भगवान महावीर का मोक्ष स्थल पावापुरी ,पवित्र शहर
राजगीर और बोधगया के समीप पावापुरी भारत के बिहार प्रान्त के नालंदा जिले मे स्थित एक शहर है। यह जैन धर्म के मतावलंबियो के लिये एक अत्यंत पवित्र शहर है क्यूंकि माना जाता है कि ,भगवान महावीर को यहीं मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। यहाँ के जलमंदिर की शोभा देखते ही बनती है। संपूर्ण शहर कैमूर की पहाड़ी पर बसा हुआ है।पावापुरी वह स्थल है जहाँ जैनियो के 24वें तीर्थकर भगवान महावीर ने निर्वाण यानि ज्न्म मरण के चक्र से 527 ई०पु० मे परचम मुक्ति पाई थी| पावापुरी के पाँच मुख्य मंदिरों मे से एक है जल मंदिर जिसमे ची. “चरण पाड़ुका” को दर्शाते हैं| यह उस स्थान को चिन्हित करता है जहाँ भगवान महावीर के पार्थिव अवशेष हैं|
लगभग 2600 वर्ष पूर्व प्राचीन काल मे पावापुरी मगध साम्राज्य का हिस्सा था जिसे मध्यम “वापा” या “अपापपुरी” कहा जाता था| राजा श्रेनिक (बिम्बिसार) का पुत्र आजातशत्रु जो एक महान जैन अनुयायी था भगवान महावीर का समकालीन मगध भासक था| आजातशत्रु के भससंकाल मे राजकिए औषधालया पावापुरी मे स्थित था| जब भलगवान महावीर पावापुरी आए थे तो वी राजकीय औषधलया पावापुरी मे था| जब भगवान महावीर पावापुरी आए थे तो वे राजकिय औषधलया “समाशरण” भी वहाँ स्थित है
महावीर की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में अपापा के राजा हस्तिपाल के लेखकों के कार्यालय में हुई थी। उस दिन कार्तिक की अमावस्या थी। पालीग्रंथ संगीतिसुत्तंत में पावा के मल्लों के उब्भटक नामक सभागृह का उल्लेख है। जीवन के अंतिम समय में तथागत ने पावापुरी में ठहरकर चुंड का सूकर-माद्दव नाम का भोजन स्वीकार किया था। जिसके कारण अतिसार हो जाने से उनकी मृत्यु कुशीनगर पहुँचने पर हो गई थी।
जल मंदिर – जल मंदिर यह नाम ही दर्शाता है की मंदिर खिले कमलों मे भरे जलाषये के मध्य मे स्थित होगा| यह मंदिर एक प्रमुख जैन तीर्थस्तल है| इस ख़ूबसूरत मंदिर का मुख्य पूजा स्थल भगवान महावीर की एक प्राचीन “चरण पदुका” है| यह उस स्थान को दर्शाता है जहाँ भगवान महावीर के पार्थव अवशेषों को दफ़नाया गया था| यह विश्वास किया जाता है की इस मंदिर का निर्माण भगवान महावीर के बड़े भाई राजा नंदिवधन के द्वारा करवाया गया था|
जात मंदिर का निर्माण “विमान” के आकार मे किया गया है और जलाशय के किनारों से मंदिर तक लगभग 600 फुट लम्बा पत्थर का पुल बनाया गया है| अनुश्रतिओ के अनुसार भगवान महावीर के अंतिम संस्कार मे भाग लेनेवाले लोगों के द्वारा बड़ी गढ़ा बन गया जो वर्तमान जलशय मे तब्दील हो गया| इस मंदिर का अदभुत सौन्द्र्य मीया अप्रतिम भाँति पयर्टकों की आँखों को सुकून प्रदान करती है|
