मुग़ल संस्कृति और स्थापत्य कला का प्रतिक हें किशनगढ़ का किला
चन्दन सिंह भाटी
जैसलमेर के सांस्कृतिक इतिहास में यहाँ के स्थापत्य कला का अलग ही महत्व है। किसी भी स्थान विशेष पर पाए जाने वाले स्थापत्य से वहां रहने वालों के चिंतन, विचार, विश्वास एवं बौद्धिक कल्पनाशीलता का आभास होता है। जैसलमेर में स्थापत्य कला का क्रम राज्य की स्थापना के साथ दुर्ग निर्माण से आरंभ हुआ, जो निरंतर चलता रहा। यहां के स्थापत्य को राजकीय तथा व्यक्तिगत दोनो का सतत् प्रश्रय मिलता रहा। इस क्षेत्र के स्थापत्य की अभिव्यक्ति यहां के किलों, गढियों, राजभवनों, मंदिरों, हवेलियों, जलाशयों, छतरियों व जन-साधारण के प्रयोग में लाये जाने वाले मकानों आदि से होती है।इसी कड़ी में जैसलमेर का पाकिस्तान सरहद पर निर्मित किला हे किशनगढ़ .समय की मार झेलते झेलते आज जर्जर अवस्था में पहुँच गया ,हें किशनगढ़ का किला अपने आप में अनूठा हे सुरक्षा के लिहाज़ हे मुग़ल कालीन शैली में इसे बनाया गया था .इसकी विशेषता हे की इस किले में एक बारगी प्रवेश करने के बाद किसी को ढूँढना काफी मुश्क्किल था .इसके ख़ुफ़िया रास्ते इसके निर्माण की खाशियत हें ,
जैसलमेर इतिहासकारों के अनुसार सीमावर्ती इलाके में बना किशनगढ़ दुर्ग मुस्लिम शैली में बना हुआ है। इसका पुराना नाम दीनगढ़ था। इसका निर्माण महारावल मूलराज ने 1820 से 1876 ई. के मध्य करवाया था। 1965 के भारत पाक युद्ध में इस किले को खासा नुकसान पहुंचा था। इस किले में देवी की बड़ी बड़ी प्राचीन मूर्तियां भी है,मुग़ल शैली की निर्माण कला अनायास ही अपनी और आकर्षित करती हें ,जैसलमेर के किले जहां पत्थरो से निर्मित हें वही किशनगढ़ का किला पूर्णतया ईंटो से बना हें ,इस किले को हासिल करने के लिए मुग़ल शासको ने काफी प्रयास किये थे .अविभाजित भारत के समय इसका निर्माण किया था इसके निर्माण की शैली वर्तमान पाकिस्तान के कई किले के सामान हें ,इसकी निर्माण कला अनायास को अपनी और आकर्षित करती हें .
जैसलमेर राज्य मे हर २०-३० किलोमीटर के फासले पर छोटे-छोटे दुर्ग दृष्टिगोचर होते हैं, ये दुर्ग विगत १००० वर्षो के इतिहास के मूक गवाह हैं। मध्ययुगीन इतिहास में इनका परम महत्व था। ये राजनैतिक आवश्यकतानुसार निर्मित कराए जाते थे। दुर्ग निर्माण में सुंदरता के स्थान पर मजबूती तथा सुरक्षा को ध्यान में रखा जाता था। परंतु यहां के दुर्ग मजबूती के साथ-साथ सुंदरता को भी ध्यान मं रखकर बनाया गया था। दुर्गो में एक ही मुख्य द्वारा रखने के परंपरा रही है। किशनगढ़, शाहगढ़ आदि दुर्ग इसके अपवाद हैं। ये दुर्ग पक्की ईंटों के बने हैं। इस दुर्ग में आठ से अधिक बुर्ज बने हें । ये दुर्ग को मजबूती, सुंदरता व सामरिक महत्व प्रदान करते थे।जैसलमेर राज्य भारत के मानचित्र में ऐसे स्थल पर स्थित है जहाँ इसका इतिहास में एक विशिष्ट महत्व है। भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा पर इस राज्य का विस्तृत क्षेत्रफल होने के कारण अरबों तथा तुर्की के प्रारंभिक हमलों को यहाँ के शासकों ने न केवल सहन किया वरन दृढ़ता के साथ उन्हें पीछे धकेलकर शेष राजस्थान, गुजरात तथा मध्य भारत को इन बाहरी आक्रमणों से सदियों तक सुरक्षित रखा। राजस्थान के दो राजपूत राज्य, मेवाइ और जैसलमेर अनय राज्यों से प्राचीन माने जाते