पश्चिमी सरहद से चन्दन सिंह भाटी
मूलभूत सुविधाओं से महरूम भारतीय सीमा का अंतिम दलित गांव समेले का तला ,ना सड़क न पानी ना बिजली
पश्चिमी सरहद से चन्दन सिंह भाटी
सीमावर्ती बाड़मेर जिले के पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे भारतीय क्षेत्र के अंतिम दलित आबादी का गांव समले का तला उर्फ़ कलरो का तला आज़ादी के पेंसठ साल बाद भी मूल भुत सुविधाओं से महरूम हैं ,ना सड़क ,ना पानी ,ना बिजली ,ना सरकारी योजना का कोई लाभ ,जैसे इस गांव के लोग आदिकाल का जीवन जी रहे हैं ,
करीब चौदह सौ मतदाताओं वाले इस दलित गांव में अनुसूचित जाति मेघवाल परिवार रहते हैं ,गाँव में सरकारी बिल्डिंग के नाम पर स्वास्थ्य केंद्र और स्कूल जरूर बनी हैं ,मगर स्कूल में अध्यापक और स्वास्थ्य केंद्र में परिचारिका नहीं ,
सड़कमार्ग ही नहीं
सरहदी इलाके में कहने को ग्रेफ ने सड़कों का जाल बिछा रखा हैं मगर इस गांव को अपनी सड़क तक नसीब नहीं हुई जबकि इस गांव के सत्तर फ़ीट ऊँचे धोरे पर सीमा सुरक्षा बल की अग्रिम पोस्ट कलरो का टला स्थापित हैं ,इस पोस्ट पर भी जाने के लिए कोई सड़क नहीं हैं ,धोरो से गुजरना पड़ता हैं पैदल ,गांव में आने जाने के लिए कोई सड़क मार्ग नहीं
बिजली कुछ घरों में
इस गांव में रहने वाले सारे अनुसूचित जति श्रेणी के हैं ,विद्युत विभाग द्वारा गत चालीस सालो से अनुसूचित जाति परिवारों को बिजली से जोड़ने की दर्जनों योजनाए शुरू की गयी थी ,मगर एक भी योजना का लाभ इस गांव को नहीं मिला ,कुछ बी पी एल परिवार हे जिनके बिजली कनेक्षन हो गए तो बिजली सप्लाई नहीं आती
पानी बेरिया भी जवाब दे चुकी
जलदाय विभाग ने इस गांव में कोई दो साल पहले जी एल आर और उसका आगोर लाखो रुपये खर्च करके बनाया मगर आज तक किसी पेयजल योजना या पाइप लाइन योजना से नहीं जोड़ा ,जी एल आर कबूतरों का आशियाना बन गया ,गांव में करीब एक दर्जन पानी की बेरिया परम्परागत रूप से बनी हुई हैं मगर सभी बेरियो का पानी रीत चूका ,एक विशाल कुआ हैं जो बंद पड़ा हैं ,पानी के लिए गांव की महिलाओं और बच्चों को मिलो का सफर तय कर दो घड़े पानी लाना पड़ता हैं ,या चार सौ रुपये में दस हज़ार लीटर का टेंकर खरीदना पड़ता हैं
खेल सामग्री अध्यापक रखते ताले में
सीमा सुरक्षा बल द्वारा ग्रामीणों के सहयोग के लिए अक्सर चिकित्सा और शिक्षा शिविर लगा ग्रामीणों की मदद की जाती हैं ,सीमा सुरक्षा बल द्वारा छात्रों के लिए उपलब्ध कराई खेल सामग्री प्रधानाध्यापक और अध्यापक अपने घर ले गए ,इन बच्चों के खेल विकास के लिए उस सामग्री का उपयोग होने नहीं दिया
नरेगा में एक भी काम नहीं
रोजगार गारंटी का दावा करने वाली नरेगा योजना से भी इस गाँव को वंचित रखा गया ,नरेगा में एक भी काम इस गाँव में स्वीकृत नहीं हैं ,सरपंच गांव से बीस किलोमीटर दूर नवातला रहता हैं ,जबकि नरेगा में इस गांव को सार्वजनिक ,व्यक्तिगत टाँके और ग्रेवल सड़क का काम आसानी से स्वीकृत किया जा सकता हैं
पशुधन के लिए चारा पानी नहीं
इस गाँव में हर परिवार के पास गोधन हैं ,इस पशुओं के लिए चारे पानी की व्यवस्था में ग्रामीणों का दिन पूरा हो जाता हैं ,हर घर में गाय हैं। इनके लिए पानी की व्यवस्था तो जैसे तेज़ कर लेते हैं मगर चारा की व्यवथा नहीं हो पाती ,अकाल राहत में पशु शिविर की दरकार हैं
सीमा सुरक्षा बल की पोस्ट बिना सड़क
इसी गाँव में करीब सत्तर फ़ीट ऊँचे धोरे पर सीमा सुरक्षा बल की बी ओ पी कलरो का तला के के टी स्थापित हैं ,इस पोस्ट पर जाने के लिए सड़क नहीं हैं ,ग्रेवल भी नहीं ,जवानों द्वारा मार्ग अपने स्तर पर बनाया गया मगर रेतीली आंधियो के चलते इस अस्थायी मार्ग पर पुनः धोरे स्थापित हो जाते हैं सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम या नरेगा में इस गांव और बी ओ पी को सड़क से जोड़ा जा सकता था ,मगर कभी प्रयास नहीं हुए
