रविवार, 10 मार्च 2013

रम्मत के लोकप्रिय खिलाड़ी रहे खेत सिंह जंगा

रम्मत के लोकप्रिय खिलाड़ी रहे खेत सिंह जंगा

चन्दन सिंह भाटी
जैसलमेर ' रम्मत ' खेल को ही कहते हैं। ऐतिहासिक एवं पौराणिक आख्यानों पर रचित काव्य रचनाओं का मंचीय अभिनय की बीकानेर - जैसलमेर शैली को रम्मत के नाम से अभिहित किया गया है। जैसलमेर की रम्मतों का अपना अलग ही रंग है।जैसलमेर के अलावा रम्मतें बीकानेर पोकरण, फलौदी, और आस-पड़ोस के क्षेत्र में खेली जाती हैं। ये कुचामन, चिड़ावा और शेखावटी के ख्यालों से भिन्न होती है। 100 वर्ष पूर्व बीकानेर क्षेत्र में होली एवं सावन आदि के अवसर पर होने वाली लोक काव्य प्रतियोगिताओं से ही इनका उद्भव हुआ है। कुछ लोक कवियों ने राजस्थान के सुविख्यात ऐतिहासिक एवं धार्मिक लोक - नायकों एवं महापुरुषों पर काव्य रचनाएँ की।इससे प्रकार रम्मत और ख्याल के खिलाड़ी सिर्फ मनोरंजनकर्ता ही नहीं थे, अपितु वे समाज में हो रही क्रांति के प्रति पूरी तरह से जागरूक भी थे।आरंभ में रम्मत को पाठशालाओं में खेलाया जाता था। इसे खेलने वाले 'खेलार' कहलाते थे। बीकानेर में रम्मत होलाष्टक के प्रारंभ अर्थात फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से चतुर्दशी या पूर्णिमा तक खेली जाती है। बीकानेर के लगभग प्रत्येक चौक में रम्मत घाली जाती है।रम्मत के ख्यातिनाम कलाकार और फाग गायक खेत सिंह जंगास्वर्णनगरी -- जैसलमेर की रम्मत कला,के ख्यातिनाम कलाकार खेत सिंह जंगाका नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हें ,। जैसलमेर के इतिहास में अपना एकउल्लेखनीय स्थान रखते हैं। रम्मत कला के भी वह धुरंधर थे। जैसलमेर मेंसमय समय पर आयोजित रम्मतो के आयोजन खेत सिंह जंगा के बिना अधूरी मानीजाती थी ,उन्हें रम्मत से ख़ास लगाव रहा .अपने जीवनकाल पर्यंत रम्मत के आयोजन से लेकर पात्र निभाने तक सक्रीय रहे .बेहतरीन लोक कलाकार होने केबावजूद उन्हें वो मान सम्मान नहीं मिला जिनके वो हकदार थे ,जैसलमेर कृष्णकंपनी द्वारा रम्मतों का आयोजन किया जाता रहा हें । जिसमे खेत सिंह जंगाद्वारा यादगार अभिनय किया गया .जैसलमेर का गोपा चौक उनके अभिनय क्षमता कागवाह बना कई बार .अभी भी जैसलमेर में जब भी रम्मत का आयोजन होता हें खेतसिंह जंगा की तस्वीर साक्षी होती हें ,रम्मत कलाकार के रो में उन्होंने जो ख्याति अर्जित की वो हर एक को नसीब नहीं होती ,किले उपर कोटड़ी पाड़ा निवासी खेत सिंह जंगा हजुरी समाज के साधारण परिवार में लाधू सिंह जंगा केयहाँ जन्मे थे ,शिक्षा दीक्षा के अभाव में स्व रोजगारसे घर परिवारचलते थे.उन्हें बचपन से रम्मते देखने का शौक था ,उनके इसी शौक नेउन्हें रम्मतो में अभिनय के लिए आकर्षित किया .छोटे छोटे किरदार निभाकरअपने अभिनय की छाप छोड़ी ,ब्वाद में तो उनके किरदार के बिना रम्मत के मंचनकी कल्पना भी जैसलमेरवासी नहीं कर सकते ,खेत सिंह जैसलमेर में जोरशोर से माने जाने वाले होली पर्व की पहली जरुरत थे ,उनकी फाग गायकी का कोई सानी नहीं था ,जब वो फाग गाने में तल्लीन होते तब जैसलमेर के वासिंदो काहुजूम उमड़ पड़ता .उनकी फाग गायकी को जैसलमेर राज दरबार ने ख़ास मान्यता देरखी थी.होली के दिन जंगा अपनी फाग टोली दरबार के यंहा जरुर ले जाते,राज दरबार के यंहा उनकी खास आवभगत होती ,फाग गायिकी का दौर खेत सिंह जंगा केसाथ ख़त्म हो गया .हेड़ाऊ री रम्मत,अमरसिंह री रम्मत,पूरन भक्त री रम्मत,मोरध्वज री रम्मत,डूंगजी जवाहर जी री रम्मत,राजा हरिशचन्द्र री रम्मतऔर गोपीचन्द भरथरी री रम्मत।--काफी लोकप्रिय थी .

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