*शर्मनाक हालात जैसलमेर के,नाली सड़को की शिकायत मुख्यमंत्री से,स्थानीय जनप्रतिनिधियों की खामोशी*
*बाडमेर न्यूज़ ट्रैक*
*जेसलमेर सूबे के मुखिया जेसलमेर आये।।उनके सामने सबसे निचले स्तर की शिकायतें दर्ज कराई जनता ने।।अमूमन ऐसी शिकायते जिले के हाकिम के सामने भी नही रखते।।ये स्थानीय जन प्रतिनिधियों की जनता के अधिकारों की सीधी अनदेखी है।जन प्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी निभाने की बजाय राजनीति गुटबाज़ियो में ज्यादा रुचि रखते है।या विवाद क्रिएट करते है।।ये शर्मनाक स्थति है।।देश दुनिया मे जेसलमेर विखतात पर्यटन स्थल है।लाखो लोग इसे निहारने प्रति वर्ष आते है।जजेसलमेर वासियो और सरकार को राजस्व दे जाते है।आज जो हालात शहर के है कोई नही काज सकता कि ये हेरिटेज शहर है।।हेरिटेज शहरों की स्थति इतनी बुरी नहीं होती।नगर परिषद ,जिला प्रशासन,जैसी इकाईयों के साथ स्थानीय जन प्रतिनिधि कभी शहर को सुधारने के प्रति कटिबद्ध नही लगे। शहर के लोग मन मसोस के बेठे।किसके सामने दुखड़ा रोये। सूबे की अंतिम कड़ी मुखिया अशौक गहलोत के समक्ष शहर वासियों के दर्द फुट पड़ा। क्या स्थानीय जन प्रतिनिधियों का कोई दायित्व नही है।क्या ये उनका अपना शहर नही है क्या जन प्रतिनिधियों के चलने के लिए कोई अलग से सड़के बनी है या नल कनेक्शन अलग कोटे से है। शहर बिना कपड़ों की तरह उघड़ा पड़ा है।।शहर की इज्जत तार तार हो रही है।मजाल है कोई बोल जाए शहर की बदहाल स्थति पर।।अफसोस जनक तो ये है कि अच्छा होता स्थानीय लोग सूबे के मुखिया से जेसलमेर के विकास के लिए पैकेज मांगते,रोजगार मांगते।मगर आज भी उन्हें मुख्यमंत्री से नाली और सड़क की मांग करनी पड़ती है।फिर शहर इतने जनप्रतिनिधि क्यों चुनता है जब ये अपना दायित्व पूरा नहीं करते।।नगर परिषद ने टेंडर कर रखे।ठेकेदार ग्रुप बाज़ी कर काम शुरू नही कर रहे।क्या यही दायित्व है।।आज हालात बद है कल बदतर होंगे।जिम्मेदार क्या जवाब देंगे।है कोई जवाब स्थानीय जनप्रतिनिधियों के पास।।जब एक नागरिक सड़क नाली की मांग मुख्यमंत्री से करे तो इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ हो नही सकता।।
*बाडमेर न्यूज़ ट्रैक*
*जेसलमेर सूबे के मुखिया जेसलमेर आये।।उनके सामने सबसे निचले स्तर की शिकायतें दर्ज कराई जनता ने।।अमूमन ऐसी शिकायते जिले के हाकिम के सामने भी नही रखते।।ये स्थानीय जन प्रतिनिधियों की जनता के अधिकारों की सीधी अनदेखी है।जन प्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी निभाने की बजाय राजनीति गुटबाज़ियो में ज्यादा रुचि रखते है।या विवाद क्रिएट करते है।।ये शर्मनाक स्थति है।।देश दुनिया मे जेसलमेर विखतात पर्यटन स्थल है।लाखो लोग इसे निहारने प्रति वर्ष आते है।जजेसलमेर वासियो और सरकार को राजस्व दे जाते है।आज जो हालात शहर के है कोई नही काज सकता कि ये हेरिटेज शहर है।।हेरिटेज शहरों की स्थति इतनी बुरी नहीं होती।नगर परिषद ,जिला प्रशासन,जैसी इकाईयों के साथ स्थानीय जन प्रतिनिधि कभी शहर को सुधारने के प्रति कटिबद्ध नही लगे। शहर के लोग मन मसोस के बेठे।किसके सामने दुखड़ा रोये। सूबे की अंतिम कड़ी मुखिया अशौक गहलोत के समक्ष शहर वासियों के दर्द फुट पड़ा। क्या स्थानीय जन प्रतिनिधियों का कोई दायित्व नही है।क्या ये उनका अपना शहर नही है क्या जन प्रतिनिधियों के चलने के लिए कोई अलग से सड़के बनी है या नल कनेक्शन अलग कोटे से है। शहर बिना कपड़ों की तरह उघड़ा पड़ा है।।शहर की इज्जत तार तार हो रही है।मजाल है कोई बोल जाए शहर की बदहाल स्थति पर।।अफसोस जनक तो ये है कि अच्छा होता स्थानीय लोग सूबे के मुखिया से जेसलमेर के विकास के लिए पैकेज मांगते,रोजगार मांगते।मगर आज भी उन्हें मुख्यमंत्री से नाली और सड़क की मांग करनी पड़ती है।फिर शहर इतने जनप्रतिनिधि क्यों चुनता है जब ये अपना दायित्व पूरा नहीं करते।।नगर परिषद ने टेंडर कर रखे।ठेकेदार ग्रुप बाज़ी कर काम शुरू नही कर रहे।क्या यही दायित्व है।।आज हालात बद है कल बदतर होंगे।जिम्मेदार क्या जवाब देंगे।है कोई जवाब स्थानीय जनप्रतिनिधियों के पास।।जब एक नागरिक सड़क नाली की मांग मुख्यमंत्री से करे तो इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ हो नही सकता।।
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