हैं, जहाँ एक ही वंश का लम्बे समय तक शासन रहा है। हालाँकि मेवाड़ के इतिहास की तुलना में जैसलमेर राज्य की ख्याति बहुत कम हुई है, इसका मुख्य कारण यह है कि मुगल-काल में बी जहाँ मेवाड़ के महाराणाओं की स्वाधीनता बनी रही वहीं जैसलमेर के महारावलों द्वारा अन्य शासक की भाँती मुगलों से मेलजोल कर लिया जो अंत तक चलता रहा। आर्थिक क्षेत्र में भी यह राज्य एक साधारण आय वाला पिछड़ा क्षेत्र रहा जिसके कारण यहाँ के शासक कभी शक्तिशाली सैन्य बल संगठित नहीं कर सके। फलस्वरुप इसके पड़ौसी राज्यों ने इसके विस्तृत भू-भाग को दबा कर नए राज्यों का संगठन कर लिया जिनमें बीकानेर, खैरपुर, मीरपुर, बहावलपुर एवं शिकारपुर आदि राज्य हैं। जैसलमेर के इतिहास के साथ प्राचीन यदुवंश तथा मथुरा के राजा यदु वंश के वंशजों का सिंध, पंजाब, राजस्थान के भू-भाग में पलायन और कई राज्यों की स्थापना आदि के अनेकानेक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक प्रसंग जुड़े हुए हैं।
आज़ादी के बाद जैसलमेर रियासत के समय पाकिस्तान के लडाको हूर्रो का काफी आंतक किशनगढ़ में रहा .उस दौरान हुर्रो से निपटने के लिए जैसलमेर के तत्कालीन महारावल ने जिम्मेदारी सत रामजी हजूरी को सौंपी ,थी सत रामजी ने हुर्रो से धर्मेला कर इस समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा पा लिया .
सदियों तक आवागमन के सुगम साधनों के आभाव में यह स्थान देश के अनय प्रांतों से लगभग कटा सा रहा। इस कारण बाहर के लोगों केकिशनगढ़ के बारे में बहुत कम जानकारी रही है। सामान्यत: लोगों की कल्पना में यह स्थान धूल व आँधियों से घिरा रेगिस्तान मात्र है। परंतु वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है, इतिहास एवं काल के थपेड़े खाते हुए भी यहाँ प्राचीन, संस्कृति, कला, परंपरा व इतिहास अपने मूल रुप में विधमान रहा तथा यहाँ के रेत के कण-कण में पिछले आठ सौ वर्षों के इतिहास की गाथाएँ भरी हुई हैं। जैसलमेर राज्य ने मूल भारतीय संस्कृति, लोक शैली, सामाजिक मान्यताएँ, निर्माणकला, संगीतकला, साहित्य, स्थापत्य आदि के मूलरुपंण बनाए हुए .
किशनगढ़ किले के जिर्नोदार के लिए पुरातत्व विभाग ने ढाई करोड़ रुपये स्वीकृत किये थे मगर इस बजट का किशनगढ़ के किले में इस्तेमाल नज़र नहीं आ रहा .आज चमगादड़ो का डेरा बन चुका यह की सरंक्षण की दरकार रखता हें ,इस किले का जिर्णोदार कराया जाये तो यह जैसलमेर आने वाले पर्यटकों के लिए ख़ास आकर्षण का केंद्र बन सकता हें .
जैसलमेर इतिहासकारों के अनुसार सीमावर्ती इलाके में बना किशनगढ़ दुर्ग मुस्लिम शैली में बना हुआ है। इसका पुराना नाम दीनगढ़ था। इसका निर्माण महारावल मूलराज ने 1820 से 1876 ई. के मध्य करवाया था। 1965 के भारत पाक युद्ध में इस किले को खासा नुकसान पहुंचा था। इस किले में देवी की बड़ी बड़ी प्राचीन मूर्तियां भी है,मुग़ल शैली की निर्माण कला अनायास ही अपनी और आकर्षित करती हें ,जैसलमेर के किले जहां पत्थरो से निर्मित हें वही किशनगढ़ का किला पूर्णतया ईंटो से बना हें ,इस किले को हासिल करने के लिए मुग़ल शासको ने काफी प्रयास किये थे .अविभाजित भारत के समय इसका निर्माण किया था इसके निर्माण की शैली वर्तमान पाकिस्तान के कई किले के सामान हें ,इसकी निर्माण कला अनायास को अपनी और आकर्षित करती हें .
