गुरुवार, 21 अगस्त 2014

1965 और 1971 में हुई जंग के 54 जाबांज हैं पाक में कैद



दिल्ली। पाकिस्तान की जेलों में भारत के 54 बहादुर सेनानी कैद हैं जिन्हें 1965 और 1971की लड़ाई के दौरान बंदी बना लिया गया था। रक्षा मंत्रालय ने सूचना के अधिकार अधिनियम आरटीआई के तहत दायर एक आवेदन के जवाब में यह बताया है। इन सेनानियों को छुड़ाने की कोशिशों अब तक विफल रही है।





देश की रक्षा करने वाले इन सेनानियों की जिन्दगी वर्षों से पाकिस्तान की जेलों के अंधियारे में कैद है। लेकिन पाकिस्तान ने आज तक इन युद्धबंदियों के अपनी जेलों में होने की बात स्वीकार नहीं की है। 2007 में इन रक्षाकर्मियों के 14 रिश्तेदारों ने पाकिस्तान की जेलों का दौरा भी किया था, लेकिन वे युद्धबंदियों की वास्तविक शारीरिक उपस्थिति की पुष्टि नहीं कर सके थे।

आवेदन में पूछा गया था कि पाकिस्तान की जेलों में कितने भारतीय युद्धबंदी हैं और उन्हें छुडाने के क्या प्रयास किए जा रहे हैं। रक्षा मंत्रालय से यह भी पूछा गया था कि जब 1971 में पाकिस्तान ने 90 हजार से अधिक सैनिकों के साथ भारत के समक्ष समर्पण कर दिया था तो इस लड़ाई के युद्धबंदियों को उसी समय छुड़ा पाना संभव क्यों नहीं हो पाया।

54 भारतीय युद्धबंदियों के होने का है विश्वास

विदेश मंत्रालय ने अपने जवाब में बताया है कि पाकिस्तान की जेलों में 54 भारतीय युद्धबंदियों के होने का विश्वास है। इनमें से छह रक्षाकर्मियों लेफ्टिनेंट वीके आजाद, गनर मदन मोहन, गनर सुजान सिंह, फ्लाइट लेफ्टिनेंट बाबुल गुहा, फ्लाइंग अफसर तेजिंदर सिंह सेठी और स्क्वाड्रन लीडर देव प्रसाद चटर्जी को 1965 के दौरान युद्धबंदी बनाया गया था, जबकि 48 रक्षाकर्मी 1971 की लड़ाई के दौरान बंदी बनाए गए थे।

बनाई गई है कमिटी

मुद्दे को देखने के लिए रक्षा मंत्रालय में त्रि-सेवा समिति गठित की गई है। रक्षा और विदेश मंत्रालय दोनों में से किसी ने भी आवेदन में पूछे गए इस सवाल का जवाब नहीं दिया है कि जब 1971 में पाकिस्तान ने शर्मनाक हार के बाद 90 हजार से अधिक सैनिकों के साथ समर्पण कर दिया था तो उसी समय भारत अपने युद्धबंदियों को छुड़ाने में कामयाब क्यों नहीं हो पाया।

उल्लेखनीय है कि 1971 में पाकिस्तान के समर्पण के साथ ही भारतीय सेना ने उसके करीब 93 हजार सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया था। यह द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पकड़े जाने वाले युद्धबंदियों की सबसे बड़ी संख्या थी। बाद में भारत ने 1973 में हुए समझौते के तहत पाकिस्तान के इन युद्धबंदियों को रिहा कर दिया था।

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