बाड़मेर में जीनगर समुदाय की महिलाएं दिखा रही हाथ का हुनर, कर रही लेदर पर कढ़ाई
बाड़मेर : मशीनी युग में भी बाड़मेर में जीनगर समुदाय की महिलाएं लेदर पर कढ़ाई की पारंपरिक कला जिंदा रखे हैं. लुप्त होती कला को इन महिलाओं ने अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया है. दिनभर घर के कामों में लगी रहने के बावजूद वे लेदर पर बारीकी से कढ़ाई के लिए वक्त निकालती हैं. उनके हुनरमंद हाथों से कढ़े जूते और बैग न केवल सुंदर दिखते हैं, बल्कि कला को आगे ले जाने में भी मददगार बने हैं.
जीनगर समाज की टीना डाबी बताती हैं कि उनके समुदाय में लेदर पर कशीदाकारी की जाती है. यह पारंपरिक कला है. इसे जीनगर समाज की महिलाएं और बालिकाएं पीढ़ियों से करती आ रही हैं. वे लेदर के जूतों, बैगों और अन्य उत्पादों पर कढ़ाई कर सुंदर बनाती हैं. ये उत्पाद देश और विदेशों में बेचे जाते हैं.
डाबी बताती हैं कि जीनगर महिलाएं घरेलू कामकाज पूरा करने के बाद यह काम करती हैं. यह उनके दैनिक खर्च के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत है. नई पीढ़ी की बालिकाएं समाज की बुजुर्ग महिलाओं से कला सीखती हैं. उन्हें यह कला सीखना चाहिए ताकि लुप्त ना हो. डाबी मानती हैं कि आज के समय में शिक्षा और आधुनिकता का प्रभाव ज्यादा है. अगर नई पीढ़ी काशीदाकारी के काम में अपनी सोच और नवाचार जोड़े तो यह कला और निखरेगी व आगे बढ़ेगी.
बैग, पर्स पर कशीदाकारीः कौशल्या डाबी ने बताया कि पुरुष लेदर से बैग व पर्स बनाते हैं. इसके बाद महिलाएं उन पर कशीदाकारी से अलग डिजाइन बनाकर सुंदर बनाती हैं. ये उत्पाद देश-दुनिया में बिकते हैं. नई पीढ़ी की बालिकाओं को सिखाते है कि यह हमारा रोजगार है, जो पुराने समय से चला आ रहा है. यह आगे भी चलता रहना चाहिए. ज्योति सोलंकी बताती हैं कि घर का कामकाज पूरा करने के बाद दिन में तीन-चार घंटे निकालकर लेदर पर कढ़ाई करती हैं. इससे लगभग 100-150 रुपए मिल जाते हैं, जो घर खर्च में काम आते हैं. हमारे घर के बुजुर्ग इस काम को करते थे. उन्हें देखकर हम भी यह काम कर रहे हैं.
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