मुग़ल कालीन शैली के इस दुर्ग पर पाकिस्तान की सेना ने 1965 के भारत के युद्ध के दौरान कब्जा किया था
किशनगढ़ दुर्ग को सरंक्षित स्मारक तो घोषित कर दिया मगर सरंक्षित करने के प्रयास नहीं हुए
जैसलमेर। अविभाजित पाकिस्तान का हिसा रहा राजस्थान के जैसलमेर जिले के सरहदी क्षेत्र किशनगढ़ का ऐतिहासिक दुर्ग सरंक्षण के में जर्जर हालत में पहुँच गया ,हें भारतीय सरहद की सुरक्षा का अहम् भागीदार रहा यह दुर्ग समय और प्रशासनिक अनदेखी के चलते अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा हें .अपने आप में अनोखा हें किशनगढ़ दुर्ग जो राज्य सरकार और जिला प्रशासन की अनदेखी का दंश भोग रहा हें ..कहने को तो यह दुर्ग सरंक्षित स्मारक हें मगर सरंक्षण के नाम पर इस दुर्ग में एक ईंट भी राखी गई हें नहीं लगता .इस दुर्ग की खूबसूरती देखते ही बनती हें ,
पुरे भारत में इस शैली का दुर्ग कंही नहीं हें ,इस शैली के दुर्ग अब सिर्फ पाकिस्तान में हें ,किशनगढ़ किले जैसा हुबहू दुर्ग बहावलपुर सिंध पाकिस्तान में हें जो किशनगढ़ के सामने पाकिस्तान की तरफ हें .मुग़ल कालीन शैली के इस दुर्ग पर पाकिस्तान की सेना ने 1965 के भारत के युद्ध के दौरान कब्जा किया था पाकिस्तानी सेना ने इसी दुर्ग में अपनी सीमा चौकी स्थापित की थी ,बाद में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को वापस खदेड़ दिया था .
गौरतलब है कि कला, साहित्य, संस्कृति व पुरातत्व विभाग की ओर से घोटारू, गणेशिया के साथ किशनगढ़ फोर्ट को संरक्षित स्मारक घोषित करने के लिए इसका निरीक्षण कर इसकी रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक दल भी भेजा गया था, जिसमे बीकानेर पुरातत्व अधीक्षक किशनलाल, जैसलमेर संग्रहालय अध्यक्ष निरंजन पुरोहित व शिवरतन पुरोहित शामिल थे। रिपोर्ट के आधार पर अधिसूचना जारी कर 10 जून 2011 को आपत्तियां मांगी गई थी।
आपत्तियां नहीं मिलने की स्थिति मे कला, साहित्य, संस्कृति व पुरातत्व विभाग की प्रमुुख शासन सचिव उषा शर्मा ने राजस्थान स्मारक पुरावशेष स्थान तथा प्राचीन वस्तु अधिनियम, 1961 के तहत राज्य सरकार की ओर से घोटारू, गणेशिया के साथ-साथ किशनगढ़ फोर्ट को संरक्षित स्मारक घोषित करने संबंधी अधिसूचना 22 नवंबर 2011 मे जारी की थी। ऎसे मे उपेक्षा का दंश झेल रहे इस ऎतिहासिक दुर्ग के सुनहरे दिन लौटने की उम्मीद जगने लगी थी, लेकिन ऎसा हुआ नहीं। हकीकत यह है कि संरक्षित स्मारक बनने के बाद भी किशनगढ़ की किस्मत नहीं संवर पाई है और यह गढ़ अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है।
इतिहास के पन्नो मे किशनगढ़ फोर्ट
जैसलमेर से करीब डेढ़ सौ किमी दूर व भायलपुर (पाकिस्तान) की सीमा के नजदीक, जैसलमेर के प्राचीन किशनगढ़ परगने का मार्ग देरावल व मुल्तान की ओर से जाता था। इस गढ़ का निर्माण बूटे (भुट्टे) दावद खां उर्फ दीनू खां ने करवाया। यही कारण है कि इसका नाम दीनगढ़ था। बताते हैं कि दावद खां के पौत्रो से हुई संधि के बाद महारावल मूलाराम के समय इसका नाम किशनगढ़ (कृष्णगढ़) रखा गया। अठारहवीं शताब्दी का यह दुर्ग वास्तुशिल्प संरचना का सुंदर नमूना है। यह गढ़ पक्की ईटो से बना हुआ है, जिसमे दो मंजिले बनी है। फोर्ट मे मस्जिद व महल तथा कोट मे एक दरवाजा व पानी का कुआ बना है। कोट की बनावट मुस्लिम संस्कृति की प्रतीक है और क्षेत्र मे टीबे ही टीबे हैं। इस परगने मे केवल दो ही गांव है।
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