समोशरण – यह सफेद संगमरमर से निर्मित एक गोलाकार मंदिर है जिसमें मधुमक्खी के छ्त्ते के आकार का पवित्र स्थल है जिसके भिर्श पर भगवान महावीर के चरणचिन्ह खुदे हैं| यह वही स्थान है जहाँ भगवान महावीर ने अपने धर्म का अंतिम उपदेश दिया था| कनिंघम ने पावा का अभिज्ञान कसिया के दक्षिण पूर्व में 10 मील पर स्थित फ़ाज़िलपुर नामक ग्राम से किया है। जैन ग्रंथ कल्पसूत्र के अनुसार महावीर ने पावा में एक वर्ष बिताया था। यहीं उन्होंने अपना प्रथम धर्म-प्रवचन किया था, इसी कारण इस नगरी को जैन संम्प्रदाय का सारनाथ माना जाता है। महावीर स्वामी द्वारा जैन संघ की स्थापना पावापुरी में ही की गई थी।
परिवहन: –
वायूमार्ग – सबसे निकटतम हवाई अड्डा पटना (100 की० मी०) में स्थित है| इंडियन ऐरलयंस पटना को कालकत्ता, मुम्बई, दिल्ली, राँची और लखनऊ से जोड़ता है|
रेलमार्ग – वैसे राजगीर स्वय भी रेलवे स्टेशन है लेकिन सबसे सुविधा युक्त निकटतम रेलवे स्टेशन पटना (90 कि०मी०) में है|
सड़क मार्ग- टैक्सी, बस, द्वारा पटना, राजगीर, गया या बिहार, के अन्य प्रमुख भहरों से पावापुरी की यात्रा की रा सकती है|
राजगीर और बोधगया के समीप पावापुरी भारत के बिहार प्रान्त के नालंदा जिले मे स्थित एक शहर है। यह जैन धर्म के मतावलंबियो के लिये एक अत्यंत पवित्र शहर है क्यूंकि माना जाता है कि ,भगवान महावीर को यहीं मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। यहाँ के जलमंदिर की शोभा देखते ही बनती है। संपूर्ण शहर कैमूर की पहाड़ी पर बसा हुआ है।पावापुरी वह स्थल है जहाँ जैनियो के 24वें तीर्थकर भगवान महावीर ने निर्वाण यानि ज्न्म मरण के चक्र से 527 ई०पु० मे परचम मुक्ति पाई थी| पावापुरी के पाँच मुख्य मंदिरों मे से एक है जल मंदिर जिसमे ची. “चरण पाड़ुका” को दर्शाते हैं| यह उस स्थान को चिन्हित करता है जहाँ भगवान महावीर के पार्थिव अवशेष हैं|
लगभग 2600 वर्ष पूर्व प्राचीन काल मे पावापुरी मगध साम्राज्य का हिस्सा था जिसे मध्यम “वापा” या “अपापपुरी” कहा जाता था| राजा श्रेनिक (बिम्बिसार) का पुत्र आजातशत्रु जो एक महान जैन अनुयायी था भगवान महावीर का समकालीन मगध भासक था| आजातशत्रु के भससंकाल मे राजकिए औषधालया पावापुरी मे स्थित था| जब भलगवान महावीर पावापुरी आए थे तो वी राजकीय औषधलया पावापुरी मे था| जब भगवान महावीर पावापुरी आए थे तो वे राजकिय औषधलया “समाशरण” भी वहाँ स्थित है
13वीं शती ई॰ में जिनप्रभसूरी ने अपने ग्रंथ विविध तीर्थ कल्प रूप में इसका प्राचीन नाम अपापा बताया है। पावापुरी का अभिज्ञान बिहार शरीफ रेलवे स्टेशन (बिहार) से 9 मील पर स्थित पावा नामक स्थान से किया गया है। यह स्थान राजगृह से दस मील दूर है। महावीर के निर्वाण का सूचक एक स्तूप अभी तक यहाँ खंडहर के रूप में स्थित है। स्तूप से प्राप्त ईटें राजगृह के खंडहरों की ईंटों से मिलती-जुलती हैं। जिससे दोनों स्थानों की समकालीनता सिद्ध होती है। कनिंघम के मत में जिसका आधार शायद बुद्धचरित में कुशीनगर के ठीक पूर्व की ओर पावापुरी की स्थिति का उल्लेख है, कसिया जो प्राचीन कुशीनगर के नाम से विख्यात है, से 12 मील दूर पदरौना नामक स्थान ही पावा है। जहाँ गौतम बुद्ध के समय मल्ल-क्षत्रियों की राजधानी थी।
