बाड़मेर,सरहदी गांवों में पानी चोरी का डर .जहां तालों में कैद रहता हें पानी
बारी बारी पेयजल स्रोतों की करते हें पहरेदारी
चन्दन सिंह भाटी
बाड़मेर राजस्थान के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर में कोरोना संक्रमण की सुरक्षा के लिए लगाए लॉक डाउन के दौरान गर्मी की दस्तक के साथ लोगो को पानी की समस्याओ से दो चार होना पड़ रहा हें ,भारत पाकिस्तान सीमा पर बसे बाड़मेर जिले के सरहदी गाँवों में भीषण गर्मी की दस्तक के साथ हालात विकट हो चुके हें ,छह छह माह से होदियो में पानी नहीं आने से गाँव वालो के हलक सूख गए हें ,जलदाय विभाग हर साल गर्मी के मौसम से ठीक पहले आपात योजना के तहत करोडो रुपयों का बजट पुरानी पेयजल योजनाओ के दुरुस्तीकरण के लिए खर्च करते हें .मगर सरहदी चौहटन उप खंड के गफन क्षेत्र के तेरह गाँवो के हालत कुछ और ही बयान कर रहे हें ,इस क्षेत्र के तेरह गाँव गफानो के गाँव कहे जाते हें यानी रेतीले धोरो के बीच के विषम गाँव जन्हा पानी क्या इंसान भी नहीं पहुँच पाते .रमजान की गफन ,आर बी की गफन ,तमाची की गफन ,लक्खे का तला ,भीलो का तला ,भुन्गारिया ,रासबानी ,आदी में लोग पानी की एक एक बूँद के लिए तरस रहे हें .
पाकिस्तान की सरहद से सटे राजस्थान के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर में तापमान बढ़ने के साथ-साथ पानी की समस्या विकराल होती जा रही है। सरहदी गांवों में ग्रामीण पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं। पानी की विकट समस्या के कारण गांवों में पलायन की स्थिति बन गई है। गांवों में पारंपरिक पेयजल स्रोत सूख गए हैं। लगातार छठे साल पड़े अकाल के कारण पारंपरिक कुएं, तालाब, बावडि़यों, बेरियों तथा टांकों का पानी सूख चुका है। हालात ये हैं कि जिले के लगभग 860 गांव पेयजल की किसी योजना से जुड़े नहीं हैं। इन कमीशंड, नॉन कमीशंड गांवों में प्रशासन द्वारा पानी के टेंकरों की व्यवस्था की गई है, मगर, यह महज खानापूर्ति तक ही सीमित है। गांवों में टैंकर पहुंच ही नहीं पा रहे हैं। ऐसे में गांवों में लोगों ने पानी पर पहरेदारी शुरू कर दी है।
जिले के सीमावर्ती क्षेत्र चौहटन के विषम भोगोलिक परिस्थितियों में बसे गफनों के 1३ गांवों में पेयजल सबसे बडी त्रासदी है। इन 13 गांवों- रमजान की गफन, आरबी की गफन, तमाची की गफन, भोजारिया, भीलों का तला, मेघवालों का तला, रेगिस्तानी धोरों के बीच बसे हुए हैं। इन गांवों में पहुंचने के लिए कोई रास्ता तक नहीं है। ऐसे में ग्रामीण अपनी छोटी-छोटी पानी की बेरियों पर ताले लगा कर रखते हैं। तालों के साये में पानी रखना यहां की परम्परा और जरूरत है। इन गांवों के लोग पानी की एक-एक बूंद की कीमत और उपयोगिता जानते हैं।
