जैसलमेर पुलिस के जवान द्वारा अपनी रचना से शहीद राजेन्द्रसिंह की शहादत को सलाम
जैसलमेर पुलिस के जवान लूणसिंह द्वारा शहीद राजेन्द्रसिंह की स्म़ति में रचित की रचनाराजेंद्र रूपक को जिला पुलिस अधीक्षक द्वारा सराहा गया
28 सितंबर 2019 को मोहनगढ़ निवासी राजेंद्रसिंह आतंकवादियों से लोहा लेते हुए जम्मू में शहीद हो गये द्य उनके जीवनवृत्त पर कवि.साहित्यकार महेंद्र सिंह छायण ने श्राजेंद्र रूपकश् पुस्तक संपादित की द्य जिसमें पुलिस विभाग में पदस्थापित कानि लूणसिंह महाबार द्वारा शहीद राजेन्द्रसिंह की शहादत को सलाम करते हुए श्राजेंद्र रूपकश् में अपनी क़ति शहीद ए राजेन्द्र के रूप में लिखा जिसको आज दिनांक 21य10य2019 को कानिय लूणसिंह महाबार द्वारा जिला पुलिस अधीक्षक जैसलमेर डॉ किरन कंग सिधू द्वारा को राजेंद्र रूपक की प्रति भेंट की द्य पुस्तक का अवलोकन करके जिला पुलिस अधीक्षक जैसलमेर अभिभूत हुए तथा इस महत्कार्य की प्रशंसा की तथा पुस्तक के संपादक महेंद्र सिंह छायण को बधाई प्रेषित की द्य
श्राजेंद्र रूपकश् में कांस्टेबल लूणसिंह महाबार की लेखनी को पढकर पुलिस अधीक्षक द्वारा की गई सराहना
उक्त पुस्तक में जैसलमेर पुलिस में तैनात कानि लूणसिंह महाबार द्वारा श्शहीद.ए.राजेंद्रश् शीर्षक से कविता प्रकाशित हुई हैं । पुलिस अधीक्षक द्वारा उक्त कविता को पढ़कर लूणसिंह महाबार को बधाई देते हुएए उनकी लेखन के क्षेत्र में अत्यंत सराहना की तथा उनके उज्जवल भविष्य की भी कामना की तथा भविष्य में भी इसी प्रकार अपनी लेखनी को जारी रखने की बात कहीा
गौरतलब हैं यह कृति शहीद की शहादत के सात दिन बाद प्रकाशित होकरए पूरे प्रदेशभर में चर्चा व प्रशंसा का कारण बनी हैं द्य इससे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी श्राजेंद्र रूपकश् की सराहना कर चुके हैं द्य
ज्ञात रहे कि लूणसिंह महाबार जिला पुलिस में कानि के पद पर 2015 से पदस्थापित है जिनको कविता लिखने एवं प्राक़तिक फोटोग्राफी करते है तथा सामाजिक कार्यो में भी अपनी अग्रणीय भूमिका निभाते हैा इनके द्वारा रचित अनेको कविताऐंए आलेख विभिन्न पत्र, पत्रिकाओं में तथा आकाशवाणी में कई बार प्रशारित हुई हैा यह सभी कार्य वह अपने पुलिस के अति व्यस्थ डयूटी समय में से निकालकर करते हैा
कानि. लूणसिंह महाबार द्वारा रचित कविता
शहीद.ए.राजेन्द्र
मेरी शहादत तो एक रलह हैए
कुछ सोए हुए नोजवानों को निन्द्रासन से अभी जगाना है।
कि मातृभूमि पर को संकट के बादल छाएए
तुम कर देना न्यौछावर स्वयं कोए
जहाँ से जग में नाम शहीदों का गूंजेगा।
एक लौ बन चला मैंए
मुझे खुद बूझकर अबए
नव शोलों को भड़काना है!
