परिवार को संगठित रखा था चूरमे का आयोजन
परंपरा ...शादियों में चूरमा नयी पीढी का चाव ख़त्म हो गया
जैसलमेर थार की महकती संस्कृति में यहाँ की परम्पराव ने बखूबी साथ निभाया ,यहाँ की संस्कृति और परम्पराव ने विश्व भर में अपनी अलग पहचान बने हें ,इसी संस्कृति और परम्पराव को नजदीक से देखने देश विदेश के पर्यटक स्वर्ण नगरी आते हें ,थार की एक परम्पराओ में जैसलमेर के हजूरी समाज की परम्पराव ने हर समाज में एक आदर्श प्रस्तुत किया ,जैसलमेर में ही क्षत्रिय जाति हजूरी राजदरबार के अनुयायी हें ,इस समाज में शादियों की अपनी रीति थी ,समाज में सबसे बड़ी प्रेरणा दहेज़ का नहीं लेना हें यह परंपरा आज भी मिशाल बनी हुई .हजूरी समाज में शादियों के समय चूरमा करने की अनोखी परंपरा थी .थार में आज भी परिवार के बड़े बुजुर्ग बहन बेटियों के घर का ना तो खाते थे न ही पानी पीते ,ऐसे में समाज में शादी के वक़्त एक रीत बने जिसके तहत लड़की के घरवाले लड़की के ससुराल मिलकर जाते इस अवसर को चूरमे की रीत नाम दिया गया .समाज के बुजुर्ग शिवनारायण सिंह ने बताया की समाज में चूरमे की रीत का अहम् उद्देश्य लड़की वालो के समस्त परिवार को उसके ससुराल से परिचित करना था ,इसके लिए लड़की के परिवार वाले सवा मन चूरमा करते थे .चूरमा किसी हलवाई से बनाने की बजे लड़की के परिवार जन मिल कर खुद ही बनाते थे .एक अवसर था जब पूरा परिवार एक साथ खड़ा होता परिवार को संगठित करने के अवसर होते थे शादी ब्याह .लड़की की शादी के वक़्त लड़की वालो की तरफ से लड़केवालो के घर शादी से चार दिन पूर्व सवा मन यानि साथ किलो याह सवा क्विंटल यानी स्व सौ किलो चूरमा ले जाने की रीत थी ,जिस दिन चूरमा ले जाया जाना होता था उस दिन लड़की के परिवार ,कुटुंब कबीले वाले एकत्रित होते थे ,सामूहिक रूप से चूरमे को समारोह के साथ ले जाया जाता था ,चूरमे के साथ आये मेहमानों के लिए लडके वालो की तरफ से खाने की व्यवस्था भी की जाती थी .शादी के बाद भी लड़की वाले नव विवाहित दुल्हे को करीब पन्द्र दिनों तक दोस्तों के साथ खाने तथा नास्ते के लिए आमंत्रित करते ,हें सुबह के नास्ते में दुल्हे और उसके साथियो को चूरमा खिलाया जाता था ,चूरमे में देशी घी की प्रचुर मात्रा डालते थे चूरमे के साथ पापड़ और नमकीन होती थी ,मगर अब समय के साथ शादियों से चूरमा गायब हो गया ,अब चूरमा प्रथा समाज में बंद कर दी गयी हें ,शगुन के तौर पर एक दिन दुल्हे को शादी के बाद के दिन नास्ते पर चूरमा खिलाया जाता हें ,बहरहाल जैसलमेर की शादियों की रौनक सामूहिक तौर पर शुरू होती थी ,सामूहिक सावे विवाह सुझाये जाते थे .समाज में एक ही दिन सारे विवाह संपन होते थे मगर अब ऐसा नहीं हें चूरमे की परंपरा ख़त्म कर दी गई साथ ही सामूहिक विवाहों का आयोजन भी लगभग बंद सा हो गया .
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