बाड़मेर। संरक्षण के अभाव में दम तोड़ रहा है बाड़मेर का चमड़ा कारोबार
बाड़मेर। दशकों तक बाड़मेर में हजारों हाथों को रोजगार देने वाला जुती-चमड़ा व्यवसाय मंहगाई के दौर में अपना अस्तितव बचाने का संघर्ष कर रहा है. उचित सरकारी संरक्षण नहीं मिलने के कारण जूती चमड़ा व्यवसाय विलुप्त होने के कगार पर आ गया है. बाड़मेर के होनहार कारीगरों की जिस कला से बाड़मेर को देश ही नहीं बल्कि विदेशों में पहचान दिलाई उन कारीगरों की कला अब दम तोड़ती जा रही है.
संकट में कला, और मुसीबत में कलाकार
बाड़मेर में चमड़ा व्यवसाय कारोबार के साथ-साथ कला का प्रतीक था. हस्तकला के जरिए सुंदर बनावट बाड़मेर की जुतियों की मांग देश विदेश में बनाए हुए थी. बाड़मेर शहर मे जीनगर समाज का पुश्तैनी व्यवसाय ही जुती निर्माण का रहा है. कारीगर गोविंद राम ने बताया कि अब मार्जिन बेहद कम रह गया है. पुश्तैनी धंधे की बजाय युवा अन्य काम में रुचि लेने लगे हैं. इसके चलते कुशल कारीगरों की कमी का सामना भी चमड़ा कारोबार को करना पड़ रहा है.
महिलाओं को थी आर्थिक मदद
जुती निर्माता तुलसी दास का कहना है कि बाड़मेर का चर्म कारोबार गांवों तक फैला हुआ था. महिलाएं बड़ी संख्या में इस पेशे से जुड़ी हुई थी. चर्म कला महिलाओं की आर्थिक मजबूती का अहम जरिया थी. अब इस व्यवसाय से जुड़े लोग मेहनताना कम मिलने के कारण व्यवसाय से दूरी बना रहे हैं.
राज्य सरकार से उम्मीद
बाड़मेर के मोटे चमड़ा रंगाई की व्यवस्था नजदीक नहीं होने एवं महंगे होते चमड़े के कारण कारोबार को हानि पहुंच रही है. छोटे कारोबारियों की उम्मीद अब राज्य सरकार पर टिकी है. सरकारी सहायता से इस कला को संजोए रखने की उम्मीद पाले बैठे कारीगरों की आखिरी उम्मीद अब एमएसएमई मंत्रालय और राज्य सरकार से है. जो इनके कारेाबार से जुड़ी समस्याओं को दूर कर इस कला और इनके कारोबार को जींवत रखने में सहयोगी साबित हो.
संकट में कला, और मुसीबत में कलाकार
बाड़मेर में चमड़ा व्यवसाय कारोबार के साथ-साथ कला का प्रतीक था. हस्तकला के जरिए सुंदर बनावट बाड़मेर की जुतियों की मांग देश विदेश में बनाए हुए थी. बाड़मेर शहर मे जीनगर समाज का पुश्तैनी व्यवसाय ही जुती निर्माण का रहा है. कारीगर गोविंद राम ने बताया कि अब मार्जिन बेहद कम रह गया है. पुश्तैनी धंधे की बजाय युवा अन्य काम में रुचि लेने लगे हैं. इसके चलते कुशल कारीगरों की कमी का सामना भी चमड़ा कारोबार को करना पड़ रहा है.
महिलाओं को थी आर्थिक मदद
जुती निर्माता तुलसी दास का कहना है कि बाड़मेर का चर्म कारोबार गांवों तक फैला हुआ था. महिलाएं बड़ी संख्या में इस पेशे से जुड़ी हुई थी. चर्म कला महिलाओं की आर्थिक मजबूती का अहम जरिया थी. अब इस व्यवसाय से जुड़े लोग मेहनताना कम मिलने के कारण व्यवसाय से दूरी बना रहे हैं.
राज्य सरकार से उम्मीद
बाड़मेर के मोटे चमड़ा रंगाई की व्यवस्था नजदीक नहीं होने एवं महंगे होते चमड़े के कारण कारोबार को हानि पहुंच रही है. छोटे कारोबारियों की उम्मीद अब राज्य सरकार पर टिकी है. सरकारी सहायता से इस कला को संजोए रखने की उम्मीद पाले बैठे कारीगरों की आखिरी उम्मीद अब एमएसएमई मंत्रालय और राज्य सरकार से है. जो इनके कारेाबार से जुड़ी समस्याओं को दूर कर इस कला और इनके कारोबार को जींवत रखने में सहयोगी साबित हो.
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