इतिहास
जब सिवाना नरेश ने मरोड़ी अपनी मूंछे. . .और तिलमिला उठे सम्राट अकबर
.
राव कल्ला रायमलोत की गौरवगाथा
जीत जाँगिड़ सिवाणा
.
आगरा के किले में अकबर का खास दरबार लगा हुआ था | सभी राजा, महाराजा, राव, उमराव, खान आदि सभी खास दरबारी अपने अपने आसनों पर जमे हुए थे | आज बादशाह अकबर बहुत खुश था,सयंत रूप से आपस में हंसी-मजाक चल रहा था| तभी बादशाह ने अनुकूल अवसर देख बूंदी के राजा भोज से कहा - "राजा साहब हम चाहते है
आपकी छोटी राजकुमारी की सगाई शाहजादा सलीम के साथ हो जाये |"
राजा भोज ने तो अपनी पुत्री किसी मलेच्छ को दे दे ऐसी कभी कल्पना भी नहीं की थी | उसकी कन्या एक मलेच्छ के साथ ब्याही जाये उसे वह अपने हाड़ावंश की प्रतिष्ठा के खिलाफ समझते थे | इसलिए राजा भोज ने मन ही मन निश्चय किया कि- वे अपनी पुत्री की सगाई शाहजादा सलीम के साथ हरगिज नहीं करेंगे |
यदि ऐसा प्रस्ताव कोई और रखता तो राजा भोज उसकी जबान काट लेते पर ये प्रस्ताव रखने वाला भारत का सम्राट अकबर था जिसके बल, प्रताप, वैभव के आगे सभी राजा महाराजा नतमस्तक थे | राजा भोज से प्रति उत्तर सुनने के लिए अकबर ने अपनी निगाहें राजा भोज के चेहरे पर गड़ा दी | राजा भोज को कुछ ही क्षण में उत्तर देना था वे समझ नहीं पा रहे थे कि - बादशाह को क्या उत्तर दिया जाये | इसी उहापोह में उन्होंने सहायता के लिए दरबार में बैठे राजपूत राजाओं व योद्धाओं पर दृष्टि डाली और उनकी नजरे सिवाना के शासक कल्ला रायमलोत पर जाकर ठहर गयी |
कल्ला रायमलोत राजा भोज की तरफ देखता हुआ अपनी भोंहों तक लगी मूंछों पर निर्भीकतापूर्वक बल दे रहा था| राजा भोज को अब उतर मिल चुका था उसने तुरंत बादशाह से कहा - "जहाँपनाह मेरी छोटी राजकुमारी की तो सगाई हो चुकी है|"
"किसके साथ ?" बादशाह ने कड़क कर पूछा |
"जहाँपनाह मेरे साथ, बूंदी की छोटी राजकुमारी मेरी मांग है |" अपनी मूंछों पर बल देते हुए कल्ला रायमलोत ने दृढ़ता के साथ कहा | यह सुनते ही सभी दरबारियों की नजरे कल्ला को देखने लगी इस तरह भरे दरबार में बादशाह के आगे मूंछों पर ताव देना अशिष्टता ही नहीं बादशाह का अपमान भी था | बादशाह
भी समझ गया था कि ये कहानी अभी अभी गढ़ी गयी है पर चतुर बादशाह ने नीतिवश जबाब दिया _
"फिर कोई बात नहीं | हमें पहले मालूम होता तो हम ये प्रस्ताव ही नहीं रखते |" और दुसरे ही क्षण बादशाह ने वार्तालाप का विषय बदल दिया|
यह घटना सभी दरबारियों के बीच चर्चा का विषय बन गयी| कई दरबारियों ने इस घटना के बाद बादशाह को कल्ला के खिलाफ उकसाया तो कईयों ने कल्ला रायमलोत को सलाह दी आगे से बादशाह के आगे मूंछे नीची करके जाना बादशाह
