सोमवार, 28 जुलाई 2014

हरियाली तीज : शिव-पार्वती का त्योहार सावन और तीज







सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज के रूप में राजस्थान और मध्यप्रदेश खासतौर पर मालवांचल की महिलाएँ बहुत श्रद्धा और उत्साह से मनाती हैं। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव हमारे सर्वप्रिय पौराणिक युगल शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

तीज का महत्व : दो महत्वपूर्ण तथ्य इस त्योहार को महत्ता प्रदान करते हैं। पहला शिव-पार्वती से जुड़ी कथा और दूसरा जब तपती गर्मी से रिमझिम फुहारें राहत देती हैं और चारों ओर हरियाली छा जाती है। यदि तीज के दिन बारिश हो रही है तब यह दिन और भी विशेष हो जाता है।

जैसे मानसून आने पर मोर नृत्य कर खुशी प्रदर्शित करते हैं, उसी प्रकार महिलाएँ भी बारिश में झूले झूलती हैं, नृत्य करती हैं और खुशियाँ मनाती हैं। तीज के बारे में हिन्दू कथा है कि सावन में कई सौ सालों बाद शिव से पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। पार्वतीजी के 108वें जन्म में शिवजी उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न हुए और पार्वतीजी की अपार भक्ति को जानकर उन्हें अपनी पत्नी की तरह स्वीकार किया।



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महिला होने का गर्व : तीज का त्योहार वास्तव में महिलाओं को सच्चा आनंद देता है। इस दिन वे रंग-बिरंगे कपड़े, लकदक करते गहने पहन दुल्हन की तरह तैयार होती हैं। आज कल तो कुछ विशेष नजर आने की चाह में ब्यूटी पार्लर जाना एक आम बात हो गई है। नवविवाहिताएँ इस दिन अपने शादी का जोड़ा भी चाव से पहनती हैं। वैसे तीज के मुख्य रंग गुलाबी, लाल और हरा है। तीज पर हाथ-पैरों में मेहँदी भी जरूर लगाई जाती है।

वट वृक्ष का महत्व : एक समय महत्वपूर्ण परंपरा है वट वृक्ष के पूजन की। इसकी लटकती शाखों के कारण यह वृक्ष विशेष सौभाग्यशाली माना गया है। औरतें वट वृक्ष पर झूला बाँधती हैं और बारिश की फुहारों में भीगते-नाचते गाते हुए तीज मनाती हैं।

तीज के रीति-रिवाज :-
- पार्वतीजी का आशीष पाने के लिए महिलाएँ कई रीति-रिवाजों का पालन करती हैं। विवाहित महिलाएँ अपने मायके जाकर ये त्योहार मनाती हैं।

- जिन लड़कियों की सगाई हो जाती है, उन्हें अपने होने वाले सास-ससुर से सिंजारा मिलता है। इसमें मेहँदी, लाख की चूड़ियाँ, कपड़े (लहरिया), मिठाई विशेषकर घेवर शामिल होता है।

- विवाहित महिलाओं को भी अपने पति, रिश्तेदारों एवं सास-ससुर के उपहार मिलते हैं। इस दिन महिलाएँ उपवास रखती हैं।

- आकर्षक तरीके से सभी माँ पार्वती की प्रतिमा मध्य में रख आसपास महिलाएँ इकट्ठा होकर देवी पार्वती की पूजा करती हैं। विभिन्न गीत गाए जाते हैं।

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