पानी के कारण गांवों में होने वाले झगडों के कारण ग्रामीण मजबूरी में पानी को सुरक्षित रखने के लिए ताले लगा कर रखते हैं ताकि पानी चोरी ना हो जाए। मगर, इस बार पानी की जानलेवा किल्लत ने ग्रामीणों को पानी की सुरक्षा के लिए पहरेदारी का सहारा लेने पर मजबूर कर दिया। गांव के सलाया खान निवासी तमाची की गफन ने संवाददाता को बताया कि टांकों पर ताले जड़ने के बाद भी पानी चोरी हो जाता है। पानी की समस्या इस कदर है कि ग्रामीण अपनी जान जोखिम में डाल कर पानी चोरी कर ले जाते हैं। चोरों का पता लगाने का प्रयास भी किया मगर सफलता नहीं मिली, तो ग्रामीणों ने पंचायत बुलाकर निर्णय लिया कि परंपरागत रूप से बनी पानी की बेरियो पर बारी बारी पहरेदारी की जाए ,इन गाँवों में जातिगत हिसाब से मोहला वाइज़ पानी की बेरिया बनी हें।सभी बेरियो पर लोगो ने अपने अपने ताले जड़ रखे हें ,रासबानी के जुम्मा खान के अनुसार पानी की भयंकर किल्लत हें ,सरकारियो पेयजल योजनाओ से पानी सप्लाई हुए वर्षो बीत ,गए निजी टेंकरों की कीमत प्रति टेंकर हज़ार रुपये हें जिसे देने की स्थति में हम नहीं हें ,प्रशासन को कई बार लिखित और मौखिक रूप से पानी की समस्या के बारे में बता चुके हें मगर कोई समाधान नहीं निकल रहा .पानी की होदियो में पानी कभी आया ही नहीं ,
जनप्रतिनिधि गूंगे बहरे हें ,
रमजान की गफन के अली मोहम्मद ने बताया की पानी की सुरक्षा की इससे बेहतर व्यवस्था नहीं हो सकती।प्रत्येक परिवार अपनी बेरी के साथ अन्य बेरियो की पहरेदारी करता हें ताकि पानी चोरी ना हो . उन्होंने बताया कि चालीस किलोमीटर के दायरे में पेयजल का कोई स्रोत नहीं है। पानी का एक टैंकर टांके में डलवाते हैं, तो प्रति टैंकर एक हज़ार रूपए का खर्चा आता है। ऐसे में पानी चोरी होने से आर्थिक नुकसान के साथ पानी की समस्या भी खड़ी हो जाती है। हालांकि, इस समस्या और ग्रामीणों द्वारा की जा रही सुरक्षा व्यवस्था पर कोई प्रशासनिक अधिकारी बोलने को तैयार नहीं। मगर, यह सच है कि रेगिस्तानी इलाकों में प्रशासनिक लापरवाही और उपेक्षा के चलते ग्रामीणों को पानी की सुरक्षा के लिए पहल करनी पडी । यह है भारत के लोकतंत्र का नजारा। बाड़मेर जिले के गांवों में पानी की समस्या कोई नई बात नहीं है। मगर, प्रशासनिक लापरवाही के चलते हालात इतने विकट होंगे, यह किसी ने नहीं सोचा था।
बारी बारी पेयजल स्रोतों की करते हें पहरेदारी
चन्दन सिंह भाटी
बाड़मेर राजस्थान के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर में कोरोना संक्रमण की सुरक्षा के लिए लगाए लॉक डाउन के दौरान गर्मी की दस्तक के साथ लोगो को पानी की समस्याओ से दो चार होना पड़ रहा हें ,भारत पाकिस्तान सीमा पर बसे बाड़मेर जिले के सरहदी गाँवों में भीषण गर्मी की दस्तक के साथ हालात विकट हो चुके हें ,छह छह माह से होदियो में पानी नहीं आने से गाँव वालो के हलक सूख गए हें ,जलदाय विभाग हर साल गर्मी के मौसम से ठीक पहले आपात योजना के तहत करोडो रुपयों का बजट पुरानी पेयजल योजनाओ के दुरुस्तीकरण के लिए खर्च करते हें .मगर सरहदी चौहटन उप खंड के गफन क्षेत्र के तेरह गाँवो के हालत कुछ और ही बयान कर रहे हें ,इस क्षेत्र के तेरह गाँव गफानो के गाँव कहे जाते हें यानी रेतीले धोरो के बीच के विषम गाँव जन्हा पानी क्या इंसान भी नहीं पहुँच पाते .रमजान की गफन ,आर बी की गफन ,तमाची की गफन ,लक्खे का तला ,भीलो का तला ,भुन्गारिया ,रासबानी ,आदी में लोग पानी की एक एक बूँद के लिए तरस रहे हें .