तुमसे बहुत नाराज है | पर कल्ला को उनकी किसी बात की परवाह नहीं थी | लोगों की बातों के कारण दुसरे दिन जब कल्ला दरबार में हाजिर हुआ तो केसरिया वस्त्र (युद्ध कर मृत्यु के लिए तैयारी के प्रतीक) धारण किये हुए था | उसकी मूंछे आज और भी ज्यादा तानी हुई थी| बादशाह उसके रंग ढंग देख समझ गया था और मन ही मन सोच रहा था - "एेसा बांका जवान बिगड़ बैठे तो क्या करदे |" दुसरे ही दिन कल्ला बिना छुट्टी लिए सीधा बूंदी की राजकुमारी हाड़ी को ब्याहने चला गया और उसके साथ फेरे लेकर आगरा के लिए रवाना हो गया | हाड़ी ने भी कल्ला के हाव-भाव देख और आगरा किले में हुई घटना के बारे में सुनकर अनुमान लगा लिया था कि -उसका सुहाग ज्यादा दिन तक रहने वाला नहीं| सो उसने आगरा जाते कल्ला को संदेश भिजवाया - "हे प्राणनाथ ! आज तो बिना मिले ही छोड़ कर आगरा पधार रहे है पर स्वर्ग में साथ चलने का सौभाग्य जरुर देना |"
"अवश्य एेसा ही होगा |" जबाब दे कल्ला आगरा आ गया | उसके हाव भाव देखकर बादशाह अकबर ने उसे काबुल के उपद्रव दबाने के लिए लाहौर भेज दिया,लाहौर में उसे केसरिया वस्त्र पहने देख एक मुग़ल सेनापति ने व्यंग्य से कहा - "कल्ला जी अब ये केसरिया वस्त्र धारण कर क्यों स्वांग बनाये हुए हो ?" "राजपूत एक बार केसरिया धारण कर लेता है तो उसे बिना निर्णय के उतारता नहीं | यदि तुम में हिम्मत है तो उतरवा दो |" कल्ला ने कड़क कर कहा |
इसी बात पर विवाद होने पर कल्ला ने उस मुग़ल सेनापति का एक झटके में सिर धड़ से अलग कर दिया और वहां से बागी हो सीधा बीकानेर आ पहुंचा | उस समय
बादशाह के दरबार में रहने वाले प्रसिद्ध कवि बीकानेर के राजकुमार पृथ्वीराजजी जो इतिहास में पीथल के नाम से प्रसिद्ध है बीकानेर आये हुए थे,कल्ला ने उनसे कहा - "काकाजी मारवाड़ जा रहा हूँ वहां चंद्रसेनजी की अकबर के विरुद्ध सहायतार्थ युद्ध करूँगा | आप मेरे मरसिया (मृत्यु गीत) बनाकर सुना दीजिये|" पृथ्वीराज जी ने कहा -"मरसिया तो मरने के उपरांत बनाये जाते है तुम तो अभी जिन्दा हो तुम्हारे मरसिया कैसे बनाये जा सकते है|"
"काकाजी आप मेरे मरसिया में जैसे युद्ध का वर्णन करेंगे मैं आपको वचन देता हूँ कि मैं उसी अनुरूप युद्ध में पराक्रम दिखा कर वीरगति को प्राप्त होवुंगा।" कल्ला ने दृढ निश्चय से कहा |
हालाँकि पृथ्वीराजजी के आगे ये एक विचित्र स्थिति थी पर कल्ला की जिद के चलते उन्होंने उसके मरसिया बनाकर सुनाये | कल्ला अपने मरसिया गुनगुनाता जब मारवाड़ के सिवाने की तरफ जा रहा था तो उसे सूचना मिली कि अकबर की एक सेना उसके मामा सिरोही के सुल्तान देवड़ा पर आक्रमण करने जा रही है| कल्ला उस सेना से बीच में ही भीड़ गया और बात की बात में उसने अकबर की उस सेना को भागकर लुट लिया | इस बात से नाराज अकबर ने कल्ला को दण्डित करने जोधपुर के मोटा राजा उदयसिंह को सेना के साथ भेजा |
मोटाराजा उदयसिंह ने अपने दलबल के साथ सिवाना पर आक्रमण किया जहाँ कल्ला अद्वितीय वीरता के साथ लड़ते हुए
