अलवर। बुलंद हौंसले से कम्पनियों के पैकेज को ठुकराकर अपनाई समाजसेवा की राह
अलवर। हौंसले बुलंद हो तो हर राह आसान हो जाती है, बस इरादे नेक होने चाहिए। रैणी तहसील के गांव भजेड़ा की सरपंच दीपा अग्रवाल ने समाजसेवा की राह चुनकर यह साबित कर दिया कि अपनी खुशी से ज्यादा कीमती है दूसरों की खुशी। मात्र 23 साल की उम्र में सरपंच बनकर दीपा गांव वालों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर गांव की उन्नति व विकास के लिए काम कर रही है।
बीटेक की शिक्षा लेने के बाद उसे कई बड़ी कंपनियों के ऑफर आए, लेकिन उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और गांव में समाजसेवा की कार्यों में लगी रही। इसी का परिणाम है कि वह सरपंच के पद तक पहुंच गई।
दीपा ने इंजीनियरिंग की डिग्री ले ली है, लेकिन उसका उदेश्य प्रशासनिक सेवा में जाना है। इसके लिए वह कोचिंग कर तैयारी कर रही हैं। सरपंच का पद जिम्मेदारी से निभाने के साथ-साथ वह गांव की बेटियों को शिक्षित कर रही है। उसका मानना है कि बेटियां पढ़ेंगी तो वे भी इसी तरह से आगे बढ़ सकेंगी और गांव का विकास होगा। उसका सबसे ज्यादा ध्यान गांव में शौचालय बनाने पर है।
दीपा के पिता लल्लूराम अग्रवाल व माता निर्मला देवी ने बताया कि वो अपनी बेटी को इंजीनियर बनाना चाहते थे। दीपा ने उनका सपना पूरा कर दिया लेकिन अब वह अपने सपने को पूरा कर गांव में मिसाल बनना चाहती है।
अलवर। हौंसले बुलंद हो तो हर राह आसान हो जाती है, बस इरादे नेक होने चाहिए। रैणी तहसील के गांव भजेड़ा की सरपंच दीपा अग्रवाल ने समाजसेवा की राह चुनकर यह साबित कर दिया कि अपनी खुशी से ज्यादा कीमती है दूसरों की खुशी। मात्र 23 साल की उम्र में सरपंच बनकर दीपा गांव वालों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर गांव की उन्नति व विकास के लिए काम कर रही है।
बीटेक की शिक्षा लेने के बाद उसे कई बड़ी कंपनियों के ऑफर आए, लेकिन उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और गांव में समाजसेवा की कार्यों में लगी रही। इसी का परिणाम है कि वह सरपंच के पद तक पहुंच गई।
दीपा ने इंजीनियरिंग की डिग्री ले ली है, लेकिन उसका उदेश्य प्रशासनिक सेवा में जाना है। इसके लिए वह कोचिंग कर तैयारी कर रही हैं। सरपंच का पद जिम्मेदारी से निभाने के साथ-साथ वह गांव की बेटियों को शिक्षित कर रही है। उसका मानना है कि बेटियां पढ़ेंगी तो वे भी इसी तरह से आगे बढ़ सकेंगी और गांव का विकास होगा। उसका सबसे ज्यादा ध्यान गांव में शौचालय बनाने पर है।
दीपा के पिता लल्लूराम अग्रवाल व माता निर्मला देवी ने बताया कि वो अपनी बेटी को इंजीनियर बनाना चाहते थे। दीपा ने उनका सपना पूरा कर दिया लेकिन अब वह अपने सपने को पूरा कर गांव में मिसाल बनना चाहती है।
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