थार का चुनावी रण
बाड़मेर मानवेन्द्र के पाला बदलने से गड़बड़ाया चुनावी गणित
राज्य विधानसभा चुनाव की तिथि निकट आने के साथ सीमावर्ती बाड़मेर जिले के रेगिस्तानी धोरों में सियासत गरमाने लगी है। भाजपा अपनी ताकत को बरकरार रखने के लिए और कांग्रेस रेगिस्तान में खो गई अपनी ताकत को फिर से हासिल करने का कवायद में जुटी है। गत विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के इस गढ़ को पूरी तरह ढहा दिया था और सात में से छह सीट पर कब्जा जमा लिया था, लेकिन इस बार समीकरण पूरी तरह से बदले हुए नजर आ रहे है।
गत लोकसभा चुनाव में भाजपा के ठुकरा देने के बाद यहां से ताल ठोक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे कद्दावर नेता जसवंत सिंह जसोल के कारण इस क्षेत्र पर पूरे देश की निगाह थी। यही कारण है कि गत लोकसभा चुनाव के पश्चात यहां का चुनावी गणित पूरी तरह से बदल चुका है। रही सही कसर जसवंत के बेटे विधायक मानवेन्द्र सिंह के कांग्रेस में शामिल होने से पूरी हो गई।
गत चुनाव में मोदी लहर के दौरान इस क्षेत्र के सबसे बड़े जातिय समूह जाटों ने खुलकर भाजपा का साथ दिया था। जबकि राजपूत भाजपा के साथ पहले से जुड़े थे। इस बार दोनों ने भाजपा से दूरी बना रखी है। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि भाजपा इन्हें कैसे अपने साथ जोड़े रख पाती है।
बाड़मेर शहर विधानसभा क्षेत्र में गत चुनाव में चली मोदी लहर अप्रभावी रही और कांग्रेस के मेवाराम जैन ने बाड़मेर की राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी गंगाराम चौधरी की पोती प्रियंका चौधरी को पराजित कर यहां से जीत हासिल कर ली। इस बार भी इन दोनों के बीच में ही मुकाबला होता नजर आ रहा है। हालांकि यहां से सांसद कर्नल सोनाराम ने भी अपनी दावेदारी जता रखी है। देखने वाली बात होगी कि भाजपा किसे अपना प्रत्याशी चुनती है।
पचपदरा विधानसभा सीट पर अमराराम ने जीत हासिल की थी। उन्होंने कांग्रेस के मदन प्रजापत को पराजित किया था। एक बार फिर इन दोनों के बीच मुकाबला देखने को मिल सकता है।
बायतू सीट पर गत बार भाजपा के युवा प्रत्याशी कैलाश चौधरी ने दिग्गज नेता कर्नल सोनाराम को पराजित किया था। इसके बाद लोकसभा चुनाव में सोनाराम भाजपा में शामिल हो गए थे और यहां से सांसद का चुनाव जीत गए। अब भाजपा की तरफ से कैलाश के मैदान में उतरने की संभावना नजर आ रही है। वहीं कांग्रेस यहां से पूर्व सांसद हरीश चौधरी को अपना प्रत्याशी बना सकती है। हरीश को इस क्षेत्र के सबसे प्रभावशाली जाट नेता हेमाराम चौधरी का पूर्ण समर्थन हासिल है।
गुडामालानी सीट हमेशा से कांग्रेस का सबसे सुरक्षित किला माना जाता रहा है, लेकिन गत चुनाव में भाजपा ने यहां सेंध मार दी और उसके प्रत्याशी लादूराम विश्नोई ने हेमाराम को पराजित कर दिया था। अब हेमाराम चौधरी एक बार फिर पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरने जा रहे है. जबकि भाजपा लादूराम विश्नोई या उनके बेटे केके विश्नोई में से किसी एक को प्रत्याशी बना सकती है।
शिव से वर्तमान भाजपा विधायक मानवेन्द्र सिंह कांग्रेस हाथ थाम चुके है। ऐसे में भाजपा यहां से किसी नए चेहरे की तलाश में है। जबकि कांग्रेस अपने परम्परागत अमीन खान को यहां से मैदान में उतारने की तैयारी में है। हालांकि यहां से चौहटन में बरसों तक हावी रहे अब्दुल हादी का परिवार भी दावेदारी जता रहा है।
चौहटन सुरक्षित सीट पर तरुण राय कागा ने जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार सीमावर्ती इस क्षेत्र में समीकरण बदले हुए नजर आ रहे है। कांग्रस व भाजपा यहां से किसी नए चेहरे की तलाश में है।
सिवाना में इस बार रोचक मुकाबला हो सकता है। कांग्रेस हमेशा से यहा किसी मूल ओबीसी जाति के व्यक्ति को अपना प्रत्याशी बनाती रही है। गत चुनाव में भाजपा के राजपूत प्रत्याशी हमीर सिंह ने जीत हासिल की थी। कांग्रेस की तरफ से इस बार यहां से मानवेन्द्र सिंह की पत्नी चित्रा सिंह का नाम सबसे आगे चल रहा है। हालांकि मानवेन्द्र कह चुके है कि उनके परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ेगा। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि उनकी पत्नी चुनाव लड़ती है या नहीं।