वीरगति को प्राप्त हुआ | कहते है कि "कल्ला का लड़ते लड़ते सिर कट गया था फिर भी वह मारकाट मचाता रहा आखिर घोड़े पर सवार उसका धड़ उसकी पत्नी हाड़ी के पास गया,उसकी पत्नी ने जैसे गंगाजल के छींटे उसके धड़ पर डाले उसी वक्त उसका धड़ घोड़े से गिर गया जिसे लेकर हाड़ी चिता में प्रवेश कर उसके साथ स्वर्ग सिधार गयी| आज भी उनकी स्मृति में सिवाना दुर्ग पर हर वर्ष मेला लगता हैं और सिवानावासी उनकी समाधी पर श्रद्धा से शीश झुकाते हैं|
आज भी राजस्थान में मूंछों की मरोड़ का उदाहरण दिया जाता है तो कहा जाता है-
"मूंछों की मरोड़ हो तो कल्ला रायमलोत
जैसी |"
जब सिवाना नरेश ने मरोड़ी अपनी मूंछे. . .और तिलमिला उठे सम्राट अकबर
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राव कल्ला रायमलोत की गौरवगाथा
जीत जाँगिड़ सिवाणा
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आगरा के किले में अकबर का खास दरबार लगा हुआ था | सभी राजा, महाराजा, राव, उमराव, खान आदि सभी खास दरबारी अपने अपने आसनों पर जमे हुए थे | आज बादशाह अकबर बहुत खुश था,सयंत रूप से आपस में हंसी-मजाक चल रहा था| तभी बादशाह ने अनुकूल अवसर देख बूंदी के राजा भोज से कहा - "राजा साहब हम चाहते है
आपकी छोटी राजकुमारी की सगाई शाहजादा सलीम के साथ हो जाये |"
राजा भोज ने तो अपनी पुत्री किसी मलेच्छ को दे दे ऐसी कभी कल्पना भी नहीं की थी | उसकी कन्या एक मलेच्छ के साथ ब्याही जाये उसे वह अपने हाड़ावंश की प्रतिष्ठा के खिलाफ समझते थे | इसलिए राजा भोज ने मन ही मन निश्चय किया कि- वे अपनी पुत्री की सगाई शाहजादा सलीम के साथ हरगिज नहीं करेंगे |
यदि ऐसा प्रस्ताव कोई और रखता तो राजा भोज उसकी जबान काट लेते पर ये प्रस्ताव रखने वाला भारत का सम्राट अकबर था जिसके बल, प्रताप, वैभव के आगे सभी राजा महाराजा नतमस्तक थे | राजा भोज से प्रति उत्तर सुनने के लिए अकबर ने अपनी निगाहें राजा भोज के चेहरे पर गड़ा दी | राजा भोज को कुछ ही क्षण में उत्तर देना था वे समझ नहीं पा रहे थे कि - बादशाह को क्या उत्तर दिया जाये | इसी उहापोह में उन्होंने सहायता के लिए दरबार में बैठे राजपूत राजाओं व योद्धाओं पर दृष्टि डाली और उनकी नजरे सिवाना के शासक कल्ला रायमलोत पर जाकर ठहर गयी |
कल्ला रायमलोत राजा भोज की तरफ देखता हुआ अपनी भोंहों तक लगी मूंछों पर निर्भीकतापूर्वक बल दे रहा था| राजा भोज को अब उतर मिल चुका था उसने तुरंत बादशाह से कहा - "जहाँपनाह मेरी छोटी राजकुमारी की तो सगाई हो चुकी है|"
"किसके साथ ?" बादशाह ने कड़क कर पूछा |
"जहाँपनाह मेरे साथ, बूंदी की छोटी राजकुमारी मेरी मांग है |" अपनी मूंछों पर बल देते हुए कल्ला रायमलोत ने दृढ़ता के साथ कहा | यह सुनते ही सभी दरबारियों की नजरे कल्ला को देखने लगी इस तरह भरे दरबार में बादशाह के आगे मूंछों पर ताव देना अशिष्टता ही नहीं बादशाह का अपमान भी था | बादशाह
भी समझ गया था कि ये कहानी अभी अभी गढ़ी गयी है पर चतुर बादशाह ने नीतिवश जबाब दिया _
