के सहायक उप समादेष्टा भूपेंद्र सिंह भाटी ने बताया की केम्पस में करीब तीन सौ से अधिक मोर हैं ,इन मोरो के लिए दाना ,पानी और छाया की अतिरिक्त व्यवस्था कर रखी हैं ,मोरो का सरंक्षण हमारी दिनचर्या में शामिल हैं ,यहाँ मोरो को पूरी सुरक्षा और सरंक्षण मिल रहा हैं इसीलिए इनकी तादाद भी लगातार बढ़ रही हैं
हुर्रो का तल्ला पोस्ट में कार्यरत जवां विमलेश कुमार ने बताया की मुझे आये छ माह ही हुए हैं ,मगर इस केम्पस में चार सौ से अधिक मोर हैं ,दिन उगते हैं ये मोर मेरे क्वार्टर के आगे आ जाते हैं ,इन्हे अपने हाथ से दाना खिलता हूँ ,सभी मोरो के लिए दाने पानी की व्यवस्था की हुई हैं ,परिवार तो मेरा इलाहबाद हैं मगर ये मोर उनकी कमी को कुछ हद तक पूरा करते हे,
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