रविवार, 15 अप्रैल 2012

अग्नि नृत्य की परंपरा आज भी कायम

अग्नि नृत्य की परंपरा आज भी कायम


बाड़मेर. जसनाथ महाराज के सिद्ध मला राग पर आग में नृत्य करने की अनूठी परंपरा वर्षों से चली आ रही है। कभी आग को हाथ में लेकर मुहं में चबाना तो कभी मुंह से आग से चिनगारियां निकालना या फिर आग पर पैरों से कूदते हुए नृत्य करनालेकिन लीलसर स्थित जसनाथ धाम पर शुक्रवार रात्रि में हुए अग्नि नृत्य ने हर किसी को अचरज में डाल दिया। सिद्ध संतों की ओर से आयोजित इस नृत्य में आग की अंगारों पर नाचते दौड़ते और आग को मुंह में चबाकर अंगारे निकालने जैसे दृश्य देख हर कोई अपने आप को तालियां बजाने से रोक नहीं पाया और पांडाल जसनाथ महाराज के जै कारे से गूंज उठा। मला राग व नगाड़ों की थाप का विशेष महत्व: आग में नृत्य करने के लिए कोई तपस्या या कोई तप की आवश्यकता नहीं रहती बल्कि धर्मगुरु जसनाथ महाराज के बताए रास्तों के अनुसार मला राग और नगाड़े की थाप के साथ ही सिद्ध आग में नृत्य करने लगते है, इसके लिए उन्हें 36 नियमों की पालना करनी होती है, जिसमें मांस मंदिरा सहित नशा पता नहीं करना होता है, अगर कोई ऐसा करता है और आग में नृत्य करे तो उसके परिणाम बुरे हो सकते है। नियमों की पालना कर अग्नि नृत्य करते है तो मला जाप के साथ ही अग्नि शांत अवस्था हो जाती है, जो न तो ठंडी रहती है और न ही गर्म। इस दौरान सिद्ध भक्त अग्नि पर नृत्य करने की अनूठी परंपरा निभाते है। इस अग्नि नृत्य की शुरूआत महाराजा औरंगजेब के समय से शुरू हुई थी जिस समय पहला परसा स्तंभ महाराज को दिया था। जिसके बाद आज भी मला राग के शब्द पर सिद्ध भक्त अग्नि नृत्य करते है। उस समय जसनाथ भगवान ने सिद्ध भक्तों को आशीर्वाद दिया था कि जो 36 नियमों की पालना करते हुए उनके बताए रास्ते पर चलने के साथ ही मला राग पर आग में नृत्य करेगा तो उसे आग का एहसास तक नहीं होगा। और उसके बाद ये परंपरा सदियों से चली आ रही है।

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