"फिर कोई बात नहीं | हमें पहले मालूम होता तो हम ये प्रस्ताव ही नहीं रखते |" और दुसरे ही क्षण बादशाह ने वार्तालाप का विषय बदल दिया|
यह घटना सभी दरबारियों के बीच चर्चा का विषय बन गयी| कई दरबारियों ने इस घटना के बाद बादशाह को कल्ला के खिलाफ उकसाया तो कईयों ने कल्ला रायमलोत को सलाह दी आगे से बादशाह के आगे मूंछे नीची करके जाना बादशाह
तुमसे बहुत नाराज है | पर कल्ला को उनकी किसी बात की परवाह नहीं थी | लोगों की बातों के कारण दुसरे दिन जब कल्ला दरबार में हाजिर हुआ तो केसरिया वस्त्र (युद्ध कर मृत्यु के लिए तैयारी के प्रतीक) धारण किये हुए था | उसकी मूंछे आज और भी ज्यादा तानी हुई थी| बादशाह उसके रंग ढंग देख समझ गया था और मन ही मन सोच रहा था - "एेसा बांका जवान बिगड़ बैठे तो क्या करदे |" दुसरे ही दिन कल्ला बिना छुट्टी लिए सीधा बूंदी की राजकुमारी हाड़ी को ब्याहने चला गया और उसके साथ फेरे लेकर आगरा के लिए रवाना हो गया | हाड़ी ने भी कल्ला के हाव-भाव देख और आगरा किले में हुई घटना के बारे में सुनकर अनुमान लगा लिया था कि -उसका सुहाग ज्यादा दिन तक रहने वाला नहीं| सो उसने आगरा जाते कल्ला को संदेश भिजवाया - "हे प्राणनाथ ! आज तो बिना मिले ही छोड़ कर आगरा पधार रहे है पर स्वर्ग में साथ चलने का सौभाग्य जरुर देना |"
"अवश्य एेसा ही होगा |" जबाब दे कल्ला आगरा आ गया | उसके हाव भाव देखकर बादशाह अकबर ने उसे काबुल के उपद्रव दबाने के लिए लाहौर भेज दिया,लाहौर में उसे केसरिया वस्त्र पहने देख एक मुग़ल सेनापति ने व्यंग्य से कहा - "कल्ला जी अब ये केसरिया वस्त्र धारण कर क्यों स्वांग बनाये हुए हो ?" "राजपूत एक बार केसरिया धारण कर लेता है तो उसे बिना निर्णय के उतारता नहीं | यदि तुम में हिम्मत है तो उतरवा दो |" कल्ला ने कड़क कर कहा |
इसी बात पर विवाद होने पर कल्ला ने उस मुग़ल सेनापति का एक झटके में सिर धड़ से अलग कर दिया और वहां से बागी हो सीधा बीकानेर आ पहुंचा | उस समय
बादशाह के दरबार में रहने वाले प्रसिद्ध कवि बीकानेर के राजकुमार पृथ्वीराजजी जो इतिहास में पीथल के नाम से प्रसिद्ध है बीकानेर आये हुए थे,कल्ला ने उनसे कहा - "काकाजी मारवाड़ जा रहा हूँ वहां चंद्रसेनजी की अकबर के विरुद्ध सहायतार्थ युद्ध करूँगा | आप मेरे मरसिया (मृत्यु गीत) बनाकर सुना दीजिये|" पृथ्वीराज जी ने कहा -"मरसिया तो मरने के उपरांत बनाये जाते है तुम तो अभी जिन्दा हो तुम्हारे मरसिया कैसे बनाये जा सकते है|"
"काकाजी आप मेरे मरसिया में जैसे युद्ध का वर्णन करेंगे मैं आपको वचन देता हूँ कि मैं उसी अनुरूप युद्ध में पराक्रम दिखा कर वीरगति को प्राप्त होवुंगा।" कल्ला ने दृढ निश्चय से कहा |
