पहाड़ पर माता की पालकी रखकर गायों की रक्षा को गए धूहड़जी वीरगति को प्राप्त हुए तो यहीं नागाणा में विराजित हुई नागणेच्चिया

 

पहाड़ पर माता की पालकी रखकर गायों की रक्षा को गए धूहड़जी वीरगति को प्राप्त हुए तो यहीं नागाणा में विराजित हुई नागणेच्चिया




बालोतरा नागाणा धाम स्थित अखिल भारतीय राठौड़ वंश की कुलदेवी मां नागणेच्चिया माता मंदिर देशभर के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। जहां शारदीय नवरात्रों के साथ होली के बाद आने वाले चैत्री नवरात्रा में नौ दिन तक अखंड ज्योत रहती है। नवरात्रा पर्व में हर दिन हजारों की तादाद में श्रद्धालु मंदिर में दर्शन पूजन के लिए पहुंचते हैं। राठौड़ वंश की कुलदेवी होने से हर जिले व राज्य से श्रद्धालु शुक्ल पक्ष में दर्शन पूजन के लिए पहुंचते हैं। मंदिर में श्रद्धालुओं के ठहरने, दर्शन, पार्किंग, छाया, पानी व सुरक्षा व्यवस्था को लेकर तीर्थ संस्थान की आेर से माकूल बंदोबस्त किए गए हैं। नागाणा धाम के बारे में बताया जाता है कि राव सिहा के वंशज राव धूहड़जी ने विक्रम संवत 1362 में माताजी को पालकी में बैठाकर खेड़ की तरफ जा रहे थे। नागाणा गांव में लुटेरे गायों को ले जा रहे थे।


माताजी की पालकी को पहाड़ पर रखकर राव धूहड़जी गायों की रक्षा के लिए लुटेरों से युद्ध करने लग गए एवं वीरगति को प्राप्त हुए। उसी दिन से पहाड़ी पर नागणेच्चिया माता का स्थान बन गया। वर्ष 2000 के बाद मंदिर में शराब व पशुबलि पर प्रतिबंध लगाया गया। 2007 में नागणेच्चिया माता मंदिर ट्रस्ट पूर्व महाराजा गजसिंह के नेतृत्व में बनाया गया। क्षेत्र के प्राचीन शक्तिपीठ स्थल के जीर्णोद्धार के लिए 13 सितम्बर 2009 को मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद गजसिंह ने भूमि पूजन किया। 50 करोड़ की लागत से मंदिर का निर्माण कार्य जारी है। इसमें भव्य मंदिर व हवनकुंड का द्रविड़ व नागर शैली में निर्माणाधीन मंदिर दूर से ही आकर्षक नजर आ रहा है। परिसर में गोरक्षक पाबूजी राठौड़ का मंदिर बना हुआ है।


राव धूहड़जी व पीथड़जी द्वार भी दर्शकों के लिए मनमोहक बने हुए हैं। मंदिर के पास की पहाड़ पर प्राकृतिक धर्मबारी है, जिसमें से निकल कर पापमुक्त होने की मान्यता है। देवस्थान विभाग द्वारा वर्ष 2018 में 7.5 करोड़ की लागत से धर्मशाला, पार्किंग के विकास कार्य किए गए। वहीं वर्तमान राज्य सरकार द्वारा 3 करोड़ के विकास कार्य प्रगतिरत है। नागाणा राजस्व गांव में 2000 बीघा भूमि पूर्वजों ने ओरण के लिए आरक्षित रखी थी। कुछ लोग वन अर्थात अरण्य शब्द के अपभ्रंश स्वरूप से ‘ओरण’ शब्द की उत्पत्ति मानते हैं। ओरण की परम्परा के सम्बन्ध में यह है कि मरुक्षेत्र में ढाणियां एवं गांव बसने के साथ-साथ गांव की भूमि के एक भूखंड को स्थानीय ग्रामीण अपने किसी लोक देवी-देवता या पितरों के नाम संकल्पित कर छोड़ देने की परम्परा शताब्दियों पुरानी है। ऐसा ही नागाणा में हुआ है।


माता की श्रृंगारित प्रतिमा नागाणा धाम में स्थित नागणेच्चिया मां का मंदिर। इस ओरण भूमि पर स्वतः कैर, कुम्मट, खेजड़ी, जाल, बैर, खींप, अरणा, बबूल की वन सम्पदाएं पनपी हुई हैं। हाल ही में मारवाड़ राजपूत सभा द्वारा कल्याणपुर से नागाणा धाम तक एक पेड़ मां के नाम के तहत 5000 पौधे लगाए गए। चैत्री नवरात्रा पर नौ दिन तक चलेगा मेला, हजारों श्रद्धालु मां के दरबार में करेंगे दर्शन होली के बाद चैत्री नवरात्रा शुरू होने के साथ ही मंदिर में हजारों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचेंगे। दीपावली से पहले आने वाले शारदीय व चैत्री नवरात्रा पर मंदिर में अखंड ज्योत जलती है। नवरात्रा में मां शक्ति की उपासना के लिए हजारों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इसके लिए मंदिर संस्थान की ओर से पुख्ता बंदोबस्त किए गए हैं।


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