मंगलवार, 19 मई 2015

राष्‍ट्रपति तक पहुंची LG-CM की लड़ाई: प्रणब से मिले जंग और केजरी


राष्ट्रपति से मिलने के बाद राष्ट्रपति भवन से बाहर जाता उपराज्यपाल का काफिला।
नई दिल्ली। सीनियर ब्‍यूरोक्रैट्स की नियुक्त्‍िा को लेकर दिल्‍ली सरकार और उपराज्‍यपाल के बीच जारी जंग मंगलवार को राष्ट्रपति भवन के चौखट तक पहुंच गई। उपराज्यपाल नजीब जंग ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर पूरे विवाद पर अपना पक्ष रखा और उन्हें दिल्ली सरकार में वरिष्ठ नौकरशाहों के तबादले और तैनाती से संबंधित मुद्दों से अवगत कराया। वह गृह मंत्री राजनाथ सिंह से भी मिले। उधर, मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी ने भी राष्‍ट्रपति से मिल कर अपनी बात रखी। इससे पहले केजरीवाल सरकार ने कानून विशेषज्ञ राजीव धवन से औपचारिक तौर पर इस मसले पर राय मंगवा ली है। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी चिट्ठी लिखने वाले हैं।

नियुक्ति को लेकर एलजी और सीएम का झगड़ा सोमवार को चरम पर पहुंच गया था। केजरीवाल सरकार ने मुख्य सचिव (PS) अनिंदो मजुमदार के ऑफिस में ताला लगवा दिया था। मजुमदार को उपराज्‍यपाल नजीब जंग ने नियुक्‍त किया था। केजरीवाल ने उनका ट्रांसफर कर दिया। जंग ने ट्रांसफर मंजूर नहीं किया। इसके बाद उनका ऑफिस सील करवाया गया।

धवन की राय में दिल्‍ली सरकार सुप्रीम

नियुक्ति को लेकर केजरीवाल की ओर से टकराव को जहां स्‍वतंत्र विशेषज्ञ गलत मान रहे हैं, वहीं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्‍ठ वकील राजीव धवन ने पूरी तरह दिल्‍ली सरकार का पक्ष लिया है। दिल्‍ली सरकार ने उनसे पूछा था कि एलजी-सरकार विवाद में सरकार को क्या करना चाहिए। इस मामले पर राय मांगी थी। धवन ने अपनी राय भेजते हुए यह भी लिखा है कि जब से आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है तब से उपराज्‍यपाल कई मामलों में जबरन दखलअंदाजी कर रहे हैं। यह स्‍वीकार्य नहीं हो सकता।

धवन ने जो राय सरकार को भेजी है, उसकी अहम बातें ये हैं-




- शमशेर सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब मामले में एक अदालती फैसले में यह स्पष्ट किया गया था कि मुख्यमंत्री की सलाह राज्यपालों के लिए बाध्यकारी होंगी। यही बात उपराज्यपाल के मामले में भी लागू होती है।

- दिल्ली के मामले में राष्ट्रपति शासन को छोड़कर बाकी स्थितियों में मुख्यमंत्री की सलाह उपराज्यपाल के लिए बाध्यकारी होगी।

- गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट 1991 के सेक्शन 41 के मुताबिक उपराज्यपाल का विशेषाधिकार विधानसभा से बाहर के सिर्फ उन मामलों में लागू होता है जिनमें उन्हें न्यायिक या अर्द्धन्यायिक अधिकार प्राप्त हैं। इसके अलावा उपराज्यपाल के पास कोई विशेषाधिकार नहीं होते।

- धवन कहते हैं कि सेक्शन 41 के मुताबिक, अगर उपराज्यपाल और मंत्रियों के बीच किसी मुद्दे पर मतभेद है तो उपराज्यपाल को वह मुद्दा कैबिनेट के पास भेजना होगा। अगर मुद्दा तब भी नहीं सुलझा तो उपराज्यपाल उसे केंद्र सरकार को रेफर कर सकते हैं। इसके बाद भी उपराज्यपाल के पास मामले को राष्ट्रपति के पास भेजने का विकल्प रहता है।

- उपराज्यपाल के पास दिल्ली के प्रशासन से जुड़ी जानकारी हासिल करने का अधिकार है लेकिन हर मामले में दखल देने का उन्हें अधिकार नहीं है।

- धवन ने बताया कि इन कानूनी पहलुओं पर गौर करने के बाद दो स्थितियां बन रही हैं। पहली- मुख्यमंत्री को अपनी पसंद का मुख्य सचिव रखने का पूरा अधिकार है। दूसरी- मुख्यमंत्री द्वारा अपनी पसंद के बारे में 40 घंटे तक नहीं बताना उपराज्यपाल के लिए इमरजेंसी पावर इस्तेमाल करने का पर्याप्त आधार नहीं है।

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