शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

सरहदी मुस्लिम समाज कि जमात में समाज सुधर कि हुई अनूठी पहल

सरहदी मुस्लिम समाज कि जमात में समाज सुधर कि हुई अनूठी पहल


बाड़मेर भारत पाकिस्तान कि बाड़मेर जिले कि सरहद पर बसे सिंधी मुस्लिमो ने समाज सुधार के लिउए कई अहम् निर्णय कर अनूठी पहल कि हें। सरहद पर गागरिया गांव में आयोजित समाज के मौजिज लोगो कि उपस्थियति में समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियो को दूर करने के साथ समाज में शिक्षा का उजियारा फैलाने ,शादी ब्याह ,और मौत पर होने वाले अनावश्यकल खर्चो को कम करने का निर्णय लिया गया। मुस्लिम समाज कि बैठक में सरहदी गाँवों के हाज़ी गुमाना खान ,मुराद शेर खान ,इमाम डब्बे का पार ,हाज़ी बच्चू खान ,हाजी सरादिन ,मौलवी नूर मोहम्मद काज़ी खान और मौलवी हब्बीबुल;लह खान सहित सेकड़ो लोग उपस्थित थे। मौलवी हब्बीबुल्लाह ने बताया कि बैठक में निर्णय लिया गया कि शादी कि दावत एक ही कि जाये जिसे वलीमा नाम दिया जायेगा ताकि इसी दावत में सुन्नत भी अदा हो जाये ,साथ ही महारत कि दावत बंद करने का अहम् निणय लिया गया। उन्होंने बताया कि दावत में एक तरह का सादा खाना ही करने कानिर्णय लिया। दावतो में मांसाहारी खाना नहीं करने का निर्णय लिया गया।


उन्होंने बताया कि शादी ब्याह में फोटोग्राफी ,विडफिओग्राफी ,गाना बजाना नहीं करने का निर्णय लिया। शादियों में नेत्र सिर्फ डॉ सौ रुपये और रिश्तेदारो से एक हज़ार रुपये कानिर्णय लिया गय़ा जबकि पूर्व में नेतरे में पचास हज़ार से लाख लाख रुपये तक देने कि परंपरा थी ,उन्होंने बताया कि बारात में सिर्फ चार या पांच व्यक्ति ही जाए ,शादी समारोह में बीड़ी ,गुटखा ,पान ,सुपारी ,अफीम ,डोडा ,आदि का उपयोग नहीं करने का निर्णय लिया गया ,.स ही मौत मय्यत में भी खाट पर रुपये या कफ़न के अलावा कोई चीज़ न रखने ,मृतक को दफनाने के बाद काँधियो को दी जाने वाली माँसाहारी दावत बंद करने फातेहा में ख़ास खाना नहीं करने का निर्णय लिया वाही चालीसवे पर औसर का बभोज बंद करने का निर्णय लिया गया। दहेज़ प्रथा को पूरी तरह प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया गया। वाही समाज के बच्चो को स्कूल शिक्षा से निर्णय लिया गया। दिनी तालीम के साथ स्कूल शिक्षा को भी जरुरी करने कानिर्णय लिया गया।


यह पहला मौका था जब सरहदी गाँवों के मुस्लिमो ने कटटरता का दामन छोड़ समाज कि मुख्यधारा में जुड़ने के लिए समाज सुधार के अहम् फैसले लिए। मौलवी नूर महम्मद ने बताया कि सरहदी गाँवो में समाज के लोगो का आर्थिक और सामाजिक स्तर लगातार निचे जा रहा था जो चिंता का विषय था ऐसे में ठोश निर्णय समाज के हित में लुए गए

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