जैसलमेर राज्य मे हर २०-३० किलोमीटर के फासले पर छोटे-छोटे दुर्ग दृष्टिगोचर होते हैं, ये दुर्ग विगत १००० वर्षो के इतिहास के मूक गवाह हैं। मध्ययुगीन इतिहास में इनका परम महत्व था। ये राजनैतिक आवश्यकतानुसार निर्मित कराए जाते थे। दुर्ग निर्माण में सुंदरता के स्थान पर मजबूती तथा सुरक्षा को ध्यान में रखा जाता था। परंतु यहां के दुर्ग मजबूती के साथ-साथ सुंदरता को भी ध्यान मं रखकर बनाया गया था। दुर्गो में एक ही मुख्य द्वारा रखने के परंपरा रही है। किशनगढ़, शाहगढ़ आदि दुर्ग इसके अपवाद हैं। ये दुर्ग पक्की ईंटों के बने हैं। इस दुर्ग में आठ से अधिक बुर्ज बने हें । ये दुर्ग को मजबूती, सुंदरता व सामरिक महत्व प्रदान करते थे।जैसलमेर राज्य भारत के मानचित्र में ऐसे स्थल पर स्थित है जहाँ इसका इतिहास में एक विशिष्ट महत्व है। भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा पर इस राज्य का विस्तृत क्षेत्रफल होने के कारण अरबों तथा तुर्की के प्रारंभिक हमलों को यहाँ के शासकों ने न केवल सहन किया वरन दृढ़ता के साथ उन्हें पीछे धकेलकर शेष राजस्थान, गुजरात तथा मध्य भारत को इन बाहरी आक्रमणों से सदियों तक सुरक्षित रखा। राजस्थान के दो राजपूत राज्य, मेवाइ और जैसलमेर अनय राज्यों से प्राचीन माने जाते हैं, जहाँ एक ही वंश का लम्बे समय तक शासन रहा है। हालाँकि मेवाड़ के इतिहास की तुलना में जैसलमेर राज्य की ख्याति बहुत कम हुई है, इसका मुख्य कारण यह है कि मुगल-काल में बी जहाँ मेवाड़ के महाराणाओं की स्वाधीनता बनी रही वहीं जैसलमेर के महारावलों द्वारा अन्य शासक की भाँती मुगलों से मेलजोल कर लिया जो अंत तक चलता रहा। आर्थिक क्षेत्र में भी यह राज्य एक साधारण आय वाला पिछड़ा क्षेत्र रहा जिसके कारण यहाँ के शासक कभी शक्तिशाली सैन्य बल संगठित नहीं कर सके। फलस्वरुप इसके पड़ौसी राज्यों ने इसके विस्तृत भू-भाग को दबा कर नए राज्यों का संगठन कर लिया जिनमें बीकानेर, खैरपुर, मीरपुर, बहावलपुर एवं शिकारपुर आदि राज्य हैं। जैसलमेर के इतिहास के साथ प्राचीन यदुवंश तथा मथुरा के राजा यदु वंश के वंशजों का सिंध, पंजाब, राजस्थान के भू-भाग में पलायन और कई राज्यों की स्थापना आदि के अनेकानेक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक प्रसंग जुड़े हुए हैं।
आज़ादी के बाद जैसलमेर रियासत के समय पाकिस्तान के लडाको हूर्रो का काफी आंतक किशनगढ़ में रहा .उस दौरान हुर्रो से निपटने के लिए जैसलमेर के तत्कालीन महारावल ने जिम्मेदारी सत रामजी हजूरी को सौंपी ,थी सत रामजी ने हुर्रो से धर्मेला कर इस समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा पा लिया .
सदियों तक आवागमन के सुगम साधनों के आभाव में यह स्थान देश के अनय प्रांतों से लगभग कटा सा रहा। इस कारण बाहर के लोगों केकिशनगढ़ के बारे में बहुत कम जानकारी रही है। सामान्यत: लोगों की कल्पना में यह स्थान धूल व आँधियों से घिरा रेगिस्तान मात्र है। परंतु वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है, इतिहास एवं काल के थपेड़े खाते हुए भी यहाँ प्राचीन, संस्कृति, कला, परंपरा व इतिहास अपने मूल रुप में विधमान रहा तथा यहाँ के रेत के कण-कण में पिछले आठ सौ वर्षों के इतिहास की गाथाएँ भरी हुई हैं। जैसलमेर राज्य ने मूल भारतीय संस्कृति, लोक शैली, सामाजिक मान्यताएँ, निर्माणकला, संगीतकला, साहित्य, स्थापत्य आदि के मूलरुपंण बनाए हुए .
किशनगढ़ किले के जिर्नोदार के लिए पुरातत्व विभाग ने ढाई करोड़ रुपये स्वीकृत किये थे मगर इस बजट का किशनगढ़ के किले में इस्तेमाल नज़र नहीं आ रहा .आज चमगादड़ो का डेरा बन चुका यह की सरंक्षण की दरकार रखता हें ,इस किले का जिर्णोदार कराया जाये तो यह जैसलमेर आने वाले पर्यटकों के लिए ख़ास आकर्षण का केंद्र बन सकता हें .
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