रविवार, 17 मई 2015

रोजाना 8 लाख पान खा जाते हैं जोधपुरवासी



जोधपुर 

रोजाना 8 लाख पान खा जाते हैं जोधपुरवासी



जोधपुरवासी पान के इस कदर शौकीन हैं कि एक दिन में 8 लाख पान खा जाते हैं। सदियों से पान का विशेष महत्व रहा है, यही वजह है कि राजे-रजवाड़ों के समय से चली आ रही पान की परम्परा आज भी कायम है। पान खाने को न केवल शौक व आदत की दृष्टि से देखा जाए, बल्कि पान खाने को आयुर्वेद में स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना गया है। शुभ व मांगलिक कार्यों में भी पान का विशेष महत्व है।

विदेशों में भी है डिमांड

शौक का यह आलम है कि शहर की प्रसिद्ध पान की दुकानों से विदेश तक पान जाते हैं। इसमें केशरियाजी पान, भामाशाह पान भण्डार, जगदीश पान, सुनिल पान, नेमीचंद पान भण्डार आदि प्रसिद्ध दुकानें हैं। इनमें से केशरियाजी पान, भामाशाह पान व जगदीश पान भण्डार से विदेशों तक पान जाते हैं। यहां से पान लंदन, अमरीका, दुबई, ऑस्ट्रेलिया सहित अनेक देशों में जाते हैं। केशरियाजी पान की शहर में 5 से अधिक तथा जगदीश पान की दो शाखाएं हैं।

शहर में करीब 1200 दुकानें

शहर में छोटी-बड़ी करीब 1200 पान की दुकानें हैं। इनमें से कई गली, मोहल्लों, नुक्कड़ों में, तो कई ठेलों आदि पर चल रही हैं। प्रतिदिन प्रत्येक दुकान से करीब 600-700 पान की खपत होती है। इनमें से बड़ी दुकानों पर यह आंकड़ा ज्यादा, तो छोटी दुकानों पर कम भी हो सकता है। इस लिहाज से अनुमानित प्रतिदिन शहर की सभी दुकानों से लगभग 8 लाख पान शहरवासियों द्वारा खाए जाते हैं। शहर में मीठा पान व जर्दा पान की मांग सबसे अधिक है।

जोधपुर में मद्रासी व कलकत्ती पान

जोधपुर में पान की केवल दो वैरायटी उपलब्ध है। इनमें से एक मद्रासी है, जिसे लंकी पान भी कहा जाता है और दूसरा कलकत्ती पान है, जो पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिले के मेछेड़ा से आता है। पान में लगाया जाने वाला कत्था उदयपुर, कोटा व नेपाल से आता है। नवम्बर से फरवरी तक पान की खेती कम होने की वजह से सादे पान की कीमत औसतन 10 रुपए हो जाती है। वहीं, मार्च से अक्टूबर तक सामान्य खेती होने से इसकी कीमत घटकर औसतन 5-6 रुपए हो जाती है।

सांप के स्पर्श वाले पान पत्ते

सरदारपुरा स्थित केशरियाजी पान भण्डार के संचालक प्रेमप्रकाश जैन ने बताया कि नागरबेल नामक बेल पर उगने के कारण इसे नागरवेल का पान भी कहा जाता है। इस बेल पर बड़ी संख्या में सांप लिपटे हुए रहते हैं, जो पत्तों पर छिड़के हुए पानी को ग्रहण करते हैं। इस प्रकार सांप द्वारा पत्ते को स्पर्श करने पर ही पत्ते में जान आती है और वह खाने योग्य होता है। इसके बाद पत्ते बेल के नीचे बनी पानी की टंकियों में गिराए जाते हैं। वहां सभी पान को धोकर गीले कपड़े में बांधकर छाबड़े में डालकर पैक कर सप्लाई की जाती है। दुकानों पर भी सप्लाई होने के बाद पान को पानी में या गीले कपड़े में रखा जाता है।

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