पाकिस्तान की सरहद से सटे राजस्थान के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर में तापमान बढ़ने के साथ-साथ पानी की समस्या विकराल होती जा रही है। सरहदी गांवों में ग्रामीण पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं। पानी की विकट समस्या के कारण गांवों में पलायन की स्थिति बन गई है। गांवों में पारंपरिक पेयजल स्रोत सूख गए हैं। लगातार छठे साल पड़े अकाल के कारण पारंपरिक कुएं, तालाब, बावडि़यों, बेरियों तथा टांकों का पानी सूख चुका है। हालात ये हैं कि जिले के लगभग 860 गांव पेयजल की किसी योजना से जुड़े नहीं हैं। इन कमीशंड, नॉन कमीशंड गांवों में प्रशासन द्वारा पानी के टेंकरों की व्यवस्था की गई है, मगर, यह महज खानापूर्ति तक ही सीमित है। गांवों में टैंकर पहुंच ही नहीं पा रहे हैं। ऐसे में गांवों में लोगों ने पानी पर पहरेदारी शुरू कर दी है।
जिले के सीमावर्ती क्षेत्र चौहटन के विषम भोगोलिक परिस्थितियों में बसे गफनों के 1३ गांवों में पेयजल सबसे बडी त्रासदी है। इन 13 गांवों- रमजान की गफन, आरबी की गफन, तमाची की गफन, भोजारिया, भीलों का तला, मेघवालों का तला, रेगिस्तानी धोरों के बीच बसे हुए हैं। इन गांवों में पहुंचने के लिए कोई रास्ता तक नहीं है। ऐसे में ग्रामीण अपनी छोटी-छोटी पानी की बेरियों पर ताले लगा कर रखते हैं। तालों के साये में पानी रखना यहां की परम्परा और जरूरत है। इन गांवों के लोग पानी की एक-एक बूंद की कीमत और उपयोगिता जानते हैं।
पानी के कारण गांवों में होने वाले झगडों के कारण ग्रामीण मजबूरी में पानी को सुरक्षित रखने के लिए ताले लगा कर रखते हैं ताकि पानी चोरी ना हो जाए। मगर, इस बार पानी की जानलेवा किल्लत ने ग्रामीणों को पानी की सुरक्षा के लिए पहरेदारी का सहारा लेने पर मजबूर कर दिया। गांव के सलाया खान निवासी तमाची की गफन ने संवाददाता को बताया कि टांकों पर ताले जड़ने के बाद भी पानी चोरी हो जाता है। पानी की समस्या इस कदर है कि ग्रामीण अपनी जान जोखिम में डाल कर पानी चोरी कर ले जाते हैं। चोरों का पता लगाने का प्रयास भी किया मगर सफलता नहीं मिली, तो ग्रामीणों ने पंचायत बुलाकर निर्णय लिया कि परंपरागत रूप से बनी पानी की बेरियो पर बारी बारी पहरेदारी की जाए ,इन गाँवों में जातिगत हिसाब से मोहला वाइज़ पानी की बेरिया बनी हें।सभी बेरियो पर लोगो ने अपने अपने ताले जड़ रखे हें ,रासबानी के जुम्मा खान के अनुसार पानी की भयंकर किल्लत हें ,सरकारियो पेयजल योजनाओ से पानी सप्लाई हुए वर्षो बीत ,गए निजी टेंकरों की कीमत प्रति टेंकर हज़ार रुपये हें जिसे देने की स्थति में हम नहीं हें ,प्रशासन को कई बार लिखित और मौखिक रूप से पानी की समस्या के बारे में बता चुके हें मगर कोई समाधान नहीं निकल रहा .पानी की होदियो में पानी कभी आया ही नहीं ,
जनप्रतिनिधि गूंगे बहरे हें ,
रमजान की गफन के अली मोहम्मद ने बताया की पानी की सुरक्षा की इससे बेहतर व्यवस्था नहीं हो सकती।प्रत्येक परिवार अपनी बेरी के साथ अन्य बेरियो की पहरेदारी करता हें ताकि पानी चोरी ना हो . उन्होंने बताया कि चालीस किलोमीटर के दायरे में पेयजल का कोई स्रोत नहीं है। पानी का एक टैंकर टांके में डलवाते हैं, तो प्रति टैंकर एक हज़ार रूपए का खर्चा आता है। ऐसे में पानी चोरी होने से आर्थिक नुकसान के साथ पानी की समस्या भी खड़ी हो जाती है। हालांकि, इस समस्या और ग्रामीणों द्वारा की जा रही सुरक्षा व्यवस्था पर कोई प्रशासनिक अधिकारी बोलने को तैयार नहीं। मगर, यह सच है कि रेगिस्तानी इलाकों में प्रशासनिक लापरवाही और उपेक्षा के चलते ग्रामीणों को पानी की सुरक्षा के लिए पहल करनी पडी । यह है भारत के लोकतंत्र का नजारा। बाड़मेर जिले के गांवों में पानी की समस्या कोई नई बात नहीं है। मगर, प्रशासनिक लापरवाही के चलते हालात इतने विकट होंगे, यह किसी ने नहीं सोचा था।
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