मंगलवार, 10 मई 2011

आज भी कायम पगड़ी की शान राजस्थान में











आज भी कायम पगड़ी की शान राजस्थान में






: राजस्थान की समृद्ध संस्कृति एवं - रीति रिवाज आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में खोते जा रहे हैं . आधुनिकता और पाश्चात्य सभ्यता के साथ आये बदलाव ने परम्परागत - रीति रिवाजों को न केवल बदलकर रख दिया , अपितु राजस्थान की समृद्ध संस्कृति अपना आकार खोती जा रही हैं .






रोजमर्रा की भागदौड़ और पहियों पर घूमती वातानुकूलित जिन्दगी के बीच समारोह के दौरान साफा उपलब्ध नहीं होने अथवा इस ओर किसी का ध्यान आकृष्ट नहीं होने पर ऐसे मौके पर इसका प्रबन्ध नहीं हो पाता है . चुनिन्दा स्थानों से साफा लाने की जहमत कोई नहीं करता , लेकिन साफे का स्थान बरकरार है . इस स्थान को बदला नहीं जा सकता . दुनिया के कानून , संविधान तो बदले जा सकते हैं . ' मगर ' का स्थान नहीं बदला जा सकता साफे . इसका महत्व इसी कारण बरकरार हैं . विभिन्न समारोहों में अतिथियों का साफा पहनाकर स्वागत करने की परम्परा है .






' साफा राजस्थान की समृद्ध संस्कृति और परम्परा का अभिन्न हिस्सा हैं . लेकिन , राजपूती आन - बान - का प्रतीक साफा अब सिरों से सरकता जा रहा है शान . युवा पीढ़ी आधुनिक ' होकर ' का महत्व समझ नहीं पा रही है साफे . इसके विपरीत ग्रामीण क्षेत्रों में आज ' भी पाग - पगड़ी ' साफे को इज्जत और ओहदे का प्रतीक माना जाता है - . साफे को आदमी के ओहदे व खानदान से जोड़कर देखा जाता हैं . साफा पहन कर - बड़े बुजुर्ग अपने आपको सम्पूर्ण व्यक्तित्व का मालिक समझते हैं . ' साफा व्यक्ति के समाज का प्रतीक माना जाता हैं . ग्रामीण क्षेत्रों में - अलग अलग समाज में अलग - अलग तरह के साफे पहने जाते हैं . साफे से व्यक्ति की जाति व समाज का स्वतः पता चल जाता हैं .






' पगड़ी आदमी के व्यक्तित्व की निशानी समझी जाती है . ' की खातिर आदमी स्वयं बरबाद हो जाता है , मगर उस पर आंच नहीं आने देता पगड़ी . ' साफा ग्रामीण क्षेत्रों में सदा ही बांधा जाता है . खुशी और गम के अवसरों पर ' भी ' का रंग व आकार बदल जाता हैं साफे . खुशी के समय रंगीन साफे पहने जाते हैं . जैसे शादी - विवाह , सगाई या अन्य उत्सवों , त्यौहारों पर विभिन्न रंगो के साफे पहने हैं जाते . मगर , गम के अवसर पर खाकी अथवा सफेद रंग के साफे पहने जाते हैं , ये शोक का प्रतीक होते हैं . हालांकि , मुस्लिम समाज ( सिन्धी ) में सफेद साफे शौक से पहने जाते हैं . सिन्धी मुसलमान ' सफेद ' पाग का ही प्रयोग करते हैं .






ग्रामीण क्षेत्रों में आपसी मनमुटाव , लडाई - झगडों का ' निपटारा ' साफा पहनकर किया जाता है . जैसलमेर व बाड़मेर जिलों के कई गांवो में आज भी अनजान व्यक्ति अथवा मेहमानों ' नंगे सिर आने की इजाजत नहीं हैं को . राजपूत बहुल गांवों में साफे का अत्यधिक महत्व है . इन गांवो में सामंतशाहों के आगे अनुसूचित जाति , जनजाति ( मेघवाल , भील आदि ) के लोग साफा नहीं पहनते , अपितु सिर पर तेमल ( लूंगी ) अथवा टवाल बांधते हैं . इनके द्वारा सिर पर पगड़ी न बांधने का मुख्य ' कारण या ' सामन्त के बराबरी न करना है ठाकुरों . विवाह , अथवा अन्य समारोह में साफे के प्रति परम्पराओं में तेजी से गिरावट आई है सगाई . अभिजात्य परिवारों में साफा आज ' भी स्टेटस ' सिम्बल बना हुआ हैं . अभिजात्य वर्ग में साफे के प्रति मोह बढ़ता जा रहा है . शादी विवाह या अन्य समारोह ' में ' साफे के प्रति छोटे - बड़ों का लगाव आसानी से देखा जा सकता है .