बाड़मेर मानवेन्द्र के पाला बदलने से गड़बड़ाया चुनावी गणित
राज्य विधानसभा चुनाव की तिथि निकट आने के साथ सीमावर्ती बाड़मेर जिले के रेगिस्तानी धोरों में सियासत गरमाने लगी है। भाजपा अपनी ताकत को बरकरार रखने के लिए और कांग्रेस रेगिस्तान में खो गई अपनी ताकत को फिर से हासिल करने का कवायद में जुटी है। गत विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के इस गढ़ को पूरी तरह ढहा दिया था और सात में से छह सीट पर कब्जा जमा लिया था, लेकिन इस बार समीकरण पूरी तरह से बदले हुए नजर आ रहे है।
गत लोकसभा चुनाव में भाजपा के ठुकरा देने के बाद यहां से ताल ठोक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे कद्दावर नेता जसवंत सिंह जसोल के कारण इस क्षेत्र पर पूरे देश की निगाह थी। यही कारण है कि गत लोकसभा चुनाव के पश्चात यहां का चुनावी गणित पूरी तरह से बदल चुका है। रही सही कसर जसवंत के बेटे विधायक मानवेन्द्र सिंह के कांग्रेस में शामिल होने से पूरी हो गई।
गत चुनाव में मोदी लहर के दौरान इस क्षेत्र के सबसे बड़े जातिय समूह जाटों ने खुलकर भाजपा का साथ दिया था। जबकि राजपूत भाजपा के साथ पहले से जुड़े थे। इस बार दोनों ने भाजपा से दूरी बना रखी है। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि भाजपा इन्हें कैसे अपने साथ जोड़े रख पाती है।
बाड़मेर शहर विधानसभा क्षेत्र में गत चुनाव में चली मोदी लहर अप्रभावी रही और कांग्रेस के मेवाराम जैन ने बाड़मेर की राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी गंगाराम चौधरी की पोती प्रियंका चौधरी को पराजित कर यहां से जीत हासिल कर ली। इस बार भी इन दोनों के बीच में ही मुकाबला होता नजर आ रहा है। हालांकि यहां से सांसद कर्नल सोनाराम ने भी अपनी दावेदारी जता रखी है। देखने वाली बात होगी कि भाजपा किसे अपना प्रत्याशी चुनती है।
पचपदरा विधानसभा सीट पर अमराराम ने जीत हासिल की थी। उन्होंने कांग्रेस के मदन प्रजापत को पराजित किया था। एक बार फिर इन दोनों के बीच मुकाबला देखने को मिल सकता है।
बायतू सीट पर गत बार भाजपा के युवा प्रत्याशी कैलाश चौधरी ने दिग्गज नेता कर्नल सोनाराम को पराजित किया था। इसके बाद लोकसभा चुनाव में सोनाराम भाजपा में शामिल हो गए थे और यहां से सांसद का चुनाव जीत गए। अब भाजपा की तरफ से कैलाश के मैदान में उतरने की संभावना नजर आ रही है। वहीं कांग्रेस यहां से पूर्व सांसद हरीश चौधरी को अपना प्रत्याशी बना सकती है। हरीश को इस क्षेत्र के सबसे प्रभावशाली जाट नेता हेमाराम चौधरी का पूर्ण समर्थन हासिल है।
गुडामालानी सीट हमेशा से कांग्रेस का सबसे सुरक्षित किला माना जाता रहा है, लेकिन गत चुनाव में भाजपा ने यहां सेंध मार दी और उसके प्रत्याशी लादूराम विश्नोई ने हेमाराम को पराजित कर दिया था। अब हेमाराम चौधरी एक बार फिर पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरने जा रहे है. जबकि भाजपा लादूराम विश्नोई या उनके बेटे केके विश्नोई में से किसी एक को प्रत्याशी बना सकती है।
शिव से वर्तमान भाजपा विधायक मानवेन्द्र सिंह कांग्रेस हाथ थाम चुके है। ऐसे में भाजपा यहां से किसी नए चेहरे की तलाश में है। जबकि कांग्रेस अपने परम्परागत अमीन खान को यहां से मैदान में उतारने की तैयारी में है। हालांकि यहां से चौहटन में बरसों तक हावी रहे अब्दुल हादी का परिवार भी दावेदारी जता रहा है।
चौहटन सुरक्षित सीट पर तरुण राय कागा ने जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार सीमावर्ती इस क्षेत्र में समीकरण बदले हुए नजर आ रहे है। कांग्रस व भाजपा यहां से किसी नए चेहरे की तलाश में है।
सिवाना में इस बार रोचक मुकाबला हो सकता है। कांग्रेस हमेशा से यहा किसी मूल ओबीसी जाति के व्यक्ति को अपना प्रत्याशी बनाती रही है। गत चुनाव में भाजपा के राजपूत प्रत्याशी हमीर सिंह ने जीत हासिल की थी। कांग्रेस की तरफ से इस बार यहां से मानवेन्द्र सिंह की पत्नी चित्रा सिंह का नाम सबसे आगे चल रहा है। हालांकि मानवेन्द्र कह चुके है कि उनके परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ेगा। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि उनकी पत्नी चुनाव लड़ती है या नहीं।
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