गुरुवार, 18 जुलाई 2013

बाड़मेर की स्कूलों में दिया जाता हें घटिया पोषाहार

एक्‍सक्‍लूसिव: मजबूरी का नाम मिड डे मील

बाड़मेर की स्कूलों में दिया जाता हें घटिया पोषाहार   




बाड़मेर बिहार के सारण जिले में मंगलवार को जहर साबित हुआ। मिड-डे मील के खाने से 21 बच्चों की मौत हो गई है। लेकिन हम जो आपके राजस्थान के बाड़मेर जिले के ग्रमीण इलाको में सरकारी स्कूलों में केसी रोटी बच्चो को खाने में दी जाती है उसे देख कर आप दंग रह जाओगे आप खुद देखिए एक सरकारी स्कूल में मिड-डे मील की हकीकत जहा पर नन्हे मुन्हे को कच्ची रोटी ही खानों को मजबूर है और उसके साथ जली हुई रोटिया भी मीड डे मिल यानि दोपहर का भोजन, जिसकी वजह से बेहद गरीब लोगों के बच्चे भी पढ़ने के लिए स्कूल पहुंचते हैं। स्कूल में एक बार का खाना मुफ्त देकर बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ही 15 अगस्त 1995 को मिड डे मील की बेहद महत्वाकांक्षी योजना की नींव पड़ी।

 मिड डे मील बच्चों को खाना खिलाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी योजना है लेकिन ऐसा नहीं है कि मिड-डे मील में बिहार में ही गंधाखान परोसा जाता है राजस्थान के बाड़मेर जिले में जब हम स्कूल में मिड-डे मील वितरण के दोहरान पहचे तो हम यह देखकर चोक गए कि नन्हे मुन्हे को कच्ची रोटिया खिलाई जा रही थी हमने सोच की एक दो रोटी तो कच्ची हो सकती है क्योकि करीब डेढ़ सो बच्चों का खान बन रह है लेकिन जब हमने करीब सोरोटियों को बच्चो को परोसते हुए देखा तो हमें एक भी रोटी पूरी पकी हुई नजर नहीं आई कई रोटिया तो पूरी कच्ची थी तो कोई जली हुई रोटिया बच्चों को खिलाई जा रही थी जब हमने बच्चों से पूछा कि आपको ऐसी रोटी रोज मिलती है क्या तो बच्चों ने कहा कि हमें कच्ची रोटी दी जाती है तो एक बच्चे ने कहा कि आधी कच्ची तो आधी पक्की दी जाती है यह से तो घर का खाना अच्छा होता है यकीं मानिये इन मासूम बच्चो को यह पता नहीं है कि इस तरह की रोटी खाने से उसकी सेहत के साथ सरकार कितना बड़ा खिलवाड़ कर रही है 


 नन्हे मुन्हे को क्या पता की इस तरह के खाने से कभी उसकी जान भी जा सकती जब हमने इस बारे में महिला कुक से बात कि तो उसका कहना है कि इतने सारे बच्चो के लिए रोटिया बनानी पड़ती है तो कच्ची और जली हुई भी रह जाती है जब इसके बारे में हमने स्कूल के टीचर से बात की तो उनका रट रटाया जबाब कि बच्चो की सख्या अधिक होने के कारण कभी कच्ची और जली हुई रोटी आ भी जाती है लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता है .खाना बनाने में भयानक लापरवाही बरतने के अनगिनत मामले सामने आ चुके हैं। कभी बच्चों के खाने में छिपकली, कभी सांप, कभी कोई दूसरा कीड़ा-मकौड़ा, कभी खराब क्वालिटी का खाना, कभी सड़ा भोजन,तो कभी बच्चो को इस तरह की कच्ची रोटिया या फिर आधी जली हुई नन्हे मुन्ने बच्चों को खिला दिय़ा जाता है। सबसे बड़ा सवाल यह योजना खराब क्वालिटी वाले खाने केलिए विवादों में घिरती रही है। अक्सर ही खाना पकाने में लापरवाही के चलते नन्हे मुन्ने मारे जाते हैं। फिर भी सरकार क्यों नन्हे मुन्ने बच्चों की सेहत के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ कर रही है

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