हालाँकि पृथ्वीराजजी के आगे ये एक विचित्र स्थिति थी पर कल्ला की जिद के चलते उन्होंने उसके मरसिया बनाकर सुनाये | कल्ला अपने मरसिया गुनगुनाता जब मारवाड़ के सिवाने की तरफ जा रहा था तो उसे सूचना मिली कि अकबर की एक सेना उसके मामा सिरोही के सुल्तान देवड़ा पर आक्रमण करने जा रही है| कल्ला उस सेना से बीच में ही भीड़ गया और बात की बात में उसने अकबर की उस सेना को भागकर लुट लिया | इस बात से नाराज अकबर ने कल्ला को दण्डित करने जोधपुर के मोटा राजा उदयसिंह को सेना के साथ भेजा |
मोटाराजा उदयसिंह ने अपने दलबल के साथ सिवाना पर आक्रमण किया जहाँ कल्ला अद्वितीय वीरता के साथ लड़ते हुए
वीरगति को प्राप्त हुआ | कहते है कि "कल्ला का लड़ते लड़ते सिर कट गया था फिर भी वह मारकाट मचाता रहा आखिर घोड़े पर सवार उसका धड़ उसकी पत्नी हाड़ी के पास गया,उसकी पत्नी ने जैसे गंगाजल के छींटे उसके धड़ पर डाले उसी वक्त उसका धड़ घोड़े से गिर गया जिसे लेकर हाड़ी चिता में प्रवेश कर उसके साथ स्वर्ग सिधार गयी| आज भी उनकी स्मृति में सिवाना दुर्ग पर हर वर्ष मेला लगता हैं और सिवानावासी उनकी समाधी पर श्रद्धा से शीश झुकाते हैं|
आज भी राजस्थान में मूंछों की मरोड़ का उदाहरण दिया जाता है तो कहा जाता है-
"मूंछों की मरोड़ हो तो कल्ला रायमलोत
जैसी |"
इस कहानी के लेखक जीत जांगिड नहीं है !
जवाब देंहटाएंयह मूल कहानी स्व.आयुवान सिंह जी हुडिल द्वारा लिखी गई है जिसे छोटा करके ज्ञान दर्पण.कॉम पर लिखा गया था, जीत जांगिड ने शायद वहीं से कॉपी किया है !!
http://www.gyandarpan.com/2011/05/blog-post_27.html
आपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा,आपकी रचना बहुत अच्छी और यहाँ आकर मुझे एक अच्छे ब्लॉग को फॉलो करने का अवसर मिला. मैं भी ब्लॉग लिखता हूँ, और हमेशा अच्छा लिखने की कोशिश करता हूँ. कृपया मेरे ब्लॉग www.gyanipandit.com पर भी आये और मेरा मार्गदर्शन करें :-d
जवाब देंहटाएंblog mst hai
जवाब देंहटाएंmst
जवाब देंहटाएंइतिहास में हिन्दू वीरों की ऐसी ऐसी गाथाएं हैं, जिनसे हिन्दू समाज अनिभिज्ञ है, धन्यवाद इसे अपने ब्लॉग लिख कर हिन्दू समाज को अबगत करने के लिए
जवाब देंहटाएंNice I LOVE MY HOME TOWN
जवाब देंहटाएंJITENDRA GHARU SIWANA
LIVE IN RANI DIST PALI RAJ
आपका ब्लॉग पढ़ कर अच्छा लगा आपके आर्टिकल काफी अच्छे है मैं भी आपकी तरह एक ब्लॉग लिखता हूं यहां पर में Gud morning shayari शेयर करता हूं।
जवाब देंहटाएंI am not a Rajput but salute to all Rajputs . Rajputs are pride of Hindus
जवाब देंहटाएंI am belong to Bhamashah ji Kul
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा,आपकी रचना बहुत अच्छी और यहाँ आकर मुझे एक अच्छे ब्लॉग को फॉलो करने का अवसर मिला. मैं भी ब्लॉग लिखता हूँ, और हमेशा अच्छा लिखने की कोशिश करता हूँ. कृपया मेरे ब्लॉग http://www.fly2catcher.com पर भी आये और मेरा मार्गदर्शन करें
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