हाथों से बांधने ' वाले ' साफे का जवाब नहीं होता . हाथों से साफे को बांधना एक हुनर व कला है . इस कला को जिंदा रखने वाले कुछ लोग ही बचे हैं . आजकल चुनरी के साफों का अधिक प्रचलन है . लहरियां साफा भी प्रचलन में है . मलमल , जरी , तोता , कलर के साफे भी पसन्द किए जा रहे हैं परी . जोधपुरी साफा पहनना युवा पसन्द करते हैं , जबकि बड़े - बुजुर्ग जैसलमेरी साफा , जो गोल होता है , पहनना पसन्द करते हैं . केसरिया रंग का गोल साफा पहनने का प्रचलन अधिका हैं . बहरहाल , साफे का महत्व आज भी कायम हैं .

3 टिप्‍पणियां:

  1. विलुप्त होते साफे को शेरसिंह "साफा" ने एक नई पहचान दी है | शेरसिंह ने बंधे बंधाये साफे उपलब्ध कराकर नई पीढ़ी को भी इससे जोड़ा है | साफा राजस्थानी संस्कृति का अंग है हमें इसे आधुनिकता की दौड़ में छोड़ना नहीं चाहिए |

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  2. khamma hukum...sher singh ji ke bare mai vistrit jankari dirave ..univarta sahi sabhi mai prakashit karane ka prayas karunga

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  3. Del/08/YP/MENV/2011 08th .September,.2011

    To,
    Smt. Jayanthi Natarajan
    Minister of Environment and Forests
    424, Paryavaran Bhawan, C.G.O. Complex, Lodhi Road,
    NEW DELHI - 110003

    Sub: To check Pollution in Yamuna due to left over puja ssmigri .
    Hon'ble Madam ,

    Our organization Youth Fraternity Foundation (YFF) has undertaken a project: Pushpanjali Prawaha ‘The flow of devotional flowers’ the new method for disposal of left over flowers and other puja samigri in the year 2011 in Delhi.

    We hereby want to draw your kind attention to the pollution that happens in Yamuna every year. These pollutants are nothing but the left over sacred puja samigri used during the worship i.e. Flowers, Religious Cards /Posters/ Calendars, Pictures of different deities on the packets of Incense sticks, Clothes in sacks and Plastic bags etc.

    During 4th to 7th Oct , 2011 on the occasion of " Shardiya Navratras & "Durga Pooja" around 40,000 people will put near about 6.0 lac kg of sacred material in the Yamuna. We can stop this once for all and solicit your cooperation.

    Since last 10 years Yamuna has been polluted every year with these sacred items. Yamuna is filled up with silt thus narrowing the river bed that cause floods in rainy season in Delhi. More over the river basis has also been narrowed/squeezed these are the reasons that the river is drying gradually but at an alarming rate und become prone to floods.

    This is a matter of concern for the Govt. of Delhi and other organization involved to check pollution in NCT but despite of the best efforts to check the pollution in river Yamuna people are not ready to cooperate, however, our Foundation interact with the people of the city and explained the plan and they are ready to cooperate and come forward to extend helping hands in this noble cause. I hereby request your goodself to come forward and support our foundation to check pollution in Yamuna. The Foundation has all the arrangements to stop the people from polluting it further and anticipating your active cooperation to sanctify Yamuna & keep the environment Safe and Clean. The Foundation has both the reason and solution to this problem.

    Thank you.
    Regards,
    Gopi Dutt Aakash ( President )
    E- gopiduttakash@gmail.com
    www.yffindia.blogspot.com


    The Foundation checks the people who dump or throw left over pooja samigri in Yamuna and to clean the river by taking out the same besides making arrangements to avoid polluting the river further.

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