खुद होकरए
गुलाम मौत काए
हिन्द को अब आजाद बनाना है।
लगी बाजी प्राणों की हैंए
दुश्मन छाती पर तिरंगा जो लहराना है।
भयभीत हो जायेए
देख जिसे शत्रुए
वो अंजाम.ए.तूफान अब लाना है।
रगों में बह रहा रक्त हैं आज मेराए
इस रक्त के आवेग को तुम्हे बढ़ाना है।
शत्रु अनजान है हिंदुस्तानी लहू की गर्मी सेए
उसे रजपूती रक्त लहू का उबाल तुम्हे दिखाना है।
रक्त मांगे मातृभूमिए
रक्त से अपने अबए
शत्रु को नहलाना है।
श्जीवित रहना ही केवल जीवन नहीश्ए
निडर व निर्भीक होकर जीयोए
यह सब को अब सिखलाना है।
अब जब समय ने माँगी हैए
स्वतंत्रता संग्राम के हवन.कुंड में
आहुति मेरे प्राणों कीए
अब मुझे न पीछे कदम हटाना था।
जब इस फूलों बिछी राह को चुना तबए
उसी दिन विजय या वीरगति का निष्चय मैं के चुका था।
मेरे कन्धो पर जो थाए
भर सरजमीं काए
इस भर को मुझे ही तो उठाना था।
स्वतंत्र भारत के स्वपनए
दन होने से तुमको बचाना है।
मैं हूँ एक ढलता हुआ सूरजए
मेरी मौत के पश्चात ए
एक नई सुबह को आना है।
मेरे महबूब;वतन के लिएद्ध
मेरी मौत पर अश्क मत बहानाए
तुम्हे तो अभी मुस्कराना है।
तुझे इस मातृभूमि के वाशिन्दों के भरोसे छोड़ चलाए
अब तेरा परिवार बड़ा विशाल है।
माँ तुम स्वर्गलोक से ये मत सोचनाए
कि लाल क्यों सो गयाए
मैं सोकर भी सबको जगा चला हूँए
तुम सिर्फ ये देखनाए
की मुझे राष्ट्र के लिए शहादत देते देखए
कितने नोजवानों का शीत रक्त उबलेगा।
मेरी शहादत के बाद भीए
मेरे जिस्म से बहा लहू का हर एक कतराए
इंकलाब जिंदाबाद बोलेगाण्ण्ण्
वंदेमातरम बोलेगाण्ण्ण्
’लूणसिंह महाबार’
’’’ ’’
जैसलमेर पुलिस के जवान लूणसिंह द्वारा शहीद राजेन्द्रसिंह की स्म़ति में रचित की रचनाराजेंद्र रूपक को जिला पुलिस अधीक्षक द्वारा सराहा गया
28 सितंबर 2019 को मोहनगढ़ निवासी राजेंद्रसिंह आतंकवादियों से लोहा लेते हुए जम्मू में शहीद हो गये द्य उनके जीवनवृत्त पर कवि.साहित्यकार महेंद्र सिंह छायण ने श्राजेंद्र रूपकश् पुस्तक संपादित की द्य जिसमें पुलिस विभाग में पदस्थापित कानि लूणसिंह महाबार द्वारा शहीद राजेन्द्रसिंह की शहादत को सलाम करते हुए श्राजेंद्र रूपकश् में अपनी क़ति शहीद ए राजेन्द्र के रूप में लिखा जिसको आज दिनांक 21य10य2019 को कानिय लूणसिंह महाबार द्वारा जिला पुलिस अधीक्षक जैसलमेर डॉ किरन कंग सिधू द्वारा को राजेंद्र रूपक की प्रति भेंट की द्य पुस्तक का अवलोकन करके जिला पुलिस अधीक्षक जैसलमेर अभिभूत हुए तथा इस महत्कार्य की प्रशंसा की तथा पुस्तक के संपादक महेंद्र सिंह छायण को बधाई प्रेषित की द्य
श्राजेंद्र रूपकश् में कांस्टेबल लूणसिंह महाबार की लेखनी को पढकर पुलिस अधीक्षक द्वारा की गई सराहना
उक्त पुस्तक में जैसलमेर पुलिस में तैनात कानि लूणसिंह महाबार द्वारा श्शहीद.ए.राजेंद्रश् शीर्षक से कविता प्रकाशित हुई हैं । पुलिस अधीक्षक द्वारा उक्त कविता को पढ़कर लूणसिंह महाबार को बधाई देते हुएए उनकी लेखन के क्षेत्र में अत्यंत सराहना की तथा उनके उज्जवल भविष्य की भी कामना की तथा भविष्य में भी इसी प्रकार अपनी लेखनी को जारी रखने की बात कहीा
