मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

संासद अर्जुन राम मेघवाल ने संसद मे उठाया राजस्थानी भाषा का मुद्दा

संासद अर्जुन राम मेघवाल ने संसद मे उठाया राजस्थानी भाषा का मुद्दा
नई दिल्ली। 18 फरवरी 2014। मंगलवार को लोक सभा मे बीकानेर सांसद अर्जुन राम मेघवाल ने तांराकित प्रश्न के माध्यम से गृह मंत्री संविधान की आठवीं अनुसूचित मे भाषाओं को सम्मिलित किये जाने के बारें मे प्रश्न पूछा। सांसद मेघवाल ने अपने प्रश्न मे पूछा कि सरकार द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूचि में और अधिक भाषाओं को शामिल करने हेतु क्या मानदंड अपनाए गए है तथा राज्यों और अन्यों से इस अनुसूची मे और अधिक भाषाओं को शामिल करने हेतु प्राप्त प्रस्तावों का ब्यौरा क्या है और इस पर सरकार की राजस्थानी व भोजपुरी सहित राज्य और भाषावार क्या प्रतिक्रिया है। सांसद मेघवाल ने प्रश्न किया कि भाषाई विशेषज्ञों संबंधी समिति (सीताकंात महापात्र समिति) द्वारा अपनी रिपोर्ट मे की गई सिफारिशों का ब्यौरा क्या है तथा क्या सरकार द्वारा उक्त समिति की सभी सिफारिशों को कार्यान्वित कर दिया गया है और यदि हां तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है और यदि नहीं तो इसके क्या कारण है?
सांसद अर्जुन राम मेघवाल के प्रश्न का गृह राज्य मंत्री आर.पी.एन.सिंह ने लिखित जवाब दिया। मंत्री ने अपने जवाब मे कहा कि भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची मे भाषाओं को शामिल करने के लिए कोई अनुमोदित मानदंड नहीं है। इस समय भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में राजस्थानी व भोजपरी सहित 38 ओर भाषाओं को शामिल करने की मांग है। सांसद मेघवाल के प्रश्न के जवाब में मंत्री ने बताया कि वस्तुपरक मानदंडो का एक सेट तैयार करने के लिए वर्ष 2003 मे भाषाई विशेषज्ञों की एक समिति सीताकांत महापात्र समिति गठित की गई थी, जिसके संदर्भ मे 8वीं अनुसूची मे ओर अधिक भाषाओं को शामिल करने के लिए सभी प्रस्तावों की जांच की जा सके और उनका अंतिम रूप से निपटान किया जा सके। किसी भाषा के विकास के प्रसार इसके उपयोग आदि से संबंधित एकसमान मानदंडो के एक सेट का सुझाव देने के लिए सीताकांत महापात्र समिति की सिफारिशों सहित पूरे मुद्दे का गहराई से अध्ययन करने के लिए मंत्रालय द्वारा एक आंतरिक अंतर मंत्रालय समिति गठित की गई थी, जो आठवीं अनुसूची मे किसी भाषा को शामिल करने अथवा न करने का निर्णय लेने के लिए मार्ग प्रशस्त करेगी। यह मामला सरकार के विचाराधीन है।
सांसद अर्जुन मेघवाल ने कहा कि राजस्थानी भाषा करोड़ो लोगो द्वारा बोली जाती है तथा सरकार ने इसे मान्यता के लिए कई बार सदन मे आश्वासन दिया है। सीताकांत महापात्र समिति ने भी सिफारिश की गई थी जो सरकार के पास अभी तक विचाराधीन है। राजस्थानी भाषा को मान्यता के लिए राजस्थान की विधानसभा द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्ताव केन्द्र को पहले ही भेजा जा चुका है। भारत सरकार के गृह राज्य मंत्री उक्त सिफारिशों को कार्यान्वित नहीं किये जाने के कारणों का जवाब नहीं दे रहे है। यह करोड़ो राजस्थानियों की उपेक्षा है और इसे ज्यादा दिनों तक सहन नहीं किया जायेगा।

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