शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

पर्यावरण संरक्षण की अनूठी परंपरा वैशाखी पूजा

सरकार जहां लाखों-करोड़ों रुपए खर्च कर पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ खास नहीं कर पा रही, वहीं बुजुर्गों की बनाई परंपराएं आज भी पर्यावरण संरक्षण को वर्षों से निभाती आ रही है। वैशाख की गर्मी में आमजन के साथ पेड़-पौधों की भी हालत खराब हो जाती है, ऐसे में अल सवेरे वैशाख पूजन के तहत बड़ व पीपल सींचने की परंपरा इन वृक्षों के लिए जीवनदायी साबित हो रही है।

आज भी हो रहा है परंपराओं का निर्वहन

वैशाख मास में अल सवेरे बड़, पीपल आदि वृक्षों में पानी सींचने, भजन कीर्तन करने की परंपराएं शहर सहित ग्रामीण क्षेत्र में आज भी निर्वहन की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से कन्याओं को अच्छे वर की प्राप्ति होती है, वहीं विवाहिताओं के घर-परिवार में सुख-शांति व समृद्धि बनी रहती है।

अल सवेरे गूंजने लगते हैं हरि के कीर्तन, महिलाएं व कन्याएं लगीं वैशाख पूजन में, गांवों में धर्ममय माहौल, सूर्योदय से पूर्व बड़ व पीपल को सींचते है लोग

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