*झालावाड़ अगर आप मीडिया या खुफ़िया विभाग से हैं तो झालरापाटन से वसुंधरा राजे ही जीतेंगी, नहीं तो...*
राजस्थान के झालरापाटन में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के सामने पूर्व भाजपाई और अब कांग्रेस प्रत्याशी मानवेंद्र सिंह के आ जाने से मुकाबला रोचक हो गया है
*पुलकित भारद्वाज से साभार*
राजस्थान विधानसभा चुनाव में कुछ ही दिन बचे होने के चलते सियासी शोर चरम पर है. लेकिन राजनैतिक लिहाज से प्रदेश में सबसे महत्वपूर्ण माने जा रहे झालावाड़ में अजीब सी खामोशी है. झालरापाटन नाम से पहचानी जाने वाली इस सीट पर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे बीते तीन चुनावों से लगातार अपना परचम लहरा पाने में सफल रही हैं. इससे पहले वे 1989 से 2004 तक इस क्षेत्र से सांसद चुनी जाती रही थीं. 2004 के बाद से इस सीट पर उनके बेटे दुष्यंत सिंह का कब्जा है. झालावाड़ में राजे की पकड़ को देखकर सूबे के राजनैतिक गलियारों में कहा जाता है कि वहां से चुनाव जीतना वसुंधरा राजे के बाएं हाथ का खेल है. लेकिन इस बार मामला कुछ अलग नज़र आता है. पूर्व विदेश मंत्री जसंवत सिंह के पुत्र और भाजपा से बाग़ी हो चुके दिग्गज नेता मानवेंद्र सिंह को झालरापाटन से उतारकर कांग्रेस ने इस मुकाबले को रोचक बना दिया है.
छोटे कस्बे की शक्ल वाले झालावाड़ शहर के लोग पहली मुलाकात में चुनावी रुझान को लेकर गोलमोल जवाब देते हैं. वे कहते हैं कि यहां से वसुंधरा राजे को डिगा पाना नामुमकिन की हद तक मुश्किल है. लेकिन उनकी यह राय तब तक ही कायम रहती है जब तक वे आपको मीडिया या सुरक्षा और खुफ़िया विभागों से जुड़ा हुआ समझते हैं. आपके आम पर्यटक होने का यकीन होते ही इन लोगों की बातचीत का अंदाज पूरी तरह बदल जाता है. शहर के आम मतदाता की बातों से वसुंधरा राजे और खासतौर पर दुष्यंत सिंह के लिए गहरी नाराज़गी झलकती है. क्षेत्र की 65 फीसदी आबादी जिन गांवों में बसती है वहां यह आक्रोश और ज्यादा महसूस किया जा सकता है. लेकिन यहां खुलेआम बोलने से हर कोई बचना चाहता है. एक व्यापारी रामजी (बदला हुआ नाम) के शब्दों में, ‘कुछ कहते हुए डर लगता है.’ रामजी ने अपनी दुकान के दोनों तरफ भाजपा का झंडा लगा रखा है. इससे जुड़े सवाल पर वे मजाकिया लहज़े में कहते हैं, ‘जिसके घर-दुकान पर जितने ज्यादा झंडे लगाए गए हैं, वह उतना ही नाराज है.’
हालांकि झालावाड़ के जिन पुराने लोगों ने इस शहर की बदहाली देखी है वे वसुंधरा राजे के के कार्यकाल से काफी हद तक संतुष्ट नज़र आते हैं. लेकिन जिले से बाहर की दुनिया से राब्ता रखने वाले लोग अपने बुज़ुर्गों की बातों से ज्यादा इत्तेफाक़ नहीं जताते. उन्हें शिकायत है कि दो बार मुख्यमंत्री बनने के बावजूद वसुंधरा राजे, झालावाड़ में किसी बड़े रोजगार का ज़रिया उपलब्ध नहीं करवा पाई हैं. संतरे के बंपर उत्पादन के लिए झालावाड़ को राजस्थान का नागपुर कहा जाता है. यहां धनिए की भी जबरदस्त पैदावार होती है. लेकिन स्थानीय जानकारों का कहना है कि क्षेत्र में ऐसी कोई ठोस कार्य योजना नहीं बनाई गई जो किसानों को कुछ खास फायदा दिला सके.
देशभर में कुछ ही जिला मुख्यालय ऐसे होंगे जिन के रेलवे स्टेशन झालावाड़ जितने सूने हों. यहां आपको दूर-दराज तक एक चाय की दुकान तक नज़र नहीं आती. यहां के निवासियों को वर्षों से रेलमार्ग के ज़रिए भोपाल से जुड़ने उम्मीद है. लेकिन अभी यहां से संचालित होने वाली इक्का-दुक्का रेलगाड़ियों की मदद से सिर्फ कोटा तक पहुंचा जा सकता है. इसी वीराने में जिले का डाक बंगला भी स्थित है. झालावाड़ प्रवास के दौरान वसुंधरा राजे अक्सर यहीं रुकती हैं. लेकिन चौंकाने वाली बात है कि यहां एक भी स्थायी कर्मचारी नज़र नहीं आता. बताया जाता है कि वसुंधरा राजे की यात्रा के दौरान सुरक्षा से लेकर रसोइए तक पूरा स्टाफ जयपुर से जाता है.
झालावाड़ रेलवे स्टेशन पर पसरा सन्नाटा
झालावाड़ समेत पूरा कोटा संभाग करीब तीन दशक से भाजपा का गढ़ माना जाता है. लेकिन कोटा शहर से झालावाड़ तक के बीच का अधिकतर रास्ता इतना खस्ताहाल है कि 90 किलोमीटर की दूरी तय करने में तीन से पांच घंटे लग जाते हैं. इसके अलावा यहां अफ़ीम और लहसुन की फसलों का पूरा मुआवज़ा न मिलने, खाद वितरण में पुलिस बल का प्रयोग, किसानों की आत्महत्या, अपराधों में बढ़ोतरी, डीज़ल-पेट्रोल-गैस के बढ़ते दाम, बिजली और जलापूर्ति जैसे मुद्दों की वजह से भी लोगों में भाजपा समेत मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रति रोष है. शायद यही कारण है कि बीते दिनों क्षेत्र की तीन नगरपालिकाओं के चुनावों में से दो में कांग्रेस जीत हासिल करने में सफल रही और एक पर वह सिर्फ एक वोट से हारी थी. वहीं, इसी साल हुए छात्रसंघ चुनावों में भी क्षेत्र की प्रमुख शिक्षण संस्थाओं में कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई ने बाजी मारी थी.
राजस्थान के झालरापाटन में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के सामने पूर्व भाजपाई और अब कांग्रेस प्रत्याशी मानवेंद्र सिंह के आ जाने से मुकाबला रोचक हो गया है
*पुलकित भारद्वाज से साभार*
राजस्थान विधानसभा चुनाव में कुछ ही दिन बचे होने के चलते सियासी शोर चरम पर है. लेकिन राजनैतिक लिहाज से प्रदेश में सबसे महत्वपूर्ण माने जा रहे झालावाड़ में अजीब सी खामोशी है. झालरापाटन नाम से पहचानी जाने वाली इस सीट पर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे बीते तीन चुनावों से लगातार अपना परचम लहरा पाने में सफल रही हैं. इससे पहले वे 1989 से 2004 तक इस क्षेत्र से सांसद चुनी जाती रही थीं. 2004 के बाद से इस सीट पर उनके बेटे दुष्यंत सिंह का कब्जा है. झालावाड़ में राजे की पकड़ को देखकर सूबे के राजनैतिक गलियारों में कहा जाता है कि वहां से चुनाव जीतना वसुंधरा राजे के बाएं हाथ का खेल है. लेकिन इस बार मामला कुछ अलग नज़र आता है. पूर्व विदेश मंत्री जसंवत सिंह के पुत्र और भाजपा से बाग़ी हो चुके दिग्गज नेता मानवेंद्र सिंह को झालरापाटन से उतारकर कांग्रेस ने इस मुकाबले को रोचक बना दिया है.
