*मुद्दे की बात*
जैसलमेर *जवाहिर अस्पताल की खैर खबर अब तो ले लो,सरकार भी बदल गई*
जेसलमेर जिला मुख्यालय का एक मात्र नाममात्र का अस्पताल जवाहिर अस्पताल की सांस लम्बे समय से टूटी हुई है।मगर इसे ऑक्सीजन देने का कभी कोई सार्थक प्रयास नही हुआ।उसका मुख्य कारण चिकित्सको की आपसी गुटबाज़ी,प्रमुख चिकित्सा अधिकारी की मनमानी।।जेसलमेर के हज़ारो लोगो की आस्था का केंद्र जवाहिर चिकित्सालय है। मगर अंदर खाने की बात करे तो अस्पताल कम धर्मशाला ज्यादा लगती है।।अच्छा खासा व्यक्ति इस अस्पताल परिसर में एक मिनट खडा राह जाए तो यकीनन बीमार होकर बाहर निकलेगा। कहने को अस्पताल प्रशासन द्वारा सफाई के 2 ठेके अलग अलग हो रखे है इस ठेकेदार को दोनो परिसरों में तीन परियों में कुल 16_16 सफाईकर्मी लगाने होते है मगर ठेकेदार और पी एम ओ की मिलीभगत से दोनो परिसरों में मात्र छह छह सफाई कर्मी लगे है। अस्पताल परिसर की सफाई व्यवस्था किसी से छिपी नही है।।फिर भी प्रति माह दो से तीन लाख का भुगतान ठेकेदार को होता है ।।बिल प्रमाणीकरण खुद अधिकारी करते है। पूरा मामला गड़बड़ झाला है जिला कलेक्टर को इस मामले की विशेष जांच करवानी चाहिए। अस्पताल के चिकित्सकों में जबरदस्त गुटबाज़ी है खासकर गायनिक में।।बिना सुविधा शुल्क लिए कोई भी चिकित्सक काम नह करता। एक एक केस पे चिकित्सको में झगड़े होते है।।अस्पताल की व्यवस्था संभालने का जिम्मा जिस महिला चिकित्सक को दे रखा है वो अपनी प्रशासनिक और राजनीतिक पहुंच बता विरोध करने वालो को न केवल चुप करती है बल्कि हाथों हाथ कलेक्टर,निदेशक को फोन लगा सच झूठ बोल रिपोर्ट कर देती है। प्रमुख चिकित्सा अधिकारी पूर्व विधायक की सरपरस्ती में मनमानी करती आई है तो अब मुख्यमंत्री कार्यालय की धमकी दी जा रही है। अलबत्ता अस्पताल में खुद अधिकारी चिकित्सक निशुल्क दवा उपलब्ध होने के बावजूद बाहरी दवाईयां धड़ले से लिखते है।जब अधिकारी बाहर की दवा लिखे तो बाकी चिकित्सको के लिए बाहर की दवा लिखने की राह आसान हो गई।।अस्पताल में लेबर रूम की बुरी स्थति बनी हुई है।मगर उसे सुधारे कौन।।जिला कलेक्टर और नव निर्वाचित विधायक को अस्पताल की व्यवस्थाएं सुधारने में खास पहल करनी चाहिए ताकि जनता को राहत मिले।।आखिर जनता को अस्पताल की सुविधाओं का लाभ कब मिलेगा। दीमक की तरह सरकारी बजट के बंदरबांट के अलावा कोई काम नही होता।।कार्य करने वाले कार्मिकों को पी एम ओ सहयोग नही करती। चिकित्सक भगवान का रूप होता है जो लोगो को नई जिन्दगि देता है मगर जवाहिर अस्पताल में सारा मामला उल्टा है। पूरे कुएं में जब भांग पड़ी हो तो जिम्मेदारों को आगे आना चाहिए।। जनहित में।।
जैसलमेर *जवाहिर अस्पताल की खैर खबर अब तो ले लो,सरकार भी बदल गई*
जेसलमेर जिला मुख्यालय का एक मात्र नाममात्र का अस्पताल जवाहिर अस्पताल की सांस लम्बे समय से टूटी हुई है।मगर इसे ऑक्सीजन देने का कभी कोई सार्थक प्रयास नही हुआ।उसका मुख्य कारण चिकित्सको की आपसी गुटबाज़ी,प्रमुख चिकित्सा अधिकारी की मनमानी।।जेसलमेर के हज़ारो लोगो की आस्था का केंद्र जवाहिर चिकित्सालय है। मगर अंदर खाने की बात करे तो अस्पताल कम धर्मशाला ज्यादा लगती है।।अच्छा खासा व्यक्ति इस अस्पताल परिसर में एक मिनट खडा राह जाए तो यकीनन बीमार होकर बाहर निकलेगा। कहने को अस्पताल प्रशासन द्वारा सफाई के 2 ठेके अलग अलग हो रखे है इस ठेकेदार को दोनो परिसरों में तीन परियों में कुल 16_16 सफाईकर्मी लगाने होते है मगर ठेकेदार और पी एम ओ की मिलीभगत से दोनो परिसरों में मात्र छह छह सफाई कर्मी लगे है। अस्पताल परिसर की सफाई व्यवस्था किसी से छिपी नही है।।फिर भी प्रति माह दो से तीन लाख का भुगतान ठेकेदार को होता है ।।बिल प्रमाणीकरण खुद अधिकारी करते है। पूरा मामला गड़बड़ झाला है जिला कलेक्टर को इस मामले की विशेष जांच करवानी चाहिए। अस्पताल के चिकित्सकों में जबरदस्त गुटबाज़ी है खासकर गायनिक में।।बिना सुविधा शुल्क लिए कोई भी चिकित्सक काम नह करता। एक एक केस पे चिकित्सको में झगड़े होते है।।अस्पताल की व्यवस्था संभालने का जिम्मा जिस महिला चिकित्सक को दे रखा है वो अपनी प्रशासनिक और राजनीतिक पहुंच बता विरोध करने वालो को न केवल चुप करती है बल्कि हाथों हाथ कलेक्टर,निदेशक को फोन लगा सच झूठ बोल रिपोर्ट कर देती है। प्रमुख चिकित्सा अधिकारी पूर्व विधायक की सरपरस्ती में मनमानी करती आई है तो अब मुख्यमंत्री कार्यालय की धमकी दी जा रही है। अलबत्ता अस्पताल में खुद अधिकारी चिकित्सक निशुल्क दवा उपलब्ध होने के बावजूद बाहरी दवाईयां धड़ले से लिखते है।जब अधिकारी बाहर की दवा लिखे तो बाकी चिकित्सको के लिए बाहर की दवा लिखने की राह आसान हो गई।।अस्पताल में लेबर रूम की बुरी स्थति बनी हुई है।मगर उसे सुधारे कौन।।जिला कलेक्टर और नव निर्वाचित विधायक को अस्पताल की व्यवस्थाएं सुधारने में खास पहल करनी चाहिए ताकि जनता को राहत मिले।।आखिर जनता को अस्पताल की सुविधाओं का लाभ कब मिलेगा। दीमक की तरह सरकारी बजट के बंदरबांट के अलावा कोई काम नही होता।।कार्य करने वाले कार्मिकों को पी एम ओ सहयोग नही करती। चिकित्सक भगवान का रूप होता है जो लोगो को नई जिन्दगि देता है मगर जवाहिर अस्पताल में सारा मामला उल्टा है। पूरे कुएं में जब भांग पड़ी हो तो जिम्मेदारों को आगे आना चाहिए।। जनहित में।।
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