जैसलमेर के इतिहास का सुनहरा अध्याय जैसलमेरी महेश्वरी समाज .......

 जैसलमेर के इतिहास का सुनहरा अध्याय जैसलमेरी महेश्वरी समाज .......


भोपाल सिंह झलोडा



जैसलमेर भाटी राजवंश में महेश्वरी दीवानों की जो परम्परा लौद्रवा राज्य में रावल_मन्ध_जी से शुरू हुई, वह जैसलमेर राज्य के महारावलों ने भी अनवरत जारी रखी। दिवान, राजा और प्रधान के बाद रियासत का प्रमुख पद रहा है। जो राज्य की वित्तीय_व्यवस्थाओं का प्रशासनिक प्रमुख माना जाता था। अपनी बुद्धि, स्वामिभक्ति व प्रजाहितैषी भाव के कारण ही महेश्वरी सदा इस पद पर सुशोभित रहें। दिवान के अलावा भी महेश्वरियों ने कोठार प्रमुख, हाकिम एवं राजा के सलाहकार सदस्यों में रह रियासत को उत्कृष्ट सेवाएं दी। ओसवाल, भाटिया और पालीवालों की तरह महेश्वरी राज्य के बड़े व्यापारियों में सुमार थे। पुष्करणों, सेवगों एवं रतनुओं की तरह कुछ महेश्वरी ज्ञान में भी अपना स्थान रखते थे। वैश्य होने के कारण अधिकतर इनका कार्य व्यापार ही था। सिल्क रूट पर होने के कारण जैसलमेर वैसे भी एक बड़ी व्यापारिक मंडी था। लेकिन अपनी बुद्धि से इन्होंने खडीन खेती को भी लाभकारी बनाया। राज्य की सुरक्षा का भार भाटी राजपूतों पर था, वही राज के धणी थे। लेकिन राज्य के सोढा, सोलंकी, राठौड़, चौहान, देवत और सिसोदिया राजपूत भी भाटियों के साथ प्रमुखता से राज हित में लड़े। हजूरी और सिंधी भी राज के सिपाही रहें। कुछ हजूरी किलेदार भी रहें है। राज की सेवा में होने से कई जगह महेश्वरियों ने राजधर्म निभाते हुए कर्तव्य पथ पर बलिदान भी दिए। जिनके शिलालेख एवं छतरियां आज भी मौजूद है। अंग्रेजी काल के बाद राज्य में व्यापार के तरीके और रास्ते बदल गए। 




तो जैसलमेर के मुख्य एवं बड़े व्यापारियों ने देश के नए व्यापारिक केंद्रों का रुख किया। जिनमें जैसलमेर के महेश्वरी भी थे। जैसलमेर से जाकर इन्होंने व्यापार में अपनी धाक जमाई व जैसलमेर का भी नाम किया। आज भी जैसलमेर में काफी महेश्वरी परिवार बसते है। जिन्होंने यहाँ रह कर भी अच्छा नाम किया और स्वयं का व्यापार भी खड़ा किया। लेकिन पहले इनके शाखाओं के हिसाब से लगभग 25 - 26 मोहल्ले थे। जिन्हें जैसलमेर में पाडा कहते है और आज से दुगने - तिगुने महेश्वरी यहाँ रहते थे। यहाँ से जाकर भी यह लोग अपनी जमीन को नही भूले, अपने जैसलमेर को नही भूले। जिस तरह से रियासत काल में महेश्वरियों ने जनहित में तालाब खुदवाए, कुएं बनवाए ग्रामीण जनों व बाहरी लोगों के रात्रि विश्राम के लिए पठियालें बनवाई। मंदिरों के निर्माण एवं व्यवस्था में धन दिया। उसी तरह यहाँ से जाने के बाद भी जैसलमेर के लिए उनका ह्रदय सदैव खुला रहा। आज की आधुनिक जरूरतों के हिसाब से स्कूल एवं कॉलेजों का निर्माण करवाया। अस्पतालों एवं धर्मशालाओं का निर्माण करवाया एवं अपने संस्थानों के नाम से हर वर्ष जनहित में बड़ा रुपया खर्च करते आए है। लेकिन सायद अब वह आखिरी पीढ़ी है जो जैसलमेर को जानती है, समझती है और अपना मानती है। क्योंकि महेश्वरियों का पलायन अंग्रेजी काल से ही शुरू हो गया था जिसे लगभग 200 - 250  साल होने को आए है। इतने लंबे समय तक बाहर रह अपने बच्चों को अपनी जड़ों से जोड़े रखना मुश्किल ही नही कठिन कार्य है। लेकिन जैसलमेर का महेश्वरी समाज फिर भी इस प्रयास में सफल होता रहा है। तभी दो दिन से तीन दिवसीय जैसलमेर महेश्वरी अधिवेशन 2025 जैसलमेर में चल रहा है। जिसका आज आखिरी दिन है। आज और कल बाहर से पधारें हमारे प्रवासी महेश्वरी भाई फिर लौट जाएंगे। अपने उन तेज भागते शहरों की और जहाँ केवल जैसलमेर की कुछ मीठी यादें होंगी। यहाँ की मिट्टी में मिली उनके पूर्वजों के पुरुषार्थ की कुछ धुंधली तस्वीरें होंगी। जैसलमेर को आप से कुछ नही चाहिए। पहले भी आपके पूर्वजों ने काफी कुछ दिया है और आगे भी आप अपने जैसलमेर के लिए स्वतः देते रहेंगे। लेकिन जैसलमेर चाहता है कि आप आते रहें, अपनी इस मातृभूमि से मिलने। जहाँ आपके पुरखों ने जीवन बिताया, अपनापन पाया। जहाँ उनके गांव है, घर है, हवेलियां है और उनकी याद में खड़ी उनकी धरोहरें है। जिनका आज भी उतना ही महत्व है जितना कल था। जरूरत है तो उन धरोहरों के संरक्षण की, उनके संवर्धन की जिससे वे कल भी आपकी भावी पीढ़ी को बुला सकें। जिसे जिंदा देख वह भी गर्व कर सकें और कह सकें कि यह हमारा जैसलमेर है, यह हमारा जैसलमेर है .......


आपके स्वागत में आपका यह जैसलमेर सदैव खड़ा था, है और रहेगा। इस आशा के साथ कि मेरे अपने पुनः लौटेंगे .......


जय हिंद - जय जैसाण .......


9461993066

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