बुधवार, 22 जनवरी 2014

1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध का असली हीरो रणछोड़दास, दिखाया था जीत का रास्ता

1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध का असली हीरो रणछोड़दास, दिखाया था जीत का रास्ता

अहमदाबाद। भारतीय सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने ‘मार्गदर्शक’ आम आदमी के सम्मान में अपनी बॉर्डर पोस्ट का नामकरण किया है। इस पोस्ट पर रणछोड़दास की एक प्रतिमा भी लगाई जाएगी। उत्तर गुजरात के सुईगांव अंतरराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र की एक बॉर्डर पोस्ट को रणछोड़दास पोस्ट नाम दिया है।
रणछोड़भाई रबारी ने भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 व 71 में हुए युद्घ के समय सेना का जो मार्गदर्शन किया, वह सामरिक दृष्टि से निर्णायक रहा। जनवरी-2013 में 112 वर्ष की उम्र में रणछोड़भाई रबारी का निधन हो गया था। बीएसएफ के इन्स्पेक्टर जनरल ए के सिंहा ने बताया कि केन्द्र सरकार की ओर से इजाजत मिलने पर पोस्ट को नामकरण किया गया है।

संक्षिप्त में उनके बारे में जानकारी व उनके योगदान को भी अंकित किया जाएगा। इसमें एक महीना लग सकता है। सुरक्षा बल की कई पोस्ट के नाम मंदिर, दरगाह और जवानों के नाम पर हैं, किन्तु रणछोड़भाई पहले ऐसे गुजराती हैं जिनके नाम पर पोस्ट का नामकरण किया गया है। रणछोड़भाई अविभाजित भारत के पेथापुर गथडो गांव के मूल निवासी थे। पेथापुर गथडो विभाजन के चलते पाकिस्तान में चला गया। पशुधन के सहारे गुजारा करने वाले रणछोड़भाई पाकिस्तानी सैनिकों की प्रताड़ना से तंग आकर बनासकांठा में बस गए थे।
क्या थी भूमिका:

युद्घ-1965:
साल 1965 के आरंभ में पाकिस्तानी सेना ने भारत के कच्छ सीमा स्थित विद्याकोट थाने पर कब्जा कर लिया था। इसको लेकर हुई जंग में हमारे 100 सैनिक शहीद हो गए थे। इसलिए सेना की दूसरी टुकड़ी (10 हजार सैनिक) को तीन दिन में छारकोट तक पहुंचना जरूरी हो गया था, तब रणछोड़ पगी के सेना का मार्गदर्शन किया था। फलत: सेना की दूसरी टुकड़ी निर्धारित समय पर मोर्चे पर पहुंच सकी। रणक्षेत्र से पूरी तरह परिचित पगी ने इलाके में छुपे 1200 पाकिस्तानी सैनिकों के लोकेशन की जानकारी भी भारतीय सेना तक पहुंचाई थी, जो भारतीय सेना के लिए अहम साबित हुई। सेना ने इन पर हमला कर विजय प्राप्त की।
साल 1971:

इस युद्घ के समय रणछोड़भाई बोरियाबेट से ऊंट पर सवार होकर पाकिस्तान की ओर गए। घोरा क्षेत्र में छुपी पाकिस्तानी सेना के ठिकानों की जानकारी लेकर लौटे। पगी के इनपुट पर भारतीय सेना ने कूच किया। जंग के दौरान गोली-बमबारी के गोला-बारूद खत्म होने पर उन्होंने सेना को बारूद पहुंचाने का काम भी किया। इन सेवाओं के लिए उन्हें राष्ट्रपति मैडल सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।


सुरक्षा बल करता है कद्र:

सुरक्षा बल के एक उच्च अधिकारी ने पहचान छुपाने की शर्त पर कहा कि राष्ट्रसेवा और सामरिक जरूरत के समय महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले रणछोड़ पगी की सेवाओं की सुरक्षाबल कद्र करता है। बीएसएफ ने ही पहल कर रणछोड़दास रबारी ऊर्फ रणछोड़ पगी के नाम पर बॉर्डर पोस्ट का नामकरण करने का सुझाव दिया था।
जनरल साम मॉणोक शा के हीरो थे रणछोड़पगी:

रणछोड पगी जनरल साम माणोक-शॉ के ‘हीरो’ थे। इतने अजीज कि ढाका में माणोकशॉ ने रणछोड़भाई पगी को अपने साथ डिनर के लिए आमंत्रित किया था। बहुत कम ऐसे सिविल लोगों थे, जिनके साथ माणोकशॉ ने डिनर लिया था। रणछोडभाई पगी उनमें से एक थे। पगी का पूरा नाम है रणछोड़भाई सवाभाई रबारी। वे पाकिस्तान के घरपारकर, जिला गढडो पीठापर में जन्मे थे । बनासकांठा पुलिस में राह दिखाने वाले (पगी) के रूप में सेवारत रहे। जुलाई-2009 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली थी। विभाजन के समय वे एक शरणार्थी के रूप में आए थे।
अंतिम समय तक माणोकशॉ नहीं भूले थे पगी को:

वर्ष 2009 में 27 जून को जनरल सैम माणोकशॉ का निधन हो गया। वे अंतिम समय तक रणछोड़ पगी को भूल नहीं पाए थे। निधन से पहले हॉस्पिटल में वे बार-बार रणछोड़ पगी का नाम लेते थे। बार-बार पगी का नाम आने से सेना के चैन्नई स्थित वेलिंग्टन अस्पताल के दो चिकित्सक एक साथ बोल उठे थे कि ‘हू इज पगी’। जब पगी के बारे में चिकित्सकों को ब्रीफ किया गया तो वे भी दंग रह गए।
रणछोड़भाई के कलेउ के लिए उतारा था हैलिकॉप्टर:

साल 1971 के युद्घ के बाद रणछोड़ पगी एक साल नगरपारकर में रहे थे। ढाका में जनरल माणोकशॉ ने रणछोड़ पगी को डिनर पर आमंत्रित किया था। उनके लिए हैलिकॉप्टर भेजा गया। हैलिकॉप्टर पर सवार होते समय उनकी एक थैली नीचे रह गई जिसे लेने के लिए हैलिकॉप्टर वापस उतारा गया। अधिकारियों ने थैली देखी तो दंग रह गए क्योंकि उसमें दो रोटी, प्याज और बेसन का एक पकवान (गांठिया) भर था।
इनके भी नाम पर:

फ्रीडम फाइटर व सिविलियन के नाम पर एक। मंदिर व दरगाह के नाम पर दो-दो तथा जवान व अधिकारियों के नाम पर 40 से अधिक पोस्ट का नामकरण बीएसएफ ने गुजरात क्षेत्र में किया है। गांव व स्थानीय इलाके के नाम पर 100 से अधिक पोस्ट को पहचाना जाता है।
रणछोड़भाई रबारी ने भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 व 71 में हुए युद्घ के समय सेना का जो मार्गदर्शन किया, वह सामरिक दृष्टि से निर्णायक रहा। जनवरी-2013 में 112 वर्ष की उम्र में रणछोड़भाई रबारी का निधन हो गया था।

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