मूलभूत सुविधाओं से महरूम भारतीय सीमा का अंतिम दलित गांव समेले का तला ,ना सड़क न पानी ना बिजली
पश्चिमी सरहद से चन्दन सिंह भाटी
सीमावर्ती बाड़मेर जिले के पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे भारतीय क्षेत्र के अंतिम दलित आबादी का गांव समले का तला उर्फ़ कलरो का तला आज़ादी के पेंसठ साल बाद भी मूल भुत सुविधाओं से महरूम हैं ,ना सड़क ,ना पानी ,ना बिजली ,ना सरकारी योजना का कोई लाभ ,जैसे इस गांव के लोग आदिकाल का जीवन जी रहे हैं ,
करीब चौदह सौ मतदाताओं वाले इस दलित गांव में अनुसूचित जाति मेघवाल परिवार रहते हैं ,गाँव में सरकारी बिल्डिंग के नाम पर स्वास्थ्य केंद्र और स्कूल जरूर बनी हैं ,मगर स्कूल में अध्यापक और स्वास्थ्य केंद्र में परिचारिका नहीं ,
सड़कमार्ग ही नहीं
सरहदी इलाके में कहने को ग्रेफ ने सड़कों का जाल बिछा रखा हैं मगर इस गांव को अपनी सड़क तक नसीब नहीं हुई जबकि इस गांव के सत्तर फ़ीट ऊँचे धोरे पर सीमा सुरक्षा बल की अग्रिम पोस्ट कलरो का टला स्थापित हैं ,इस पोस्ट पर भी जाने के लिए कोई सड़क नहीं हैं ,धोरो से गुजरना पड़ता हैं पैदल ,गांव में आने जाने के लिए कोई सड़क मार्ग नहीं
बिजली कुछ घरों में
इस गांव में रहने वाले सारे अनुसूचित जति श्रेणी के हैं ,विद्युत विभाग द्वारा गत चालीस सालो से अनुसूचित जाति परिवारों को बिजली से जोड़ने की दर्जनों योजनाए शुरू की गयी थी ,मगर एक भी योजना का लाभ इस गांव को नहीं मिला ,कुछ बी पी एल परिवार हे जिनके बिजली कनेक्षन हो गए तो बिजली सप्लाई नहीं आती
पानी बेरिया भी जवाब दे चुकी
जलदाय विभाग ने इस गांव में कोई दो साल पहले जी एल आर और उसका आगोर लाखो रुपये खर्च करके बनाया मगर आज तक किसी पेयजल योजना या पाइप लाइन योजना से नहीं जोड़ा ,जी एल आर कबूतरों का आशियाना बन गया ,गांव में करीब एक दर्जन पानी की बेरिया परम्परागत रूप से बनी हुई हैं मगर सभी बेरियो का पानी रीत चूका ,एक विशाल कुआ हैं जो बंद पड़ा हैं ,पानी के लिए गांव की महिलाओं और बच्चों को मिलो का सफर तय कर दो घड़े पानी लाना पड़ता हैं ,या चार सौ रुपये में दस हज़ार लीटर का टेंकर खरीदना पड़ता हैं
खेल सामग्री अध्यापक रखते ताले में
सीमा सुरक्षा बल द्वारा ग्रामीणों के सहयोग के लिए अक्सर चिकित्सा और शिक्षा शिविर लगा ग्रामीणों की मदद की जाती हैं ,सीमा सुरक्षा बल द्वारा छात्रों के लिए उपलब्ध कराई खेल सामग्री प्रधानाध्यापक और अध्यापक अपने घर ले गए ,इन बच्चों के खेल विकास के लिए उस सामग्री का उपयोग होने नहीं दिया
नरेगा में एक भी काम नहीं
रोजगार गारंटी का दावा करने वाली नरेगा योजना से भी इस गाँव को वंचित रखा गया ,नरेगा में एक भी काम इस गाँव में स्वीकृत नहीं हैं ,सरपंच गांव से बीस किलोमीटर दूर नवातला रहता हैं ,जबकि नरेगा में इस गांव को सार्वजनिक ,व्यक्तिगत टाँके और ग्रेवल सड़क का काम आसानी से स्वीकृत किया जा सकता हैं
पशुधन के लिए चारा पानी नहीं
इस गाँव में हर परिवार के पास गोधन हैं ,इस पशुओं के लिए चारे पानी की व्यवस्था में ग्रामीणों का दिन पूरा हो जाता हैं ,हर घर में गाय हैं। इनके लिए पानी की व्यवस्था तो जैसे तेज़ कर लेते हैं मगर चारा की व्यवथा नहीं हो पाती ,अकाल राहत में पशु शिविर की दरकार हैं
सीमा सुरक्षा बल की पोस्ट बिना सड़क
इसी गाँव में करीब सत्तर फ़ीट ऊँचे धोरे पर सीमा सुरक्षा बल की बी ओ पी कलरो का तला के के टी स्थापित हैं ,इस पोस्ट पर जाने के लिए सड़क नहीं हैं ,ग्रेवल भी नहीं ,जवानों द्वारा मार्ग अपने स्तर पर बनाया गया मगर रेतीली आंधियो के चलते इस अस्थायी मार्ग पर पुनः धोरे स्थापित हो जाते हैं सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम या नरेगा में इस गांव और बी ओ पी को सड़क से जोड़ा जा सकता था ,मगर कभी प्रयास नहीं हुए
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