मंगलवार, 7 जून 2016

उदयपुर.हल्दीघाटी में नहीं हुई थी प्रताप की पराजय , अकबर ने खफा होकर लगाई थी मानसिंह पर पाबंदी



उदयपुर.हल्दीघाटी में नहीं हुई थी प्रताप की पराजय , अकबर ने खफा होकर लगाई थी मानसिंह पर पाबंदी


18 जून 1576 में हकीम सूर के नेतृत्व में महाराणा प्रताप का हरावल हल्दीघाटी के उत्तर-पूर्वी मुहाने से बाहर निकला। उसके पीछे प्रताप के नेतृत्व में सेना का मुख्य दस्ता बाहर आया। हरावल ने पूर्ण प्रचण्डता से शत्रु सेना की अग्रिम पंक्ति पर धावा बोला। आक्रमण इतना भीषण था कि मुगल सैनिक युद्ध मैदान से भाग खडे़ हुए।

हल्दीघाटी में नहीं हुई थी प्रताप की पराजय , अकबर ने खफा होकर लगाई थी मानसिंह पर पाबंदी




इतिहास के इस महान युद्ध की गाथा जब भी कोई सुनता है तो प्रताप और उनकी सेना पर गर्व की अनुभूति करता है। हल्दीघाटी संग्राम का यह वर्णन किया है डॉ. आशीर्वादलाल श्रीवास्तव ने। उन्होंने बताया कि युद्ध के प्रत्यक्षदर्शी बदायूंनी ने कहीं भी प्रताप की पराजय का जिक्र नहीं किया है। कई इतिहासकारों का भी दावा है कि हल्दीघाटी युद्ध का परिणाम प्रताप के पक्ष में रहा था।

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मुगल इतिहासकार अबुल फजल लिखते हैं कि युद्ध के परिणाम से नाखुश अकबर ने तीन महीने तक मानसिंह व आसिफ खां के मुगल दरबार में आने पर पाबंदी लगा दी थी। युद्ध में जान सस्ती और इज्जत महंगी हो गई थी।




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बदायूंनी लिखते हैं कि प्रताप के आक्रमण से मुगल सैनिकों ने 10-15 किलोमीटर तक भाग कर जान बचाई। बाद में प्रताप की सेना के दोनों भाग एक हुए और वे पहाड़ों की ओर चले गए। मुगल सेना ने उनका पीछा करने का साहस नहीं किया। इसके तीन कारण गिनाए जाते हैं। पहला गर्मी बहुत थी, दूसरा सैनिक बुरी तरह थक चुके थे एवं तीसरा मुगल सेना को डर था कि मेवाड़ की सेना घात लगाकर बैठी होगी, अचानक आक्रमण हुआ तो पूरी मुगल सेना समाप्त हो जाएगी।

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युद्ध में प्रताप को सफलता मिली। पहली बार राजस्थान में मुगल सेना के अजेय होने का भ्रम पूरी तरह टूट गया। राजस्थानी और फारसी स्रोतों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि हल्दीघाटी युद्ध में विजय प्रताप की हुई थी।

प्रो. केएस गुप्ता, इतिहासकार




युद्ध में विजय प्रताप की

हुई थी। 1577 में जारी हुए पट्टों के ताम्रपत्र इसका जीवंत प्रमाण हैं। मुगल इतिहासकारों ने एक तरफा वर्णन किया है।

डॉ. चंद्रशेखर शर्मा, इतिहासकार

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