शनिवार, 4 जनवरी 2020

बाड़मेर में भी शिशुओं की मौत की भयावह स्थति ,एक साल में 202 शिशुओं की मौत

बाड़मेर में भी शिशुओं की मौत की भयावह स्थति ,एक साल में 202 शिशुओं की मौत 

बाड़मेर कोटा में बच्चों की मौत को लेकर पूरे प्रदेश में सियासत गरमाई हुई है,  इधर  बाड़मेर जिला अस्पताल में बच्चों की मौत के आंकड़ों को लेकर पड़ताल की तो चौकाने वाला सच सामने आया। कोटा से ज्यादा तो बाड़मेर में बच्चों की मौत हुई है। बाड़मेर में 2019 में 202 बच्चों की मौत हो गई, जो मृत्यु दर 6.81% है। जबकि कोटा में 2019 में बच्चों की मौत की दर 5.61% है। आईसीयू ही नहीं बल्कि गर्भवती महिलाओं, नवजात की मौत का आंकड़ा भी तेजी से बढ़ा है। पांच सालों शिशु मृत्यु दर 14 गुणा ज्यादा इजाफा हो गया। जो अब तक की सबसे ज्यादा शिशु मृत्यु दर है। बाड़मेर मेडिकल कॉलेज में बच्चों के वार्ड में अव्यवस्थाएं हावी है, सर्दी के मौसम में खिड़कियों के कांच टूटे है। बच्चों के सामान्य वार्ड में वॉर्मर नहीं है, इससे बच्चों के बीमार होने की संभावनाएं भी बढ़ जाती है। बाड़मेर जिला अस्पताल के आईसीयू में जनवरी से दिसंबर 2019 तक 2966 बच्चे एडमिट हुए, जिसमें 202 बच्चों की मौत हो गई। ऐसे में मौत का ग्राफ 6.81% है। सिर्फ दिसंबर में 620 एडमिशन हुए, जिसमें 29 बच्चों की मौत हो गई।

कोटा के मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत को लेकर प्रदेशभर में बवाल मचा हुआ है।   बारमेर एम् सी ए में  मौतों के आंकड़ों की पड़ताल की जो सच सामने आया उसे देख चौक गए। कोटा से ज्यादा तो बच्चों की मौत का अनुपात बाड़मेर में है। एमसीए सेंटर में जहां बच्चों के वार्ड है, वहां व्यवस्थाएं चिकित्सा प्रशासन के दावे की पोल खोल रही है। हाल यह है कि सामान्य वार्ड में जहां बच्चे भर्ती है, उस वार्ड की खिड़कियों से कांच गायब है, कागज के गत्ते डाल उन्हें बंद कर रखा है। तीसरे मंजिल पर बच्चों का वार्ड होने से सर्दी का असर भी ज्यादा है।
कोटा में 5.61% तो बाड़मेर में 6.81% बच्चों की मौत हुई, 

खुली खिड़कियां, बच्चों के लिए वॉर्मर नहीं, घर से लाते हंै परिजन कंबल

जिला अस्पताल के एमसीए सेंटर में बच्चों के हाल यह है कि वार्ड की खिड़कियों से शीशे गायब है, कागज के गत्ते लगाकर उन्हें बंद कर रखा है। तेज सर्दी व शीत लहर में मासूम बच्चे और परिजन ठंड से ठिठुर रहे है। हाल ये है कि बच्चों का वार्ड तीसरी मंजिल पर है, ऐसे में शीत लहर का भी इन वार्डों में असर तेज है। अस्पताल में सिर्फ एक छोटी कंबल ओढऩे के लिए दी जा रही है, ऐसे में गांव से आने वाले परिजन टेंटों से कंबल-रजाई किराए पर या खरीद कर लाने के लिए मजबूर है।

एक-एक बैड पर तीन-तीन बच्चे, संक्रमण का भी खतरा

एमसीए सेंटर में बच्चों के वार्ड में बैड पर्याप्त नहीं है, इसी वजह से तीन-तीन बच्चों को एक-एक वार्ड पर भर्ती कर रखा है। जबकि बच्चों में अलग-अलग तरह की बीमारियां है, इससे एक ही वार्ड पर भर्ती बच्चों में संक्रमण फैलने का भी खतरा है। बच्चों के साथ आने वाले परिजन भी बैड नहीं होने से परेशान होते है। कई दिनों तक बैड की चदर भी चेंज नहीं होती है। न तो गर्म हिटर है और न ही वाॅर्मर। इससे तेज ठंड में बच्चों के बीमार पढ़ने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है।

बाड़मेर में शिशु मृत्यु दर में बीते चार साल में 14 गुना ज्यादा हुई बढ़ोत्तरी

बाड़मेर में शिशु मृत्यु दर 14 गुणा बढ़ गई है। 2014 में गर्भवती महिलाओं की 19 मौत थी, जो अब 53 हो गई। जबकि 2014 में 14 बच्चों की मौत थी, जो अब 196 हो गई। जबकि राज्य व केंद्र सरकार की ओर से शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए सालों से कई योजनाएं संचालित की जा रही है, हर साल करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे है।
बाड़मेर में 202 बच्चों की हुई मौत

बाड़मेर एमसीए सेंटर के आईसीयू में 2019 में 2966 बच्चों को एडमिट किया गया, जिसमें 202 बच्चों की मौत हुई। प्रदेश के अन्य मेडिकल कॉलेजों से यह आंकड़ा कम है। बाड़मेर में बच्चों के मौत की दर 6.81 प्रतिशत है। दिसंबर में 620 एडमिशन में 29 बच्चों ने दम तोड़ है। अस्पताल के वार्ड में जहां सुविधाओं की कमी है, वहां सुधार किया जा रहा है। -बीएल मंसुरिया, पीएमओ बाड़मेर।

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