छोटे कस्बे की शक्ल वाले झालावाड़ शहर के लोग पहली मुलाकात में चुनावी रुझान को लेकर गोलमोल जवाब देते हैं. वे कहते हैं कि यहां से वसुंधरा राजे को डिगा पाना नामुमकिन की हद तक मुश्किल है. लेकिन उनकी यह राय तब तक ही कायम रहती है जब तक वे आपको मीडिया या सुरक्षा और खुफ़िया विभागों से जुड़ा हुआ समझते हैं. आपके आम पर्यटक होने का यकीन होते ही इन लोगों की बातचीत का अंदाज पूरी तरह बदल जाता है. शहर के आम मतदाता की बातों से वसुंधरा राजे और खासतौर पर दुष्यंत सिंह के लिए गहरी नाराज़गी झलकती है. क्षेत्र की 65 फीसदी आबादी जिन गांवों में बसती है वहां यह आक्रोश और ज्यादा महसूस किया जा सकता है. लेकिन यहां खुलेआम बोलने से हर कोई बचना चाहता है. एक व्यापारी रामजी (बदला हुआ नाम) के शब्दों में, ‘कुछ कहते हुए डर लगता है.’ रामजी ने अपनी दुकान के दोनों तरफ भाजपा का झंडा लगा रखा है. इससे जुड़े सवाल पर वे मजाकिया लहज़े में कहते हैं, ‘जिसके घर-दुकान पर जितने ज्यादा झंडे लगाए गए हैं, वह उतना ही नाराज है.’
हालांकि झालावाड़ के जिन पुराने लोगों ने इस शहर की बदहाली देखी है वे वसुंधरा राजे के के कार्यकाल से काफी हद तक संतुष्ट नज़र आते हैं. लेकिन जिले से बाहर की दुनिया से राब्ता रखने वाले लोग अपने बुज़ुर्गों की बातों से ज्यादा इत्तेफाक़ नहीं जताते. उन्हें शिकायत है कि दो बार मुख्यमंत्री बनने के बावजूद वसुंधरा राजे, झालावाड़ में किसी बड़े रोजगार का ज़रिया उपलब्ध नहीं करवा पाई हैं. संतरे के बंपर उत्पादन के लिए झालावाड़ को राजस्थान का नागपुर कहा जाता है. यहां धनिए की भी जबरदस्त पैदावार होती है. लेकिन स्थानीय जानकारों का कहना है कि क्षेत्र में ऐसी कोई ठोस कार्य योजना नहीं बनाई गई जो किसानों को कुछ खास फायदा दिला सके.
देशभर में कुछ ही जिला मुख्यालय ऐसे होंगे जिन के रेलवे स्टेशन झालावाड़ जितने सूने हों. यहां आपको दूर-दराज तक एक चाय की दुकान तक नज़र नहीं आती. यहां के निवासियों को वर्षों से रेलमार्ग के ज़रिए भोपाल से जुड़ने उम्मीद है. लेकिन अभी यहां से संचालित होने वाली इक्का-दुक्का रेलगाड़ियों की मदद से सिर्फ कोटा तक पहुंचा जा सकता है. इसी वीराने में जिले का डाक बंगला भी स्थित है. झालावाड़ प्रवास के दौरान वसुंधरा राजे अक्सर यहीं रुकती हैं. लेकिन चौंकाने वाली बात है कि यहां एक भी स्थायी कर्मचारी नज़र नहीं आता. बताया जाता है कि वसुंधरा राजे की यात्रा के दौरान सुरक्षा से लेकर रसोइए तक पूरा स्टाफ जयपुर से जाता है.
झालावाड़ रेलवे स्टेशन पर पसरा सन्नाटा
झालावाड़ समेत पूरा कोटा संभाग करीब तीन दशक से भाजपा का गढ़ माना जाता है. लेकिन कोटा शहर से झालावाड़ तक के बीच का अधिकतर रास्ता इतना खस्ताहाल है कि 90 किलोमीटर की दूरी तय करने में तीन से पांच घंटे लग जाते हैं. इसके अलावा यहां अफ़ीम और लहसुन की फसलों का पूरा मुआवज़ा न मिलने, खाद वितरण में पुलिस बल का प्रयोग, किसानों की आत्महत्या, अपराधों में बढ़ोतरी, डीज़ल-पेट्रोल-गैस के बढ़ते दाम, बिजली और जलापूर्ति जैसे मुद्दों की वजह से भी लोगों में भाजपा समेत मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रति रोष है. शायद यही कारण है कि बीते दिनों क्षेत्र की तीन नगरपालिकाओं के चुनावों में से दो में कांग्रेस जीत हासिल करने में सफल रही और एक पर वह सिर्फ एक वोट से हारी थी. वहीं, इसी साल हुए छात्रसंघ चुनावों में भी क्षेत्र की प्रमुख शिक्षण संस्थाओं में कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई ने बाजी मारी थी.
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