महावीर की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में अपापा के राजा हस्तिपाल के लेखकों के कार्यालय में हुई थी। उस दिन कार्तिक की अमावस्या थी। पालीग्रंथ संगीतिसुत्तंत में पावा के मल्लों के उब्भटक नामक सभागृह का उल्लेख है। जीवन के अंतिम समय में तथागत ने पावापुरी में ठहरकर चुंड का सूकर-माद्दव नाम का भोजन स्वीकार किया था। जिसके कारण अतिसार हो जाने से उनकी मृत्यु कुशीनगर पहुँचने पर हो गई थी।
जल मंदिर – जल मंदिर यह नाम ही दर्शाता है की मंदिर खिले कमलों मे भरे जलाषये के मध्य मे स्थित होगा| यह मंदिर एक प्रमुख जैन तीर्थस्तल है| इस ख़ूबसूरत मंदिर का मुख्य पूजा स्थल भगवान महावीर की एक प्राचीन “चरण पदुका” है| यह उस स्थान को दर्शाता है जहाँ भगवान महावीर के पार्थव अवशेषों को दफ़नाया गया था| यह विश्वास किया जाता है की इस मंदिर का निर्माण भगवान महावीर के बड़े भाई राजा नंदिवधन के द्वारा करवाया गया था|
जात मंदिर का निर्माण “विमान” के आकार मे किया गया है और जलाशय के किनारों से मंदिर तक लगभग 600 फुट लम्बा पत्थर का पुल बनाया गया है| अनुश्रतिओ के अनुसार भगवान महावीर के अंतिम संस्कार मे भाग लेनेवाले लोगों के द्वारा बड़ी गढ़ा बन गया जो वर्तमान जलशय मे तब्दील हो गया| इस मंदिर का अदभुत सौन्द्र्य मीया अप्रतिम भाँति पयर्टकों की आँखों को सुकून प्रदान करती है|
समोशरण – यह सफेद संगमरमर से निर्मित एक गोलाकार मंदिर है जिसमें मधुमक्खी के छ्त्ते के आकार का पवित्र स्थल है जिसके भिर्श पर भगवान महावीर के चरणचिन्ह खुदे हैं| यह वही स्थान है जहाँ भगवान महावीर ने अपने धर्म का अंतिम उपदेश दिया था| कनिंघम ने पावा का अभिज्ञान कसिया के दक्षिण पूर्व में 10 मील पर स्थित फ़ाज़िलपुर नामक ग्राम से किया है। जैन ग्रंथ कल्पसूत्र के अनुसार महावीर ने पावा में एक वर्ष बिताया था। यहीं उन्होंने अपना प्रथम धर्म-प्रवचन किया था, इसी कारण इस नगरी को जैन संम्प्रदाय का सारनाथ माना जाता है। महावीर स्वामी द्वारा जैन संघ की स्थापना पावापुरी में ही की गई थी।
परिवहन: –
वायूमार्ग – सबसे निकटतम हवाई अड्डा पटना (100 की० मी०) में स्थित है| इंडियन ऐरलयंस पटना को कालकत्ता, मुम्बई, दिल्ली, राँची और लखनऊ से जोड़ता है|
रेलमार्ग – वैसे राजगीर स्वय भी रेलवे स्टेशन है लेकिन सबसे सुविधा युक्त निकटतम रेलवे स्टेशन पटना (90 कि०मी०) में है|
सड़क मार्ग- टैक्सी, बस, द्वारा पटना, राजगीर, गया या बिहार, के अन्य प्रमुख भहरों से पावापुरी की यात्रा की रा सकती है|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें