मथुरा। पर्यटन निगम की अनदेखी और प्रशासन की लापरवाही से पौराणिक महत्व के भांडीरवन और बंसीवट अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं। चुनिंदा श्रद्धालुओं की बदौलत ही इन मंदिरों में किसी तरह पूजा-अर्चना हो रही है।
मांट मूला ग्राम पंचायत के भांडीरवन का गर्ग संहिता में उल्लेख मिलता है। लिखा है कि श्रीकृष्ण और राधा का गंधर्व विवाह इसी वन में हुआ था, जिसमें स्वयं बह्म ने ही यह विवाह कराया था। यूं तो यहां से चौरासी कोस की सभी यात्राएं निकलती हैं और कई यात्रा संचालक यहां राधारानी व श्रीकृष्ण के स्वरूपाें का विवाह रचाते हैं, परंतु इन मंदिरों का संचालन मुश्किल हो रहा है। भांडीरवन में राधारानी की मांग में सिंदूर भरते श्रीकृष्ण के विग्रह के मनोहारी दर्शन हैं।
मंदिर के सेवायत ओम भारद्वाज बताते हैं कि पर्यटन निगम ने न तो भांडीरवन को किसी योजना में शामिल किया है और न ही अपने मानचित्र में दर्शाया है। यहां प्रत्येक सोमवती अमावस्या पर्वी के नाम से मेला लगता है, जहां स्नान करने से नि:संतान महिलाओं को संतान सुख मिलने की मान्यता है।
भांडीर कूप की किदवंती है कि प्रत्येक सोमवती अमावस्या को इसमें दूध की धार निकलती है। राजस्व अभिलेखों में बंसीवट के नाम काफी जंगल और कृषि भूमि दर्ज है, बंसीवट में भगवान श्रीकृष्ण गाय चराने आते थे। यहां श्रीकृष्ण द्वारा राधारानी का श्रृंगार करने की कथाएं प्रचलित हैं। मंदिर के वट वृक्ष के बारे में मान्यता है कि इसकी टहनियों से शांत मन से कान लगाने पर उनमें से बांसुरी की आवाज सुनाई देती है। पर्यटन निगम ने यहां भी कोई विकास नहीं कराया, न ही इस धार्मिक स्थल को अपने नक्शे में स्थान दिया। करीब दो साल पूर्व तत्कालीन सीओ वीपी सिंह ने बंसीवट की महत्ता से प्रभावित होकर वहां संत निवास का निर्माण कराया था, यह मंदिर भी अब अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है।
वंशीवट में हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। जन सुविधा बढ़ाने से यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों की संख्या में इजाफा हो सकता है। इसकी सत्यता देखने के लिए
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