गौरतलब हैं यह कृति शहीद की शहादत के सात दिन बाद प्रकाशित होकरए पूरे प्रदेशभर में चर्चा व प्रशंसा का कारण बनी हैं द्य इससे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी श्राजेंद्र रूपकश् की सराहना कर चुके हैं द्य
ज्ञात रहे कि लूणसिंह महाबार जिला पुलिस में कानि के पद पर 2015 से पदस्थापित है जिनको कविता लिखने एवं प्राक़तिक फोटोग्राफी करते है तथा सामाजिक कार्यो में भी अपनी अग्रणीय भूमिका निभाते हैा इनके द्वारा रचित अनेको कविताऐंए आलेख विभिन्न पत्र, पत्रिकाओं में तथा आकाशवाणी में कई बार प्रशारित हुई हैा यह सभी कार्य वह अपने पुलिस के अति व्यस्थ डयूटी समय में से निकालकर करते हैा
कानि. लूणसिंह महाबार द्वारा रचित कविता
शहीद.ए.राजेन्द्र
मेरी शहादत तो एक रलह हैए
कुछ सोए हुए नोजवानों को निन्द्रासन से अभी जगाना है।
कि मातृभूमि पर को संकट के बादल छाएए
तुम कर देना न्यौछावर स्वयं कोए
जहाँ से जग में नाम शहीदों का गूंजेगा।
एक लौ बन चला मैंए
मुझे खुद बूझकर अबए
नव शोलों को भड़काना है!
खुद होकरए
गुलाम मौत काए
हिन्द को अब आजाद बनाना है।
लगी बाजी प्राणों की हैंए
दुश्मन छाती पर तिरंगा जो लहराना है।
भयभीत हो जायेए
देख जिसे शत्रुए
वो अंजाम.ए.तूफान अब लाना है।
रगों में बह रहा रक्त हैं आज मेराए
इस रक्त के आवेग को तुम्हे बढ़ाना है।
शत्रु अनजान है हिंदुस्तानी लहू की गर्मी सेए
उसे रजपूती रक्त लहू का उबाल तुम्हे दिखाना है।
रक्त मांगे मातृभूमिए
रक्त से अपने अबए
शत्रु को नहलाना है।
श्जीवित रहना ही केवल जीवन नहीश्ए
निडर व निर्भीक होकर जीयोए
यह सब को अब सिखलाना है।
अब जब समय ने माँगी हैए
स्वतंत्रता संग्राम के हवन.कुंड में
आहुति मेरे प्राणों कीए
अब मुझे न पीछे कदम हटाना था।
जब इस फूलों बिछी राह को चुना तबए
उसी दिन विजय या वीरगति का निष्चय मैं के चुका था।
मेरे कन्धो पर जो थाए
भर सरजमीं काए
इस भर को मुझे ही तो उठाना था।
स्वतंत्र भारत के स्वपनए
दन होने से तुमको बचाना है।
मैं हूँ एक ढलता हुआ सूरजए
मेरी मौत के पश्चात ए
एक नई सुबह को आना है।
मेरे महबूब;वतन के लिएद्ध
मेरी मौत पर अश्क मत बहानाए
तुम्हे तो अभी मुस्कराना है।
तुझे इस मातृभूमि के वाशिन्दों के भरोसे छोड़ चलाए
अब तेरा परिवार बड़ा विशाल है।
माँ तुम स्वर्गलोक से ये मत सोचनाए
कि लाल क्यों सो गयाए
मैं सोकर भी सबको जगा चला हूँए
तुम सिर्फ ये देखनाए
की मुझे राष्ट्र के लिए शहादत देते देखए
कितने नोजवानों का शीत रक्त उबलेगा।
मेरी शहादत के बाद भीए
मेरे जिस्म से बहा लहू का हर एक कतराए
इंकलाब जिंदाबाद बोलेगाण्ण्ण्
वंदेमातरम बोलेगाण्ण्ण्
’लूणसिंह महाबार’
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